*कश्मीर समस्या के पीछे का सच**भाग 9*
*अजय असुर
27 अक्टूबर को जम्मूकश्मीर के भारत में विलय के बाद पाकिस्तान ने पूर्व की तरह अपनी हरकतों को अंजाम देता रहा और 1948 में पाकिस्तान ने कबाइलियों के वेश में अपनी सेना को भारतीय कश्मीर में घुसाकर समूची घाटी कब्जाने का प्रयास करते रहे और इधर भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाते हुए, उनके द्वारा कब्जा किए गए कश्मीरी क्षेत्र को पुनः प्राप्त करते हुए तेजी से आगे बढ़ रही थी कि इसी बीच में ही 31 दिसंबर 1947 को नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र संगठन (UNO: United Nations Organisation) से अपील की कि वह पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी लुटेरों को भारत पर आक्रमण करने से रोके, क्योंकि पाकिस्तान कबायली हमलावरों की सहायता कर रहा है। जिसके फलस्वरूप यू एन ओ द्वारा 1 जनवरी 1949 को भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध-विराम की घोषणा कराई गई और भारतीय सेना के हाथ बंध गए जिससे पाकिस्तान द्वारा कब्जा गए शेष क्षेत्र को भारतीय सेना प्राप्त करने में फिर कभी सफल न हो सकी। आज कश्मीर में आधे क्षेत्र में नियंत्रण रेखा है तो कुछ क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सीमा।
21 अप्रैल 1948 को यूएन ने भारत-पाकिस्तान के बीच समझौता के लिये तीन प्रस्ताव रखे जिसके तहत पहली- सीजफायर, दूसरी- युद्धविराम, तीसरी- अन्य ( जनमत संग्रह की बात)। तीनों प्रस्ताव के तहत सबसे पहले सीजफायर लागू होना था, फिर युद्धविराम और सबसे आखिर में जनमत संग्रह पर बात। इन प्रस्तावों में पहले प्रस्ताव को 31 दिसंबर 1948 को सीजफायर लागू कर दिया गया। और आगे चलकर युद्ध विराम पर भी तैयार हो गये पर जनमन संग्रह पर दोनों ही देश आज तक खामोश क्योंकि उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि यदि जनमत संग्रह हो गया तो दोनों के ही हिस्से से कश्मीर चला जायेगा। पर दोनों ही देश विस्तारवादी होने के कारण ऐसा होने नहीं देंगे।
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् ने इस समस्या के लिए पाँच राष्ट्रों चेकोस्लोवाकिया, अर्जेण्टाइना, अमेरिका, कोलम्बिया और बेल्जियम के सदस्यों का एक दल बनाया, इस दल को मौके पर जाकर स्थिति का अवलोकन करना था और समझौते का मार्ग ढूँढना था। संयुक्त राष्ट्र संघ के दल ने मौके पर जाकर स्थिति का अध्ययन किया। 13 अगस्त 1948 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा गठित आयोग ने प्रस्ताव रखा कि राज्य का भविष्य यहाँ की जनता की मर्जी से तय किया जाय। पाकिस्तानी सैनिकों की कश्मीर में मौजूदगी साबित होने पर आयोग ने पाकिस्तानी सैनिकों, कबायलियों व अन्य पाकिस्तानी नागरिकों की वापसी की सिफारिश की। यह भी तय हुआ कि पाकिस्तान द्वारा अपनी सेना को हटा लेने के बाद भारत भी इस क्षेत्र से अपनी सेना को वापस बुला लेगा। लम्बी वार्ता के बाद दोनों पक्ष 1 जनवरी 1949 को युद्ध विराम के लिए सहमत हो गये। इस स्थिति के बावजूद कि इतना बड़ा भू-भाग पाकिस्तान के नियंत्रण में था। दोनों देशों की सरकारों द्वारा इस युद्ध विराम रेखा को ही मान्यता प्रदान कर दी गयी। बाद के दिनों में दोनों ही देशों की सरकारों ने इसी युद्ध विराम रेखा को ही अनौपचारिक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा के रूप में स्वीकार कर लिया है, और सीजफायर के बाद जम्मू-कश्मीर का दो तिहाई हिस्सा भारत के पास रहा, वहीं एक तिहाई हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा हुआ और वो कब्जा अभी भी बना हुआ है।
