अग्नि आलोक
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…..तो मंदिरों के अवशिष्ट फूलों से कंपोस्ट खाद बनाने ही होंगे !

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निर्मल कुमार शर्मा

अपने धर्मभीरू, अंधविश्वासी,पाखंडी और लकीर के फकीर की तर्ज पर चलने वाले देश में यहां स्थित 12लाख मंदिरों में चढ़ाए फूलों की ,चढ़ाने के बाद उन फूलों का क्या दुर्दशा होती है,वे मंदिर परिसर में ही पानी और दूध से मिलकर सड़कर मंदिर के कुछ क्षेत्र में असह्य दुर्गंध को फैलाए रहते हैं,जब यह शर्मनाक स्थिति असह्य हो जाती है तब वहां की स्थानीय नगरपालिका प्रशासन उसे या तो निकटवर्ती नदी में प्रवाहित करने का बिल्कुल असभ्य तरीका अपनातीं हैं या कहीं गहरे गड्ढे खोदकर उसमें दबा देतीं हैं

             ये दोनों ही कचरा निस्तारण की विधियां पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अत्यंत संहारक हैं ! पहली वाली में तों हमारी नदियां जो कूड़े, रासायनिक कचरे,मृत जीवों के सड़े-गले, बजबजाते,असभ्य दुर्गंध की पीड़ा से कराह रहीं होतीं हैं ! उनमें एक ट्रक कूड़ा मिलाकर नदियों की वेदना को और बढ़ा दिया जाता है ! और दूसरे में प्रकारांतर से वायु प्रदूषण को और बढ़ा दिया जाता है !

             लेकिन अब इस देश के गाजियाबाद,नई दिल्ली बेंगलुरु,इंदौर,आगरा,लखनऊ,कोलकाता, मुंबई,चेन्नई,ग्वालियर आदि शहरों के कुछ पर्यावरण संरक्षण के प्रति अत्यंत चिंतित और प्रखर लोगों ने इस दिशा में अब बहुत ही बेहतरीन ,सार्थक,यथार्थवादी,सत्यपरक,मानवीय ,क्रांतिकारी,न्यायोचित,समसामयिक और जनहितकारी कदम उठाए हैं !

            अब तक इस देश में अपनी बेहतरीन स्वच्छता के मामले में कई सालों तक स्वच्छ शहर के मामले में प्रथम स्थान पर बरकार रहनेवाले मध्यप्रदेश के इंदौर शहर ने एक उत्कृष्ट प्रदर्शन करके इस देश के अन्य शहरों के लोगों को एक उत्कृष्ट विकल्प दिया है,जो अपने शहर के जगह-जगह कूड़े के ढेरों के दुर्गंध और बजाती नालियों के बीच रहने को अभिशापित हैं !

इंदौर के प्रसिद्ध खजराना गणेश मंदिर में हर दिन लगभग 300 से 500किलो तक व्यर्थ फूल निकलता है। इससे 50 किलो खाद हर दिन तैयार हो रही है। इंदौर नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह बताते हैं कि शहर के सबसे बड़े खजराना गणेश मंदिर में प्रशासन ने एक कंपनी को ठेका देकर फूलों से आर्गेनिक खाद बनाने की शुरुआत की। इसके लिये प्लांट लगाया गया है। यहाँ हर दिन 300 से 500 किलो फूल निकलते है।  इससे बनने वाली खाद की शहर में भारी डिमांड है।

            आम लोगों को आसानी से खाद मुहैया कराने के लिये अलग से काउन्टर भी शुरू किया गया है। यहाँ से हर दिन बड़ी संख्या में शहर के लोग अपने गमले, लॉन और बगीचों के लिये इस खाद को खरीदने पहुँच रहे हैं। नगर निगम प्रशासन के इस काम में शहर के लोग भी अब बढ़–चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। इसका एक बड़ा फायदा यह भी हुआ है कि इससे मंदिर परिसर सहित शहर को साफ़ सुथरा बनाने में भी लोगों की जागरूकता बहुत हद तक बढ़ गई है !

