अग्नि आलोक
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बदतमीज़ औरतें

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हम नहीं पहनतीं पैरों में पायल
जिससे तुम्हें हो आभास
हमारी मौज़ूदगी का
और हमें हो एहसास
अपने दायरे का

हम नहीं पहनतीं नाक में नथनी
जिससे लगे पहरा
हमारी सांस पर
और हमें हो एहसास
अपने क़ैद होने का

हम नहीं पहनतीं हाथों में चूड़ियां
जिसकी खनक नज़र रखे
हमारी हर बात पर
और हमें हो एहसास
अपने नज़रबंद होने का

हम नहीं पहनतीं कोई भी चोला
किसी भी धर्म का
जिससे हमें बांटा जाए
और हमें हो एहसास
इन्सान होने से पहले
मज़हबी होने का

हम नहीं लगाती आंखों में काजल
जिसके लगाने से
राहें हो जाएं धुंधली
और हमें हो एहसास
अपने भटके होने का

हम नहीं लगातीं मांग में सिंदूर
जो खिंचता है लकीर
एक सीमा बनकर
और हमें हो एहसास
अपनी हदों का

हम नहीं लगातीं माथे पर बिंदी
जो लगाए हम पर मुहर
किसी की जागीर होने की
और हमें हो एहसास
अपने वस्तु होने का

हम नहीं रिझातीं किसी भी मर्द को
कठपुतली की तरह
हम नहीं हो सकतीं मादक
शराब की तरह
हम ढूंढती हैं ख़ुद का वज़ूद
ख़ुद के नज़रिए से
हां हम हैं,
बदतमीज़ औरतें !

  • रुपाली जाधव
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