इस तरह कश्मीर 2 हिस्सों में बंट गया। कश्मीर का जो हिस्सा भारत से लगा हुआ था, वह जम्मू-कश्मीर नाम से भारत का एक प्रांत हो गया, वहीं कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान और अफगानिस्तान से सटा हुआ था, वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) कहलाया। पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) को पाकिस्तान द्वारा प्रशासनिक तौर पर 2 हिस्सों- आजाद कश्मीर और गिलगिट-बाल्टिस्तान में बांटा गया है।
*पहला हिस्सा पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर)*
पीओके को लेकर पाकिस्तान की दोहरी नीति है। एक तरफ तो वह इसे आजाद कश्मीर कहता है तो दूसरी ओर यहां के प्रशासन और राजनीति में सीधा दखल कर यहां के सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने में लगा है। यहां पर बाहरी लोगों को बसा दिया गया है। पीओके का शासन पाकिस्तान द्वारा सीधे तौर पर संचालित होता है। आजाद कश्मीर के नाम पर एक कठपुतली प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया जाता है, जो कि पाकिस्तानी शासन का हुक्म मानता है। जो सीधे पाकिस्तान सरकार के इशारे पर काम करता है।
1974 के आजाद जम्मू व कश्मीर एक्ट ने शासन की संसदीय प्रणाली का विधान रखा इस एक्ट के अन्तर्गत पाकिस्तान के विधि मंत्रालय ने आजाद जम्मू व कश्मीर के लिए नया संविधान पेश किया। इसे आजाद कश्मीर के राष्ट्रपति और विधानसभा द्वारा पारित कर दिया गया। यह राष्ट्रपति और विधानसभा 1970 के आजाद कश्मीर एक्ट के तहत अस्तित्व में आयी थी। इसके बावजूद संविधान इस प्रकार का बना, जिसमें चुनी हुई सरकार के पास आजादी से काम करने की बहुत कम गुंजाइश है। संविधान के सैक्शन 7 के पैरा 2 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति या राजनीतिक पार्टी को राज्य के पाकिस्तान में विलय की विचारधारा के खिलाफ प्रचार करने या ऐसी गतिविधियों में हिस्सा लेने की इजाजत नहीं दी जायेगी।” इसी प्रकार संविधान में कहा गया है कि बोलने की स्वतंत्रता आजाद जम्मू व कश्मीर की सुरक्षा और पाकिस्तान के साथ दोस्ताना संबंधों के हितों में कुछ आवश्यक पाबंदी लगाती है। 13 सदस्यीय आजाद जम्मू व कश्मीर परिषद में, जिसका अध्यक्ष पाकिस्तान का प्रधानमंत्री ही हो सकता है, सरकार 6 और सदस्यों को मनोनीत कर सकती है। इस प्रकार परिषद में पाकिस्तान की सरकार का बहुमत रहता है। इसके निर्णयों का पुनरीक्षण न्यायपालिका नहीं कर सकती और इसकी बैठक इस्लामाबाद में होती है। धारा-50 पाकिस्तान सरकार को यह अधिकार देती है कि वह आजाद कश्मीर की सरकार व विधानसभा को भंग कर दें। इसके साथ ही पाकिस्तान सरकार द्वारा नियुक्त मुख्य सलाहकार (जो सामान्यतः संयुक्त सचिव के दर्जे का होता है) के अधीन सभी लोग होते हैं। बिना मुख्य सलाहकार की सलाह लिये हुए मंत्रिमंडल के समक्ष स्वीकृति के लिए कोई भी कानून नहीं पेश किया जा सकता। मतभेद की स्थिति में पाकिस्तान सरकार के कश्मीर मामलों संबंधी मंत्रालय से पूर्व स्वीकृति के बिना कानून को नहीं पेश किया जा सकता है।
पी ओ के की असेम्बली में 45 सदस्य चुने जाते हैं जिनमें 12 सदस्य भारतीय जम्मू और कश्मीर से आये रिफ्यूजी होते हैं। आठ सदस्य मनोनीत होते हैं जिनमें 5 महिलाओं के लिए आरक्षित होते हैं और वहां एक प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी है। पाक अधिकृत कश्मीर का प्रमुख यहीं का राष्ट्रपति होता है जबकि प्रधानमंत्री मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता हैं जो कि मंत्रियों की एक परिषद द्वारा समर्थित होता हैं। लेकिन पीओके को पाकिस्तान