निर्मल कुमार शर्मा ‘
हाथी के दिखाने दांत कुछ और होते हैं और खाने के कुछ और होते हैं ,इसको मुक्त होगी ही जान और महसूस कर सकता है ! जबरन किसी पर अत्याचार करते हुए उसे सदा के लिए रोक नहीं सकते ! कालजई महापुरुष डाक्टर भीमराव अम्बेडकर ने इसी से क्षुब्ध होकर अपने लाखों अनुयाई यों के साथ बौद्ध धर्म अपनाने को बाध्य हुए थे,अब यूरोप की तरह भारत में भी जातिवादी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दत्तक पुत्र बीजेपी के साथ भारतीय सुप्रीम कोर्ट के जजों की जुगलबंदी होने के नाते ऐसा उटपटांग निर्णयों की बाढ़ सी आई हुई है !
भारतीय सुप्रीम कोर्ट में जिसमें एक भी दलित,एक भी अन्य पिछड़ी जाति का जज नहीं है अपना एक पक्षीय फैसला सुनाते हुए जबरन धर्मांतरण पर सख्त रुख दिखाते हुए आदेश जारी किया है कि ‘ इसे गंभीर मसला करार दिया और सरकार से एक सप्ताह के अंदर यह बताने को कहा कि वह ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए किस तरह के कदम उठा रही है। कोर्ट ने ठीक ही ध्यान दिलाया कि लालच देकर या किसी उपाय से मजबूर करके करवाया जाने वाला धर्मांतरण न केवल देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है बल्कि नागरिकों को संविधान से मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी बाधित करता है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की यह बात भी गौर करने वाली रही कि खासकर देश के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में इस तरह की काफी घटनाएं देखने को मिल रही हैं। ‘
‘सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे मामलों में आदिवासियों को इस बात का अहसास भी नहीं होता कि उनके साथ कोई साजिश हो रही है और उनके अधिकारों और अंत:करण की उनकी स्वतंत्रता पर डाका डाला जा रहा है। वे यही समझते हैं कि सब कुछ उनकी मदद के लिए किया जा रहा है। चूंकि सरकार को इन साजिशों की काफी हद तक जानकारी है, इसलिए यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि वह इन्हें रोकने के लिए किस तरह के उपाय कर रही है या करने की उसकी योजना है। ‘
‘लेकिन जहां तक धर्मांतरण का सवाल है तो याद रखना चाहिए कि यह जितना संवेदनशील है,उतना ही जटिल भी है। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देश से भी स्पष्ट है कि डर या लालच के जरिए होने वाला धर्मांतरण नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी बाधित करता है। यानी लोगों को धर्मांतरण के लिए लालच देने या उन्हें डराने धमकाने की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष कोशिशों को रोकना जितना जरूरी है, उतना ही महत्वपूर्ण यह सुनिश्चित करना भी है कि नागरिकों को अपने विवेक से स्वैच्छिक धर्मांतरण की आजादी पर किसी तरह का खतरा न महसूस हो। यह सावधानी इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हाल के वर्षों में समाज में धर्मांतरण को लेकर जो विमर्श उभरा है, उसमें ज्यादा जोर धर्मांतरण रोकने पर है। ‘
‘स्वैच्छिक धर्मांतरण की स्वतंत्रता कायम रखने का वैसा आग्रह नहीं दिखता है। यह भी याद रखने की जरूरत है कि अगर विभिन्न धर्मों के अनुयायियों में अपने अपने धर्मों की सर्वोच्चता का भाव असहिष्णुता की हदों को छूने लगता है तो विभिन्न धर्मों की खूबियों और कमियों पर स्वस्थ बहस की संभावना बाधित होती है। एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष समाज के लिए स्वस्थ बहस की इस जमीन को सुरक्षित बनाए रखना बहुत जरूरी होता है। निश्चित रूप से इसमें प्राथमिक भूमिका समाज के लोकतांत्रिक और प्रगतिशील तत्वों की ही बनती है। लेकिन सरकार को, अपने स्तर पर यह जरूर सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके नियम-कानून और तौर-तरीके समाज के इन लोकतांत्रिक और प्रगतिशील तत्वों की भूमिका को कमजोर करने वाले नहीं बल्कि इन्हें प्रोत्साहित करने वाले हों। ‘
भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि ‘जबरन धर्म परिवर्तन न केवल भारत सरकार को प्रभावित करेगा बल्कि धर्म की स्वतंत्रता और व्यक्तियों की अंतरात्मा को भी प्रभावित करेगा। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने इसे “बहुत गंभीर मुद्दा ” करार देते हुए केंद्र सरकार से 22 नवंबर के भीतर इस मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल कर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा, “धर्म के कथित परिवर्तन के संबंध में मुद्दा, अगर यह सही पाया जाता है, तो यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है जो अंततः राष्ट्र की सुरक्षा के साथ-साथ नागरिकों की धर्म और विवेक की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है। इसलिए, यह बेहतर होगा कि केंद्र सरकार अपना रुख स्पष्ट करे और इस बात का जवाब दाखिल करे कि इस तरह के जबरन, बल, प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए संघ और/या अन्य द्वारा क्या कदम उठाए जा सकते हैं। “
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि जबरन धर्म परिवर्तन न केवल भारत सरकार को प्रभावित करेगा बल्कि धर्म की स्वतंत्रता और व्यक्तियों की अंतरात्मा को भी प्रभावित करेगा। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने इसे “बहुत गंभीर मुद्दा” करार देते हुए केंद्र सरकार से 22 नवंबर के भीतर इस मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल कर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा, “धर्म के कथित परिवर्तन के संबंध में मुद्दा, अगर यह सही पाया जाता है, तो यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है जो अंततः राष्ट्र की सुरक्षा के साथ-साथ नागरिकों की धर्म और विवेक की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।
इसलिए, यह बेहतर होगा कि केंद्र सरकार अपना रुख स्पष्ट करे और इस बात का जवाब दाखिल करे कि इस तरह के जबरन, बल, प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए संघ और /या अन्य द्वारा क्या कदम उठाए जा सकते हैं। ” Also Read – ‘पत्नी वैवाहिक जीवन को पुनर्जीवित करना चाहती है ‘: सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498A के तहत पति की सजा बरकरार रखी; लेकिन सजा घटाई मामले की अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी। पीठ एडवोकेट और बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों से काला जादू, अंधविश्वास और जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कदम उठाने को कहा गया था। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि धर्म की स्वतंत्रता हो सकती है, लेकिन जबरन धर्मांतरण की स्वतंत्रता नहीं। “संघ द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं, अन्यथा यह बहुत मुश्किल है … अपना रुख बहुत स्पष्ट करें कि आप क्या कार्रवाई करने का प्रस्ताव रखते हैं। संविधान के तहत धर्मांतरण कानूनी है, लेकिन जबरन धर्म परिवर्तन नहीं।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेशित करते हुए कहा कि ‘आपको अभी हस्तक्षेप करना होगा। ‘ याचिकाकर्ता ने कहा कि पूरे देश में हर हफ्ते “गाजर और छड़ी “, काले जादू आदि के जरिए जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं सामने आती हैं। वास्तव में,इस तरह के जबरन धर्मांतरण के शिकार अक्सर सामाजिक और आर्थिक रूप से विशेषाधिकार प्राप्त लोग होते हैं, विशेष रूप से अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग। याचिका में कहा गया है कि यह न केवल संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 25 का उल्लंघन करता है, बल्कि धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के भी खिलाफ है, जो संविधान की बुनियादी संरचना का अभिन्न अंग है।
हालांकि, अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ और अन्य। डब्लूपी (सी ) संख्या 63/2022 जनहित याचिका में सरकार समाज के इन खतरों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई करने में विफल रही है। याचिका में प्रकाश डाला गया, “यह बताना आवश्यक है कि केंद्र को अनुच्छेद 15(3) के तहत महिलाओं और बच्चों के लाभ के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार है और अनुच्छेद 25 के तहत अंत :करण,मुक्त पेशा, अभ्यास और धर्म के प्रचार की स्वतंत्रता सार्वजनिक आदेश, नैतिकता, स्वास्थ्य और भाग- III के अन्य प्रावधान के अधीन है। इसके अलावा,निर्देशक सिद्धांत सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को सुरक्षित करने के लिए केंद्र को सकारात्मक विचार,अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और पूजा की स्वतंत्रता, स्थिति और अवसर की समानता और सबके बीचबंधुत्व, व्यक्ति की गरिमा,एकता और अखंडता को बढ़ावा देने के आश्वासन का विचार हैं। लेकिन, केंद्र ने प्रस्तावना और भाग- III में उल्लिखित उच्च आदर्शों को सुरक्षित करने के लिए कदम नहीं उठाए हैं। ”
