अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

पौराणिक आख्यान : ‘भानुमति

Share

आरती शर्मा

     _दुर्योधन की पत्नी का नाम भानुमति था। भानुमति के कारण ही यह मुहावरा बना है- कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा।_

        भानुमति काम्बोज के राजा चन्द्रवर्मा की पुत्री थी। राजा ने उसके विवाह के लिए स्वयंवर रखा था। स्वयंवर में शिशुपाल, जरासंध, रुक्मी, वक्र और दुर्योधन और कर्ण समेत कई राजा आमंत्रित थे।

 जब भानुमति हाथ में माला लेकर अपनी दासियों और अंगरक्षकों के साथ दरबार में आई और एक-एक करके सभी राजाओं के पास से गुजरी, तो दुर्योधन चाहता था कि भानुमति माला उसे पहना दे लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

       भानुमति दुर्योधन के सामने से आगे बढ़ गई तब दुर्योधन ने उसके साथ से माला झपटकर खुद ही अपने गले में डाल ली। सभी राजाओं ने तलवारें निकाल लीं। दुर्योधन ने सब योद्धाओं से कर्ण से युद्ध की चुनौती दी जिसमें कर्ण ने सभी को परास्त कर दिया।

        भानुमति को हस्तिनापुर ले आने के बाद दुर्योधन ने उसे ये कहकर सही ठहराया कि भीष्म पितामह भी अपने सौतेले भाइयों के लिए अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का हरण करके ले आए थे। इसी तर्क से भानुमति भी मान गई और दोनों ने विवाह कर लिया।

        दोनों के दो संतान हुई- एक पुत्र लक्ष्मण था जिसे अभिमन्यु ने युद्ध में मारा दिया था और पुत्री लक्ष्मणा जिसका विवाह कृष्ण पत्नी जामवंति से जन्मे पुत्र साम्ब से हुआ था।

 भानुमति का कर्ण के साथ अच्छा संबंध हो चला था। दोनों एक-दूसरे के साथ मित्र की तरह रहते थे। दोनों की मित्रता प्रसिद्ध थी। कर्ण और दुर्योधन की पत्नी भानुमति एक बार शतरंज खेल रहे थे। इस खेल में कर्ण जीत रहा था।

      तभी भानुमति ने दुर्योधन को आते देखा और खड़े होने की कोशिश की। दुर्योधन के आने के बारे में कर्ण को पता नहीं था इसलिए जैसे ही भानुमति ने उठने की कोशिश की, कर्ण ने पकड़कर बिठाना चाहा।

      भानुमति के बदले उसके मोतियों की माला कर्ण के हाथ में आकर टूट गई। दुर्योधन तब तक कमरे में आ चुका था। दुर्योधन को देखकर भानुमति और कर्ण दोनों डर गए कि दुर्योधन को कहीं कुछ गलत शक न हो जाए।

       परंतु दुर्योधन को कर्ण पर बहुत विश्वास था। उसने सिर्फ इतना कहा कि मोतियों को उठा लें और वह जिस उद्देश्य से आया था, उस संबंध में कर्ण से चर्चा करने लगा। इस विश्वास के चलते ही कर्ण गलत समझ लिए जाने से बच गए।

हालांकि कुछ लोग इस घटना का वर्णन इस तरह करते हैं कि दोनों शतरंज खेल रहे थे। भानुमति हार रही थी तो कर्ण प्रसन्न था। इतने में दुर्योधन के आने की आहट हुई तो भानुमति सहसा ही खेल छोड़कर उठने लगी। कर्ण को लगा कि वो हार के डर से भाग रही है इसलिए उसने उसका आंचल झपटा।

      अचानक ही की गई इस हरकत से भानुमति का आंचल फट गया और उसके सारे मोती भी वहीं बिखर गए। ऐसे ही समय कर्ण को भी दुर्योधन आता हुआ दिखाई दिया। दोनों शर्म से मरे जा रहे थे और उन्हें डर सता रहा था कि अब दुर्योधन क्या समझेगा? जब दुर्योधन निकट आया तो दोनों उससे आंख नहीं मिला पा रहे थे। तब दुर्योधन ने हंसकर कहा कि मोती बिखरे रहने दोगे या मैं तुम्हारी मदद करूं मोती समेटने में?

       भानुमति बेहद ही सुंदर, आकर्षक, तेज बुद्धि और शरीर से काफी शक्तिशाली थी। गांधारी ने सती पर्व में बताया है कि भानुमति दुर्योधन से खेल-खेल में ही कुश्ती करती थी जिसमें दुर्योधन उससे कई बार हार भी जाता था। [चेतना विकास मिशन].

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें