शशिकांत गुप्ते
सीतारामजी ने एक बहुत ही अजब किस्सा सुनाया,कहने लगे आज एक भिखारी ने मुझसे भीख मांगी तो मैने कहा माफ करना।
भिखारी ने कहा भीख नहीं देना हो तो मना कर दो लेकिन माफी शब्द की अवहेलना मत करो।
मै ने पूछा क्यों?
कहने लगा क्षमा वीरस्य भूषणम
यदि मै माफ करने के लिए सक्षम होता तो क्या मैं स्वयं भीख मांगता?
सीतारामजी ने कहा भिखारी ने उक्त बात कहकर मेरे दिमाग़ को झकझोर कर रख दिया।
मै (सीतारामजी) सोचने लगा इनदिनों माफी मांगना एक सियासी फैशन हो गया है।
हर कोई स्वयं को वीर समझने की नादानी कर रहा है।
माफ़ी मांगना नैतिक कर्म है।
जब सियासत में नैतिकता ही ग़ायब हो गई है तब माफ़ी की एहमियत पर ही प्रश्न है?
गांधीजी ने कहा है कि, माफ़ी मांगने के लिए साहस चाहिए।
लेकिन याचक बनकर,,छद्म राष्ट्रभक्त बनकर स्वयं के स्वार्थ पूर्ती के लिए माफ़ी मांगना साहसिक कार्य नहीं है।
आश्चर्य होता है जब कोई निर्वाचित जनप्रतिनिधि संवैधनिक पद पर विराजित होते हुए देश की सबसे बड़ी पंचायत के पवित्र भवन में विपक्ष की उम्रदराज स्त्री से चीख चीख माफी मांगे तो लगता है। अहंकारवश माफी मांगने वाले की स्मृति मलिन हो गई है।
माफ़ी माँगना के लिए साहस चाहिए,और माफ़ करना वीरों का आभूषण है। यह दोनों ही बातें सदाचार,नैतिकता और उदारमना होने का प्रमाण है।
दुर्भाग्य से सियासत में उक्त सभी आचरण नदारद है।
भिखारी की बात सुनकर सीतारामजी के जेहन में उपर्युक्त विचार प्रकट हुए।
सीतारामजी ने कौतूहलवश भिखारी से पूछा इतने समझदार होकर भी तुम भीख क्यों मांगते हो?
भिखारी ने जवाब दिया कि ऐसा कोई नियम तो नहीं है कि,नासमझ भीख नहीं मांग सकता है।
इनदिनों लोग झूठ बोलकर वोट मांगते है,झूठे आश्वसन देकर आमजन को बरगलाते हैं।
सीतारामजी ने कहा भिखारी की बातों पर सोचते हुए, जेहन में यह विचार प्रकट हुए कि इनदिनों हर कोई ऐरगैरानत्थूखैरे को चाणक्य की उपाधि दी जाती है,और ऐसे हर किसी को वीर कहा जाता है।
अंत मे सीतारामजी ने भिखारी को धन्यवाद दिया और कहा भगवान तुम्हरा भला करें।
शशिकांत गुप्ते इंदौर