अग्नि आलोक
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संस्मरण : पूर्वज और पितृपक्ष

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डॉ. प्रिया

 _मैने जब नेटिव अमेरिकन नेता  सिएटल का जार्ज वाशिंगटन के नाम उद्बोधन पढ़ा , तो अनायास सीएटल के आसमान को ताकने लगी। सिएटल कहते हैं, जहां तुम्हारी चिमनियों का काला धुंआ उड़ेगा वह रास्ता हमारे पूर्वजो के गुजरने का  रास्ता है, जिन दरख्तों  को तुम काट इमारते बनाओगे, वे हमारे पूर्वजों ने लगाए थे।_
 मैंने मेडिलिन में दक्षिण अफ्रीकन नेटिव कलाकारों  की हर पुकार में पूर्वज की उपस्थिति देखी। 

मुझे हमेशा लगा कि अरे, ये तो अपने ऋग्वेद और अथर्ववेद के मृत्यु सूक्त में मिलने वाली आस्था से अलग नहीं है। वैदिक जन भी तो अपने पूर्वजों के यम लोक में सुखपूर्वक वास की कामना करते थे, उनके लिए भोजन भेजते थे।
यहां केवल स्वर्ग है, नरक की कल्पना बाद में आई होगी। यहां यम पहला मानव है, जो पूर्वजो की देख रेख के लिए सर्वप्रथम स्वर्ग पहुंच गया था।
उपनिषद में यम तो नचिकेता को ज्ञान देता है, वह इतर काल जैसा भयानक नहीं है।

मेरी तर्क शक्ति सवाल करती कि क्या वास्तब में पूर्वज होते हैं, यदि होते हैं तो रहते कहां हैं? क्यो नहीं वैज्ञानिकों की दूरबिन से दिखते, क्यों नहीं राकेटों से टकराते?
लेकिन फिर तर्क शास्त्र ही बताता है कि हमारे देह के जीन नामक जो ज्ञानतंतु है, वह न जाने कितनी पीड़ियों को पार कर हमारे पास पहुंचता है, न जाने कितने पूर्वज अपने गुणों के रूप में हमारी देह में ही वास करते हैं, देह ब्रह्माण्ड जो है।
हम अनजानी स्मृतियों, कम पहचानी आदतों को अपने समेटे रहते हैं, जो वस्तुतः हमारे पूर्वजों की होती हैं। यानी कि पूर्वज हैं,और ये कौए हमारी स्मृतियां ही तो हैं। तभी मैं पिता को याद कर गा उठती हूं‍

पिता दिवस था,
पितृ तर्पण तो नहीं
कि दो पुए, दो पूड़ी
तुम्हारे हिस्से की कौए को
खिला कर
हाथ पौंछ लूँ
तुम्हारी पहली याद घनेरी
दो शाखाओं की
लिपटन थी, जिनमें से
सेंध मार कर रोशनी की ओर
लपकना, और बाहर की
बेचैनियों को
महसूसना, मेरा छिपा छिपी
का खेल था।

तुमने रेखाएं खींच दी थीं,
हमारे
इर्द गिर्द, जमाने की गर्द
अपनी आँखो में लगा ली तुमने
और हमारी आँखो को पानी से
लबालब कर दिया,
तुम्हारे कदमों से मेरी धरती
दरकती
हमारी कल्पनाओं में
तुम्हारी नीन्द सेंध मारती
तुम पिता थे, ये बहुत बाद
समझ आया।
जब तुम हमारे स्वाद के निवालों को
बड़ी शिद्दत से इंतजार करवाने लगे
या फिर तब, जब कि मेरे बेकार से तमगे को भी
अपने सीने पर सजाने लगे
पिता थे तब, हमारी भटकन तुम्हारे
पाँवों में फांस बन गई,
लेकिन जब तुम वास्तब में
पिता से बच्चे बन गए.

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