सुधा सिंह
वस्तुओं से अपेक्षा
की जा सकती है,
व्यक्तियों से नहीं।
जिंदा आदमी,
रोज़ बदलता जाता है।
इसलिए लोग वस्तुओ पे
मालकीयत करने लगते हैं।
तिजोरी में,
रोज रुपया बढ़ता जाता है।
जैसे जैसे आदमी में
नासमझी से भरी समझ
बढ़ती जाती है वो व्यक्तियों
से संबंध कम औरवस्तुओ
से संबंध बढ़ाए चला
जाता है।
इसलिए,
बड़े परिवार टूट गए।
व्यक्तिगत परिवार निर्मित हुए।
पति पत्नी और एक दो बच्चे
पर्याप्त।
लेकिन,
अब वो भी बिखर रहे हैं।
क्यूंकि,
पति पत्नी में भी संबंध
जटिल होता जाता है।
आनेवाले,.
समय में शादी बचेगी
ये कहना कठिन है।
डर यही है कि,
वो बिखर जाएगी।
लेकिन वस्तुओ का
परिग्रह बढ़ता जाता है।
एक आदमी दो मकान
बना लेता है।
दस गाड़ियां रख लेता है।
हजार ढंग के कपड़े पहन
लेता है ,घर में समा लेता है।
चीजे इकठी,
करता चला जाता है।
चीजों पर मलकियत
सुगम मालूम पड़ती है।
कोई डर नही, झंझट नही।
चीजे जैसी है वैसी रहती हैं।
जो कहो वैसा मानती हैं।
आदमी अपने चारो तरफ
वस्तुओ का एक जाल इकट्ठा करके बैठ
जाता है बीच में कि मैं मालिक हूं।
सूत्र ये है कि अ परिग्रही चित्त
वस्तुओ की मालकियत में रस
नही लेता।
उपयोगिता अलग बात है।
वस्तुओ के साथ जो गुलामी
के संबंध निर्मित नही करता।
वस्तुओं के साथ जिसका
कोई रोमांस नही चलता।
हमने एक मित्र के,
वरांडे में एक स्कूटर को
रखा हुआ देखा है।
दो चार बार
मैने पहले पूछा भी कि
स्कूटर बिगड़ गया क्या?
वो बोले,
दुश्मन का भी न बिगड़े।
स्कूटर बिगड़ा नही।
कई बार उनको देखा कि,
वरांडे में स्कूटर को
स्टार्ट करके फिर बंद करके
चले जाते हैं।
मैने पूछा बात क्या है?
कभी निकालते नही?
स्कूटर क्या,
उनकी प्रेयसी है।
उसको,
पोंछ पांछ के रख देते है,
निकालते नही।
निकलते वो,
अपनी साइकिल हैं।
मैने पूछा,
स्कूटर किस लिए है?
वो बोले कि,
कभी समय बेसमय!
आज तो वर्षा हो रही है ,
नाहक,
रंग खराब हो जाएगा।
कभी धूप तेज होती है तो
नाहक रंग खराब हो जाएगा।
मैने उनका,
स्कूटर निकलते नही देखा।
सभी के पास स्कूटर जैसी
थोड़ी बहुत चीजे होंगी।
वो आप,,,
रखे हुए हैं संभाल के।
स्त्रियों के पास बहुत हैं।
उसका कारण है।
क्यूंकि पुरुष तो बाहर के जगत में
व्यक्तियों से संबंध बना लेते हैं।
स्त्रियों के हमने सब तरह के संबंध
तुड़वा दिए।
उनको घर के भीतर बंद कर दिया
है।
इसलिए स्त्रियों की चाह वस्तुओ
पे ठहर जाती है।
मेरे पास स्त्रियां आती है ,
कहती हैं सन्यास हमे लेना है
लेकिन,
तीन सौ साड़ियां हैं।
और कोई दिक्कत नही।
सिर्फ ये है कि तीन सौ
साड़ियों का क्या होगा?
एक का मामला नही,
कई स्त्रियों ने मुझसे कहा है।
इसका कारण है कि जब व्यक्तियों
से संबंध नहीं है तो स्त्रियां वस्तुओ
से संबंध बना लेती है।
वस्तुओ की दीवानी।
पति को सजा हो जाए लेकिन
उनको हीरे की अंगूठी चाहिए।
चलेगा अगर पति जेल जाता है
तो,
साल भर बाद वापिस आ जाएगा।
लेकिन हीरे की अंगूठी।
जिस दिन हीरे की अंगूठी
हो तो ठीक।
ना हो तो घास की अंगूठी भी
बनाके पहनी जा सकती है।
और ना हो तो नंगी अंगुली
का भी अपना सौंदर्य है।
ऐसा जिस दिन हो जाए
तो अ परिगृही चित है।
सरल चित है।
भागा हुआ नही, आसक्त नही,
विक्षिप्त नही।
अपरिग्रही चित,
एकांत में जीने वाला चित,
अनासक्त चित ही स्वानुभूति के
सागर में उतर सकता है।d