के बाहर इस दावे को मान्यता नहीं मिली है। पीओके की राजधानी मुजफ्फराबाद है। इसमें 8 ज़िले, 19 तहसीलें और 182 संघीय काउन्सिलें हैं। पाकिस्तान इसे आजाद कश्मीर के तौर पर विश्व मंच पर पेश करता है, पर आजाद कश्मीर की मान्यता किसी और देश ने नहीं दिया है इसीलिये इसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर ही कहा जाता है। पीओके की सीमा पश्चिम में पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनवाला से, उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान के वखन कॉरिडोर, उत्तर में चीन के जिंगजियांग ऑटोनॉमस रीजन और पूर्व में जम्मू-कश्मीर और चीन से मिलती है।
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के हालात बहुत अच्छे नहीं हैं, जैसे भारत अधिकृत कश्मीर में कश्मीरियत और आजादी का नारा प्रधान है वैसा ही हाल पी ओ के का भी है। पाक अधिकृत क्षेत्र में भी कश्मीरी लोगों पर धार्मिक पहचान की तुलना में कश्मीरी पहचान हावी है। वे धार्मिक आधार पर अपनी राष्ट्रीयता की पहचान को खोने के लिए तैयार नहीं है। पी ओ के में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो पाकिस्तान के साथ विलय के लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं हैं। यहाँ स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल खलिक अंसारी ने स्वतन्त्र राष्ट्र की आजादी के लिए आंदोलन शुरू किया। जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट की स्थापना करने से पहले अमानुल्लाह खाँ ने 13 वर्षों तक उनके नेतृत्व में कार्य किया था। जे. के. एल. एफ. के अलावा भी अन्य संगठन हैं जो आजादी हासिल करने के लिए अभियान चला रहे हैं। आजादी समर्थक कश्मीर डेमोक्रेटिक एलायन्स की चार पार्टियों के उम्मीदवारों ने जब पाकिस्तान विलय के साथ सहमति रखने की घोषणा पर दस्तखत करने से इंकार कर दिया तो उनके नामांकन खारिज कर दिये गये। पाकिस्तान के प्रमुख डॉन अखबार के अनुसार कश्मीर डेमोक्रेटिक एलायन्स के उम्मीदवारों ने अपने नामांकन पत्र में पाकिस्तान के स्थान पर कश्मीर भरा था। इस कश्मीर डेमोक्रेटिक एलायंस में चार पार्टियों शरीक हैं- नेशनल लिबरेशन फ्रंट, नेशनल अवामी पार्टी, नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी और नेशनल स्टूडेन्ट्स फेडरेशन है।
आजाद कश्मीर के प्राकृतिक संसाधनों के पाकिस्तान द्वारा दोहन के खिलाफ प्रतिरोध की आवाज निरंतर उठ रही है। मंगला बाँध द्वारा पैदा की गयी बिजली पाकिस्तानी इलाकों को तो पहुचायी जा रही है परंतु स्वयं आजाद कश्मीर को बाँध से हासिल तमाम सुविधाओं से वंचित रखा गया है। पी ओ के से भी ज्यादा बदतर स्थितियाँ उन क्षेत्रों की है जो उत्तरी क्षेत्र कहलाता है। यहाँ पाकिस्तान द्वारा सीधे शासन किया जाता है। पाक अधिकृत कश्मीर का बढ़ा भू-भाग इसी क्षेत्र में है। इन्हें गिलगित व बलतिस्तान के नाम से जाना जाता है। पाकिस्तान द्वारा इन्हें अपने नियंत्रण में लेने के बाद से ही यह क्षेत्र अपने अधिकारों व अपनी पहचान के लिए संघर्षरत हैं। इन क्षेत्रों का अपना कोई संविधान नहीं है। इस क्षेत्र के लोग नागरिक अधिकारों से भी वंचित है। इन लोगों के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए पी ओ के के नेताओं ने गिलगिट का दौरा भी किया। इस इलाके के लोग भी अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत में ही नहीं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भी आजादी समर्थकों का दमन किया जाता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि आम तौर पर कश्मीरी धार्मिक दृष्टिकोण से