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लघुकहानी : सत्य की खोज

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 सुधा सिंह

एक आश्रम में  एक नवसाधु ने प्रवेश लिया !  मठाधीश ने उसका स्वागत किया और पूछा, क्या हासिल करना चाहते हो?

     साधु ने रटा रटाया पारम्परिक जवाब दे दिया कि सत्य की खोज करने आया हूँ महात्मन.

मठाधीश ने आश्रम के नियम समझा दिए ! ये बात जोर देकर कही कि साधु के पास न्यूतम वस्तुएं होती हैं और उसे दैनदिन भूख के लिए भिक्षाटन पर निर्भर रहना पड़ता है! थोड़ा कठिन है लेकिन असंभव नहीं है यह कार्य!

      दूसरे दिन साधु कमंडल हाथ में लिए भिक्षाटन के लिए निकल गया! गली-गली घूमा लेकिन भिक्षा नहीं मिली! वह जिस दरवाजे पर जाता कुछ न बोलता, बस द्वार पर जाकर खड़ा हो जाता! एक दो मिनट द्वार पर रुकता फिर अगली चौखट की ओर  बढ़ जाता!  

      दोपहर के वक्त निढाल होकर वह आश्रम लौट आया! मठाधीश ने पुछा कैसा रहा पहला दिन? 

       नव साधु ने कहा  कि मुश्किल तो है लेकिन असंभव नहीं ! कल फिर जाऊँगा भिक्षाटन के लिए!

दूसरे साधुओं ने उसे अपनी भिक्षा में से कुछ खाने को दिया! नव साधु ने देखा की साधुओं के पास एक गुप्त रिज़र्व कोष भी  है.

   अगले दिन नवसाधु फिर भिक्षाटन के लिए गया लेकिन फिर खाली हाथ लौट आया!  मठाधीश ने पूछा आज भी कुछ नहीं मिला ?

      नव साधु ने फिर वही जवाब दिया कि महाराज मुश्किल तो है लेकिन असंभव नहीं है!

     मठाधीश ने कहा, कल तुम वरिष्ट साधु के साथ जाना, भिक्षा भी स्किल का मामला है, वह स्किल तुम्हे विकसित करनी  होगी !

वरिष्ठ साधु ने झूठ कुटिलता और फरेब का भरपूर सहारा लिया, रास्ते में उसने दो-एक  नवयुवकों  को हाथ की सफाई भी दिखाई और उनसे पैसे ऐंठे ताकि नव साधु उससे प्रभावित होकर उसे ही गुरु मान ले !

     नवसाधु ने कहा, सत्य बोलकर हम भिक्षा क्यों नहीं ले सकते! 

       वरिष्ठ साधु थोड़ा असहज हुआ , फिर सम्भलता हुआ बोला, पहला सत्य  भूख  है  !

      हर तरह की भूख मिटाने के लिए झूठ या छल-बल  का सहारा लेना  पड़ता है, यह जीवन का पहला सत्य है! सच के भरोसे तीन  दिन से खाली लौट रहे थे न ! 

 नव साधु बोला, फिर गृहस्थ में भी और कारोबार में भी तो यही करते हैं हम! वह पाप कर्म क्यों है! 

       वरिष्ठ साधु हंसा,  बोला,  दुनिया भर में कितने भ्रम हैं मालूम है ? यह दुनिया सत्य पर नहीं चल रही , भ्रम पर चल रही है!

      भ्रम ही ब्रह्मा है, भ्रम ही कुरान है भ्रम ही धर्म हैं भ्रम ही प्रेम है भ्रम ही साधुता है ! कोई कहीं नहीं पहुँचता बस पहुँचने का भ्रम बड़ा होता जाता है ! 

      नव साधु आश्रम लौटा, उसने साधु की वेशभूषा वाले वस्त्र उतारे और अपने कपड़े पहन कर मठाधीश के पास आया 

मठाधीश हंसा, ‘बोला मुश्किल है यह,  असंभव नहीं”  अपने ही इस वाक्य [से डिग गए ? 

      नव साधु बोला, मैं सत्य की खोज के लिए आया था महात्मन, यहाँ आकर मैंने सत्य की खोज कर ली है ! अब मैं चलता हूँ!

       मठाधीश हैरान हुआ, बोला, कमाल है, चार दिन में ही सत्य खोज लिया? हम तो बरसो से पड़े हैं यहाँ, हमे तो सत्य नहीं मिला अभी!

      नवसाधु बोला, झूठ ही सत्य है महात्मन! और नव साधु घर के लिए विदा हो गया!

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