पुष्पा गुप्ता
मनुष्य की शक्तियां अनंत हैं, परंतु यह अचरज भरे दुःख की बात है कि उसकी ज्यादातर शक्तियां सोई हुई हैं। यहां तक की हमारे जीवन के सोने की अंतिम रात्रि आ जाती है, परंतु इन शक्तियों का जागरण नहीं हो पाता।
यदि कहीं कुछ होता भी है तो बहुत थोडा। ज्यादातर लोग तो अपनी अनंत शक्तियों एवं असीमित संभावनाओं के बारे में सोचते भी नहीं। मानव जीवन का यथार्थ यही है कि हममें से ज्यादातर लोग तो आधा-चौथाई ही जी पाते हैं।
कोई कोई तो अपने जीवन का केवल सौंवा, हजारवां या फिर लाखवां हिस्सा ही जी पाते हैं। इस तरह हमारी बहुतेरी शारीरिक, मानसिक शक्तियां का उपयोग आधा-अधूरा ही हो पाता है, एवं आध्यात्मिक शक्तियों का तो उपयोग होता ही नहीं।
जीवन का सच यही है कि मनुष्य की अग्नि बुझी-बुझी सी जलती है और इसलिए वह स्वयं की आत्मा के समक्ष भी हीनता में जीता है।
इससे उबरने के लिए जरूरी है कि हमारा जीवन सक्रिय और सृजनात्मक हो अपने ही हाथों दीन-हीन बने रहने से बडा पाप और कुछ भी नहीं। जमीन को खोदने से जलस्त्रोत मिलते हैं, ऐसे ही जीवन को खोदने से अनंत-अनंत शक्ति स्त्रोत उपलब्ध होते हैं।
इसलिए जिन्हें अपने आप की पूर्णता अनुभव करनी है, वे सदा-सर्वदा सकारात्मक रूप से सक्रिय रहते हैं, जबकि दूसरे केवल सोच-विचार, तर्क-वितर्क में ही उलझे रहते हैं।i सकारात्मक सक्रियता के साधक हमेशा ही अपने विचारों को क्रियारूप में परिणत करते रहते हैं।
इस विधि से एक-एक कुदाली चलाकर वे स्वयं में अनंत-अनंत शक्तियों का कुआं खोद लेते हैं, जबकि तर्क-वितर्क और बहुत सारा सोच-विचार करने वाले बैठे ही रहते हैं। सकारात्मक सक्रियता और सृजनात्मकता ही अपनी अनंत शक्तियों की अनुभूति का सूत्र है।
इसे अपनाकर ही व्यक्ति अधिक से अधिक जीवित बनता है और उसकी अपनी पूर्ण संभावित शक्तियों को सक्रिय कर लेता है।
अपनी आत्म शक्ति की अनंतता को अनुभव कर पाता है। इसलिए जीवन संदेश के स्वर यही कहते हैं कि विचार पर ही मत रुके रहो; चलो, कुछ करो।
लाखों-लाख मील चलने के विचार से एक कदम आगे बढ चलना ज्यादा मूल्यवान है।