संघर्षरत नहीं है और न ही वे पाकिस्तान समर्थक है जैसा कि हिन्दू कट्टरपंथियों द्वारा हमारे देश में प्रचारित किया जाता है। यदि कश्मीरी धार्मिक दृष्टिकोण से या पाकिस्तान के साथ मिलने के पक्षधर होते तो पाक अधिकृत कश्मीर के कश्मीरी कभी भी आजादी /स्वतंत्र कश्मीर की बात नहीं करते। यहां पीओके में पख्तूनी, उर्दू, कश्मीरी और पंजाबी जैसी भाषाएँ प्रमुखता से बोली जातीं हैं। पाक अधिकृत कश्मीर (POK) के पास अपना सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट भी है।
*दूसरा हिस्सा गिलगिट-बाल्टिस्तान*
गिलगिट-बाल्टिस्तान की सीमा पश्चिम में खैबर-पख़्तूनख्वा से, उत्तर में अफ़ग़ानिस्तान के वख़ान कॉरिडोर से, उत्तरपूर्व में चीन के शिन्जियांग प्रान्त से, दक्षिण में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर और दक्षिणपूर्व में भारत के जम्मूकश्मीर राज्य से लगती हैं। गिलगिट व बाल्टिस्तान को पहले पाकिस्तान में नॉर्दर्न एरिया कहा जाता था और इसका प्रशासन संघीय सरकार के तहत एक मंत्रालय चलाता था। लेकिन 2009 में पाकिस्तान की संघीय सरकार ने यहां एक स्वायत्त प्रांतीय व्यवस्था कायम कर दी जिसके तहत मुख्यमंत्री सरकार चलाता है। अब इलाके की अपनी असेंबली है जिसमें कुल निर्वाचित 24 सदस्य होते हैं। इस असेंबली के पास बहुत ही सीमित अधिकार हैं या कहें कि न के बराबर हैं। यहां पर शियाओं को किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं है। अलग-अलग समय में वे भारतीय कश्मीर में आकर बस गए हैं और अभी भी उनका आना लगातार जारी है।
चौदह जिलों में बंटा गिलगिट-बल्टिस्तान स्ट्रेटेजिक और सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। मीरपुर, मुज्जफराबाद की सीमा केवल पाकिस्तान से मिलती है लेकिन गिलगिट बल्टिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन और भारत चारो दिशाओं में दौड़ते हैं। दुनिया की 25 सबसे ऊंची पहाड़ की चोटियों में से आठ इसी इलाके में है जिसमे माउंट एवरेस्ट के बाद दूसरी सबसे ऊंची पहाड़ की चोटी के-2 (केटू) भी शामिल है। पोलर क्षेत्र का सबसे बड़ा ग्लेशियर और दूसरा सबसे बड़ा देवसाई प्लैटू भी इसी इलाके में है। खदानों के हिसाब से ये इलाका बहुत धनी है। यहां प्रचुर मात्रा में सोना, माइका, तांबा और कीमती पत्थर आदि खनिज अयस्क पाए जाते हैं। पर्यटन के हिसाब से यह दुनिया के सबसे खूबसूरत इलाकों में से एक है।
इन दोनों इलाकों के राजनीतिक अस्तित्व पर ध्यान दें तो मीरपुर मुजफ्फराबाद वाले क्षेत्र को विशेष दर्जा प्राप्त है और इसे आजाद कश्मीर भी कहा जाता है और आधिकारिक तौर से पाकिस्तान से आये लोगों के बसने पर पाबंदी थी, लेकिन गिलगिट बल्टिस्तान से जुल्फिकार अली भुट्टो के काल में ये सुविधा छीन ली गई थी। इस इलाके ने हर सम्भव कोशिश की गई कि उनकी पहचान बदल कर पाकिस्तान के करीब लाया जाए। इस इलाके में बाहर से लोग बसाए गए। यही कारण है कि 1998 से 2011 के बीच गिलगिट-बल्टिस्तान की जनसंख्या 63 प्रतिशत बढ़ी वहीं मीरपुर मुजफ्फराबाद इलाके की जनसंख्या केवल 23 प्रतिशत बढ़ी। मीरपुर, मुजफ्फराबाद और गिलगिट बल्टिस्तान की ज्यादातर जनसंख्या मुस्लिम है, लेकिन गिलगिट के मुसलमानों का रहन-सहन पाकिस्तानी मुसलमानों से अलग है। इस क्षेत्र के मुसलमान मुख्य रूप से शिया, नूरबक्शी, इस्माइली और तालिबानी हैं। नूरबक्शी तो दुनिया भर में सिर्फ इसी इलाके में पाए जाते हैं। धर्म के हिसाब यहां के लोग मुसलमान हैं। यहां बोली जाने वाली भाषाएं हैं- शिना, बाल्टी, वाखी, खोवार, गुजारी, बुरूशास्की, पुरिकी, कश्मीरी और पश्तो।
*शेष अगले भाग में…*
*अजय असुर*