अग्नि आलोक
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कवि और भगवान

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एक जरूरतमंद रोगी मंदिर में मन्नत मांगते हुए – ‘हे ईश्वर मेरी कब सुनोगे ! 4 महीने हो गए आपके दर पर आते-आते. अब तो मेरी किडनी जवाब देने ही लगी है. मेरे लिए किडनी का इंतजाम करवा दो ना ! एक बार सुन लो मेरी !’

दूसरा जरूरतमंद रोगी नमाज पढ़ते हुए – ‘या अल्लाह, तू बड़ा रहमदिल है. अपने बंदे पर रहम कर. एक अदद लीवर की जरूरत है. या अल्लाह भेज दे कोई मददगार !’

दोनों की प्रार्थनाएं ईश्वर और अल्लाह के पास पहुंच गई. ईश्वर के प्रतिनिधि बने विष्णु जी, अल्लाह को फोन लगाया – हेलो हेलो ! फोन अंगेज जा रहा था.

ब्रह्मा जी को फोन लगाए और बोले – अब परेशान हो गया हूं. अब लगता है भक्त की मांग पूरी ही करनी पड़ेगी. 4 महीने से मेरे मंदिर का चक्कर लगा रहा है. मेरे अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है.

ब्रम्हा जी बोले – तो ठीक है दिक्कत क्या है  नारद जी को भेज दो.

नारद जी नारायण नारायण करते हुए पृथ्वीलोक को कूच कर गए और वहां से एक कवि को उठा लिया, जिसने जल्द ही कविता लिखी थी – ‘मेरी देह से मिट्टी निकाल लो.’

कवि महाशय को थोड़ी देर बाद होश आया तो देखा आईसीयू में पड़े हैं. बोले – ‘मुझे यहां कौन और कैसे लाया ?’

नारायण नारायण करते हुए नारद जी चले आए, बोले – ‘बेटा तेरी मंशा पूरी करने आए हैं.’

कवि – ‘मेरी मंशा कौन सी मंशा ?’

नारद जी – ‘वही जो तूने कविता में लिखी थी. वह क्या थी कि मेरी देह से यह निकाल लो, वह निकाल लो…, तो हम अपने भक्तों की मांग पूरी करने के लिए तुम्हारी देह से किडनी, लीवर, आंखें आदि निकालने की सोच रहे हैं !’

कवि – ‘लेकिन मैंने किडनी, लीवर और आंखों की बात तो कभी की ही नहीं. हे भगवान ! मैं क्या जानता था कविता की बात भी सच होने लगेगी ! वह तो भाव व्यक्त करने थे तो मैंने व्यक्त कर दिए. ईश्वर मुझे बचाओ मैं किस मुसीबत में पड़ गया !’

कवि महोदय फिर से नारद जी से बोले – ‘लेकिन आपको कैसे पता चला ? क्या मेरी कविता वहां तक भी फेमस है ? क्या विष्णु जी और ब्रह्मा जी मेरी कविता पढ़ते हैं ? अरे वाह ! यह तो अद्भुत बात है !’

नाराद जी – ‘बिल्कुल पढ़ते हैं. वह अपने हर भक्त की रचना पढ़ते हैं, बल्कि उन्हें लिखने की प्रेरणा भी वही देते हैं. तुम ही बताओ क्या उनके प्रेरणा के बिना तुम कुछ भी लिख सकते हो !’

कवि – ‘अरे नहीं ऐसा तो मैंने नहीं कहा. ईश्वर का वरदहस्त तो सर पर सभी को चाहिए !’

नारद – ‘हां और जिस रचनाकार की कोई कविता ज्यादा वायरल हो जाती है, उनके हर भक्तों के मुंह से वही कविता सुनाई देती है. उस कविता को नारायण खास समय देकर पढ़ते हैं. तुम्हारी ‘देह से निकाल लो’ कविता बहुत ज्यादा वायरल हो गई है इसीलिए नारायण प्रभु ने कहा है कि तुम्हारी मांग को पूरी कर ली जाए. इधर तुम्हारी इच्छा भी पूरी हो जाएगी, उधर दो-चार और भक्तों का भला हो जाएगा !’

कवि – ‘हे ईश्वर यह क्या कह रहे हैं ! मैं बिना किडनी और बिना लीवर के कैसे जिंदा रहूंगा ?’

नारद – ‘क्या बात कर रहे हो तुम्हें जिंदा भी रहना है क्या ? चलो एक किडनी के सहारे भी जी सकते हो और लीवर केवल आधा लिया तो आधे लीवर के सहारे जी सकते हो…और जो तुम देह से मिटटी और जल और वायु निकालने की गुहार लगा रहे हो, क्या उसके बिना तुम जिंदा रह सकते हो ? बोलो बोलो कवि महोदय बोलो … ?’

कवि – ‘नारद जी, आप भी ब्राह्मण, मैं भी ब्राह्मण ! क्या अपने ब्राह्मण भाई का जान लोगे ? कोई उपाय बताओ इस मुसीबत से निकलने का ? वह कविता तो मैंने बस यूं ही लिख दी थी. मुझे क्या पता था कि इस तरह की नौबत आ जाएगी !’

नारद – ‘चल बच्चा तूने ब्राह्मण का वास्ता दिया है तो तुझे उपाय तो अब बताना ही पड़ेगा. जा तू भी चैन से रह. तुझे मैं मुक्त करता हूं. जा वापस जा और सुन दोबारा ‘यह निकाल लो, वह निकाल लो’ टाइप की कविता मत लिखना…समझा !’

कवि – ‘बिल्कुल नहीं कान पकड़ता हूं !’

  • सीमा मधुरिमा
    लखनऊ
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