*कश्मीर समस्या के पीछे का सच**भाग 14*
अजय_असुर
कश्मीर घाटी में कश्मीरी पण्डितों के साथ काफी जुल्म हुआ इस प्रकार की चन्द घटनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता है लम्बे समय से नफ़रत के सौदागरों ने जो जहर बोया है उसका कुछ न कुछ असर तो रहेगा ही। निश्चित ही ऐसी कुछ घटनायें घटी होंगी। उस दौर के जितनी भी इस तरह की घटनाएं घटी हैं अधिकतर के रिपोर्ट मौजूद हैं। पर कश्मीर घाटी में ऐसी कहानियां भी मौजूद हैं जिससे पता चलता है कि कश्मीर घाटी के कई कश्मीरी मुसलमानों ने कश्मीरी पण्डितों को बचाया भी था और कश्मीर का हर कश्मीरी मुसलमान नहीं चाहता था कि कश्मीरी पण्डित अपना घर-बार, जमीन-जायदाद छोड़कर कश्मीर घाटी से जायें।
पाकिस्तान परस्त इस्लामिक कट्टरपन्थियों के निशाने पर वे सभी लोग थे जो कश्मीर के पाकिस्तान में मिलने का विरोध कर रहे थे, चाहे वो भारत के नजरिये से विरोध कर रहे हों या कश्मीर की आज़ादी के नजरिये से। आतंकवाद के दौर में कश्मीरी पण्डितों से कई गुना ज़्यादा कश्मीरी मुस्लिमों की मौतें हुईं। लेकिन अगर दलाल मीडिया इस सच्चाई को दिखाने में लग जाती तो शासक वर्ग मुस्लिमों के खिलाफ नफरत कैसे फैला पाती और कश्मीर समस्या को हिन्दू बनाम मुस्लिम की लड़ाई के रूप में कैसे दिखा पाते।
दलाल मीडिया ने निहायत ही शातिराना ढंग से यह सच्चाई को पूरी तरह से छिपा दी गयी है कि जिस दौर में कश्मीरी पण्डितों पर हमले हो रहे थे उस समय तमाम कश्मीरी मुस्लिमों को भी निशाना बनाया गया था जिनमें नेशनल कांफ्रेस और कांग्रेस के नेताओं के अलावा मीरवाइज मोहम्मद फारुख जैसे कई अलगाववादी नेता और आम कश्मीरी मुस्लिम भी शामिल थे। पाकिस्तान परस्त इस्लामिक कट्टरपन्थियों के निशाने पर वे सभी लोग थे जो कश्मीर के पाकिस्तान में मिलने का विरोध कर रहे थे, चाहे वो भारत के नजरिये से विरोध कर रहे हों या कश्मीर की आजादी के नजरिये से। आतंकवाद के दौर में कश्मीरी पण्डितों से कई गुना ज्यादा कश्मीरी मुस्लिमों की मौतें हुईं।
हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि इतिहास वक्त के साथ खुद को दोहराता है पर वापस पीछे नहीं जाता है। सबूत बनते-बिगड़ते रहते हैं। नई व्याख्याएं सामने आती रहती हैं। इसलिए किसी भी ऐतिहासिक घटना पर बहस करते वक्त आंकड़ों के लिए आधिकारिक रेकॉर्ड पर गौर करना ज्यादा बेहतर और सटीक रहता है। 2011 में सदन में केंद्रीय गृह मंत्रालय से पूछा गया कि कश्मीर घाटी में आतंकी गतिविधियों की वजह से कितने कश्मीरी पण्डितों की मौत हुई थी? तत्कालीन गृह राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि “1989 से अब तक राज्य में 219 कश्मीरी पण्डित मारे गये हैं।” लेकिन एक और महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या कश्मीर में सिर्फ एक ही कम्युनिटी को टारगेट किया गया? कश्मीर में आतंकवाद की वजह से दूसरे समुदाय के कितने लोगों की मौत हुई? इस पर इकलौता ‘आधिकारिक डेटा’ श्रीनगर पुलिस मुख्यालय का है। श्रीनगर पुलिस ने एक आरटीआई के जवाब में बताया था कि 1990 में आतंकवाद की शुरुआत के बाद दहशतगर्दों ने 89 कश्मीरी पण्डितों के साथ दूसरे समुदाय के 1635 लोगों की हत्या की। इससे ये साबित होता है कि आधिकारिक आंकड़ों में मरने वाले पण्डितों से कही ज्यादा मुस्लिम हैं, पर हाय- मचाया गया सिर्फ पण्डितों के नाम पर। सिर्फ कश्मीरी पण्डित को ही क्यूँ टारगेट कर भुनाया गया और जा रहा है? और भी जाति और समुदाय के लोग भी मारे गये थे और पलायन भी किया था उन लोगों को गुमनाम क्यूँ कर दिया? कश्मीरी पण्डितों के लिये दिखावे के लिये ही सही बाकियों के लिये भी दिखावे के ही रूप में हमदर्दी, तकलीफ और घड़ियाली आंसू क्यूँ नहीं? क्या वो इन्सान नहीं थे? आखिर कश्मीरी पण्डित ही क्यों? क्योंकि आर एस एस को तो हिन्दू बनाम मुसलमान खेल खेलना था और बखूबी खेला भी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि कश्मीर के उस दौर में निश्चित ही टारगेटेड किलिंग्स हुई है। आईबी, पुलिस, ज्यूडिशियरी के अफसरों की, पॉलिटकल लीडर्स की। कश्मीर की ब्यूरोक्रेसी में पण्डित ज्यादा थे, पोलिटीकल और रिलिजियस लीडरशिप में मुस्लिम, सबको चुन-चुन कर मारा गया। ये कोई जन विद्रोह नहीं था बल्कि कश्मीर की हिंसा संगठित हिंसा थी, प्रायोजित हिंसा थी यदि प्रायोजित नहीं होता और जन आक्रोश होता तो 1946 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान, उसमे भारत के जाति धर्म के लोग मारे गये। कट्टरपंथियों द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम के तहत साल-दो साल के भीतर में किये गए ऐसे टार्गेटेड मर्डर में,100 हिन्दू थे तो 1500 मुस्लिम।
हिंसा के साथ कश्मीरी पण्डितों का पलायन भी काफी अहम और बड़ा मुद्दा है। सरकार के एक अनुमान के मुताबिक उस वक्त तकरीबन 50,000 कश्मीरी पण्डितोंं ने कश्मीर घाटी छोड़ पलायन किया था। पर 2022 के सरकारी आंकड़े के हिसाब से 44,684 पण्डितों ने जान बचाने के लिए कश्मीर घाटी को छोड़ा। साल 2010 में गृह मंत्रालय ने लोकसभा को बताया था कि उनके पास 59,542 ‘विस्थापितों’ के आंकड़े हैं और इसमें कश्मीरी पण्डितों के साथ मुस्लिम समुदाय भी शामिल है। लंबे समय तक समुदाय के हिसाब से अलग-अलग आंकड़े मौजूद नहीं थे। फिर 2021 में एनडीए सरकार ने बताया कि कश्मीर से कुल 44,167 परिवारों ने पलायन किया। इनमें से 39,782 परिवार हिंदू थे, वहीं 4,385 लोग दूसरे धर्मों को मानते थे। इन हिन्दुओं में कितने कश्मीरी पण्डितों ने पलायन किया, यह कहना काफी मुश्किल है। अमूमन साढ़े 3 लाख का आंकड़ा दिया जाता है। लेकिन असल संख्या 1 लाख से भी कम होनी चाहिये क्योंकि 1981 की जनगणना में कश्मीर घाटी जिलों में हिंदुओं की कुल 1 लाख 25 हजार के आसपास थी। आठ साल में यह बहुत ज्यादा बढ़ी होगी, तो पौने दो लाख के करीब पहुंची होगी। और यहां गौर करने वाली बात है कि सभी हिन्दुओ ने पलायन नहीं किया है।
शासक वर्ग ने पण्डितों को कश्मीर घाटी में सुरक्षा का आश्वासन देने की बजाये उनके पलायन को बढ़ावा देने में जगमोहन की भूमिका पर भी पूरी तरह से पर्दा डाला गया है और में 19 जनवरी 1990 को श्रीनगर में कश्मीरी पण्डितों पर हुए हमलों को इस तरह से पेश किया गया है कि घाटी के मुसलमानों ने प्रायोजित ठंग से कश्मीरी पण्डितों का कत्ल किया है लेकिन इस सच्चाई को छिपा दिया है और धीरे-धीरे इतिहास से भी मिटा देंगे और साथ में एक नयी कहानी गढ़ देंगे। हकीकत यह है कि 22 जनवरी 1990 श्रीनगर के गौकदल पुल के पास सीआरपीएफ की अन्धाधुन्ध गोलीबारी में 50 से अधिक कश्मीरियों की जान चली गयी थी जिसके बाद से घाटी का माहौल और ख़राब हो गया था।
*शेष अगले भाग में…*
*#अजय_असुर*