           भारत के इस अदने से शहर इंदौर के फूलमंडी के आंकड़े बताते हैं कि अकेले इंदौर शहर में हर दिन 5000 किलो फूलों की खपत होती है। 30 क्विंटल से ज़्यादा फूल मन्दिरों तथा पाँच क्विंटल फूलों का उपयोग लोग अपने घरों में पूजा–पाठ में करते हैं। इसके अलावा 15 क्विंटल फूलों का इस्तेमाल सजावट,शादी–ब्याह तथा विभिन्न प्रसंगों में किया जाता है। माली घनश्याम चौहान के मुताबिक नवरात्रि तथा गणेशोत्सव में फूलों की खपत करीब दोगुनी हो जाती है मतलब फूलों की आवक बढ़कर 100 क्विंटल तक पहुँच जाती है।

        इसके अलावा उज्जैन के सुप्रसिद्ध  महाकालेश्वर मंदिर में भी वहां श्रद्धालुओं द्वारा प्रतिदिन चढ़ाए गए 500 किलो फूल से अब जैविक खाद या कंपोस्ट खाद बनाई जा रही है। श्रावण मास में इनकी मात्रा बढ़ जाती है। यहाँ हर दिन करीब 200 किलो खाद बनाई जा रही है।

          मिडिया के अनुसार अब कुछ छोटे मन्दिरों और देव स्थानों के करीब रहने वाले किसानों ने भी खाली स्थान पर 10 फीट लंबा, 3 फीट चौड़े दो गड्ढे बनाकर उनमें से एक में फूल भरते हैं। एक गड्ढे में अमूमन 5 क्विंटल फूल भर सकते हैं। इनमें समय–समय पर डी–कम्पोजर बैक्टीरिया छिड़कते हैं और हल्का पानी डालते रहते हैं। इन्हें बोरे से ढक देते हैं। 20 दिन बाद इसे दूसरे खाली गड्ढे में डाल देते हैं। इससे 45 दिन में बहुत बेहतरीन खाद बनकर तैयार हो जाती है !

         एक मंदिर के पर्यावरण संरक्षक मानसिकता के पुजारी श्री शिवनारायण शर्मा बताते हैं कि देवी–देवताओं की प्रतिमाओं पर श्रद्धा भाव से लोग फूल चढ़ाते हैं। फूलों से खाद बनाया जाना इनके निपटान का बेहतरीन विकल्प है। इससे न तो मन्दिरों में गंदगी होती है और न ही ये किसी के पैरों में आते हैं न किसी की धार्मिक आस्था आहत होती है इससे सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे हमारे तालाब–नदियाँ आदि जलस्रोत भी गंदे और प्रदूषित नहीं होते हैं।

              इसी प्रकार मध्यप्रदेश के ही एक छोटे से शहर देवास में भी प्रसिद्ध चामुंडा माता मंदिर टेकरी के मन्दिरों में हर दिन निकलने वाले फूलों से खाद बनाई जा रही है। प्रशासन के इस काम की स्थानीय नागरिकों और श्रद्धालुओं ने भी सराहना की है। टेकरी के पिछले मार्ग पर फूलों से खाद बनाने का काम करीब दो साल पहले काम शुरू किया गया। यहाँ एक गड्ढा बनाकर उसमें नाडेप पद्धति से खाद बनाई जाती है या Manure is Prepared by NADEP Method.इस पद्धति में फूल और अन्य बेकार पदार्थों को इसमें डालकर रखा जाता है। इसमें केंचुए छोड़े दिए जाते हैं। केंचुओं की मदद से थोड़े ही दिनों में महीन जैविक खाद तैयार हो जाता है !

             इसे प्रारंभ करने वाले में इस जिले के  तत्कालीन जिला कलेक्टर आशुतोष अवस्थी बताते हैं कि इससे पहले इन चढ़े हुए फूलों और पूजन सामग्री से मंदिर और उसके आस-पास कचरा इकट्ठा हो जाया करता था, इससे मंदिर परिसर में सांस लेना भारी हो जाता था क्योंकि फूलों के पानी और दूध में सड़ने से खूब दुर्गंध उठती रहती थी लेकिन अब इस नवाचार से हर दिन फूलों को उठा लिये जाने से मंदिर परिसर की समुचित सफाई भी होती है और बढ़िया खाद भी बनती है !

            जैविक खाद उत्पादन के लिये 25 हजार रुपये लागत की मशीन भी लगाई गई है, जो फूलों की कम्पोस्ट खाद बनाती है। इससे मिलने वाली खाद को 15 रुपये प्रति किलो की दर से विक्रय भी किया जाता है। यह खाद बाज़ार में करीब 30 रुपये प्रति किलो में बिकती है। इसे खरीदने के लिये फिलहाल अच्छी मांग है।

               एक विकलांग कर्मी लेकिन बहादुर व्यक्ति कमल सिंह हर दिन थैला लेकर मंदिर में जाते हैं। प्रतिमा पर चढ़ने वाले हार,फूल,नारियल प्रसादी आदि सामग्री को एकत्र कर यहाँ से लेकर जाते हैं। अब इन फूलों को चार चक्रीय के एक इकाई टांके में डाल दिया जाता है। उस पर पानी का हल्का छिड़काव किया जाता है। इसमें गोबर और मिट्टी मिलाई जाती है, जब ये आधा सड़ जाता है तब लगभग हजार केंचुए इसमें छोड़ दिए जाते हैं। फिर भरे हुये टांके को प्लास्टिक या जूट के बोरों से ढंक दिया जाता है ताकि खाद बनाने की प्रक्रिया सुचारु रूप से हो सके और केंचुओं को अंधेरा पसंद वातावरण मिल सके।