मूल प्रश्न पर आते हैं कि आखिर धर्म की जरूरत ही क्या है ? धर्म एक बिल्कुल व्यक्तिगत मामला है,हर आदमी को यह स्वतंत्रता है कि वह इन धर्म के ठेकेदारों यथा मुल्ला – मौलवियों,पंडे -पुजारियों और पादरियों अधिगृहीत इस्लाम को माने, हिन्दू सनातनी को माने या ईसाई धर्म को अपनाए ! वैसे यह बात अब सर्वविदित है कि इन व्यर्थ के धर्म की चोंचलेबाजी की कोई जरूरत ही नहीं है, मनुष्य का वास्तविक धर्म इंसानियत है,जिसमें करूणा,स्नेह,भाईचारा,दया, मानवीयता के गुण समाहित हो,जबकि वास्तविकता यह है कि उक्त वर्णित इन धर्मों के अनुयायियों में उक्त लिखित मानवीय गुणों का सिरे से अभाव है, हिन्दू धर्म के अनुयायियों द्वारा इस्लाम धर्म मानने वाले मुसलमानों को खून के प्यासे रहते हैं,उसी प्रकार धर्मांध कट्टर मुसलमान हिन्दुओं के,इसी प्रकार ईसाई मुसलमानों के और मुसलमान ईसाइयों के ! इजरायल के येरूशलम नामक स्थान से ही क्रमशः यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म का उदय हुआ था लेकिन आगे चलकर इन तीनों धर्मों के अनुयायी एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए ! क्रूसेड वार यानी धर्म युद्ध इसके सबसे जीते-जागते उदाहरण हैं,जिनमें अब तक वास्तविक मुद्दों और महायुद्धों से भी ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं ! यथा प्रथम क्रूश युद्ध (1096-1099)द्वितीय क्रूश युद्ध (1147-1149),
तृतीय क्रूश युद्ध (1188-1192),चतुर्थ क्रूश युद्ध (1202-1204),पाँचवाँ क्रूश युद्ध (1228-29),छठा क्रूश युद्ध (1248-54) और सप्तम क्रूश युद्ध (1270-72) जिसमें करोड़ों लोगों को बिना वजह मौत के घाट उतार दिया गया !
हिन्दू धर्म तो जातिवादी वैमनस्यता, ऊंच-नीच, छूआछूत, अश्यपृश्यता और भेदभावपूर्ण व्यवहार से ही सांस लेता है ! यहां जातिवाद खत्म हो जाय तो हिन्दू धर्म का विलोपन निश्चित है, इसीलिए जातिवाद को दृढ़ करने के लिए धार्मिक संकीर्णता की चूड़ियों को कसा जाता रहता है चाहे हिन्दू धर्म के शातिर ठेकेदारों द्वारा और अब राज्य पालित सुप्रीमकोर्ट द्वारा !
ज्ञातव्य है कि हमेशा सत्ता और धर्म एक दूसरे के पूरक रहे हैं चाहे यूरोप के पोप वहां के राजा को गाड द्वारा आमजनता पर शासन करने के लिए भेजा हुआ प्रतिनिधि कहते थे और वहां के शासक बदले में पोप को गाड के प्रतिनिधि कहते थे, लेकिन सुप्रसिद्ध दार्शनिक रूसो ने इन बेवकूफी को सबके सामने अनावृत्त करके रख दिया ! उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है ! जनता को लूटने के लिए सत्ता और धर्म की यह जुगलबंदी मात्र है ! इसी से फ्रांस की क्रांति हुई और उसके बाद सोवियत संघ और दुनिया के आधे हिस्से में कथित मानसपुत्र भगवान,गाड और खुदा को नकारते हुए कम्युनिज्म व्यवस्था की स्थापना हुई !
हिन्दू धर्म से अन्य धर्मों में जाना केवल लोभलालच से नहीं,अपितु हिन्दू धर्म में घोर अमानवीयता की हद तक शोषण, छूआछूत अश्यपृश्यता भेदभावपूर्ण व्यवहार आदि हैं ! जिससे त्रस्त होकर दलित, आदिवासी आदि गरीब लोग कथित हिंदू धर्म का परित्याग कर देना चाहते हैं ! आज सुप्रीमकोर्ट के जजों की बहन -बेटियों पर दिन दहाड़े बलात्कार होने लगे,उनकी बगैर सहमति के राज्यों की पुलिस रात के अंधेरे में जलाकर खाक करने लगे,क्या तब भी इन जजों का व्यवहार यही होगा !
-निर्मल कुमार शर्मा ‘गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक,सामाजिक, राजनैतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर स्वतंत्र,निष्पक्ष, बेखौफ,आमजनहितैषी,न्यायोचित व समसामयिक लेखन,संपर्क-9910629632, ईमेल – nirmalkumarsharma3@gmail.com