          आस्था एवं श्रद्धा के पवित्र स्थल इसी देश के कुछ मंदिरों में जैविक कचरे का उचित निपटारा हो रहा है। वहीं खेती के लिये लाभदायक जैविक खाद और रोजगार के नये आयाम मिल रहे हैं। इस तरह की जैविक खाद का उपयोग कर किसान लाभान्वित हो सकते हैं। वहीं इस तरह की इकाई का निर्माण कर मुनाफा भी कमा सकते हैं और जमीन को बंजर होने से बचा सकते है।

          वनस्पति शास्त्र के एक सुप्रतिष्ठित प्रोफेसर ओपी अग्रवाल बताते हैं कि 2003 में जब पहली बार उन्होंने यह बात लोगों को बताई तो उनका खूब विरोध हुआ था लेकिन अब लोग इसके फायदे समझने लगे हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इस तरह बनाई जैविक खाद में गोबर खाद की तुलना में नाइट्रोजन,फास्फोरस तथा पोटेसियम की मात्रा अत्यधिक होती है !

              आगरा महानगर में दो मीट्रिक टन की क्षमता वाली विभिन्न मंदिरों से फेंके गए फूलों एक प्लांट को चलाने का करार आगरा नगर निगम ने इंडिया एग्रो ऑर्गेनिक आगरा, एनजीओ गुरु वशिष्ठ मानव सर्वांगीण विकास सेवा समिति के साथ किया है। इस कार्य हेतु एनजीओ ने हाथी घाट स्थित मंदिर पर महानगर के मंदिर प्रशासकों व शादी घरों के संचालकों के साथ-साथ गौशाला प्रबंधकों की संयुक्त बैठक में शपथ दिलाई थी कि बेकार फूलों और गाय के गोबर को खुले में नहीं फेकेंगे।

           एनजीओ के स्वयंसेवक मंदिरों व शादी घरों से वेस्ट फूलों का संग्रह करेंगे। वह महानगर के विभिन्न स्थानों से गाय और भैंस के गोबर को भी एकत्रित कर फूलों व गोबर से कंपोस्ट खाद बनाएंगे।

             इससे निगम एक पंथ तीन सकारात्मक उद्देश्य एक साथ पूरे होंगे,पहला फूलों से उठने वाली दुर्गंध से शहर को मुक्ति मिलेगी,दूसरा यमुना नदी प्रदूषण मुक्त होने से बचेगी और तीसरा खेती में रासायनिक खाद का भी का उपभोग धीरे-धीरे कम होता जाएगा। इस प्रोजेक्ट की लागत लगभग 16 लाख रुपए आई है जिस का खर्चा नगर निगम वहन करेगा।

           उक्त उदाहरण इसलिए दिए गए हैं ताकि इस देश के अन्य जिलों,राज्यों में स्थित मंदिरों से निकले लाखों टन बेकार फूल का कंपोस्ट खाद या धर्मी कंपोस्ट बनाने में सदुपयोग हो ! और हमारी जीवन दायिनी नदियों के साथ हमारे देश का पर्यावरण भी शुद्ध बना रहे ? कुछ जगह सुनने में आया है कि कुछ कथित धार्मिक गुंडों ने इस पर्यावरण संरक्षण के पुनीत और पवित्र कार्यक्रम को यह कहकर उसे बाधित किया कि इससे उनका कथित धार्मिक आस्था को आंच आ रही हैं ! 

              इन शातिर,समाज और पर्यावरण के विरोधी अशिष्टों से एक ही प्रश्न है कि स्त्रियों के लिए अति निर्मम और क्रूर सती प्रथा को इंसानियत को ध्यान में रखते हुए बंगाल के प्रसिद्ध समाजसेवी राजा राम मोहन राय ने अंग्रेज गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंन्टिक के सहयोग से बंद करवाया,क्या सती प्रथा भी ऐसे नरभक्षी दरिंदों और भेड़ियों की आस्था को आहत न होने देने के लिए पुनः चालू कर दिया जाय ?  

 -निर्मल कुमार शर्मा ‘गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक,सामाजिक, राजनैतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर स्वतंत्र,निष्पक्ष, बेखौफ,आमजनहितैषी,न्यायोचित व समसामयिक लेखन,संपर्क-9910629632, ईमेल – nirmalkumarsharma3@gmail.com

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