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जल परी : कितनी हक़ीक़त, कितना फ़साना

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 सुधा सिंह 

       दुनिया की तमाम संस्कृतियों, कला और साहित्य में हमेशा से कुछ ऐसी रहस्यमय और तर्क से परे चीजें रही हैं जिन्हें हमने देखा तो नहीं, लेकिन जो अनंत काल से हमारी सोच का हिस्सा रही हैं। देवदूत, राक्षस, शैतान, परियां, इच्छाधारी नाग-नागिन और जलपरियां उनमें शामिल हैं। यहां हम जलपरियों की बात करेंगे।

        दुनिया के तमाम देशों की लोककथाओं में नीचे मछली और ऊपर स्त्री की आकृति वाले एक विचित्र, रहस्यमय जीव के उल्लेख आते  हैं जिसे हमारे अपने देश में जलपरी अथवा मत्स्यकन्या कहा जाता है।

         यूरोपीय देशों में इसे मरमेड का नाम दिया गया है। हमारे कुछ पुराणों में पृथ्वी को जलप्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु के मत्स्यावतार की एक कथा है जिनकी आधी देह मछली की और आधी मनुष्य की थी। रामायण के थाई और कम्बोडियाई संस्करणों में रावण की एक बहन सोनमछा नाम की  एक जलपरी का जिक्र है।

       सोनमछा हनुमान के लंका अभियान को विफल करने के प्रयास में उनसे प्रेम और प्रणय-निवेदन कर बैठती है। फिलीपींस की लोककथाओं में समुद्र की रक्षा करने वाली सेरिना और सेरिनो नाम की दो शक्तिशाली जलपरियों के उल्लेख हैं। प्राचीन कैमरून में सौभाग्य के लिए जेंगू नाम की जलपरी की पूजा होती थी।

       कुछ देशों की लोककथाओं में मत्स्यकन्या के अलावा पुरुषों जैसे सिर वाले मत्स्यपुरुषों के भी उल्लेख आए हैं। मेसोपोटामिया और असीरिया की संस्कृतियों में दागोन नामक जलपुरुष को पुरुषत्व का देवता माना जाता था।

परियों और नागकन्याओं की तरह मत्स्यकन्याओं के कारनामों और मनुष्यों के साथ उनके प्रेम के किस्से बच्चों को ही नहीं, बड़ों को भी रोमांचित करते रहे हैं। इनपर उपन्यास भी लिखे गए और फिल्में भी बनी हैं। कुछ सालों पहले इस विषय पर बनी एक कोरियाई फिल्म ‘मरमेड’ ने दुनिया भर मे धूम मचाई थी।

       अब सवाल यह है कि जलपरियों के ये किस्से कल्पना की उड़ान भर हैं या इनमें यथार्थ का थोड़ा-बहुत अंश भी है। आधुनिक काल में कई समुद्र यात्रियों और नाविकों ने विचित्र जलपरियों को देखने के दावे किए हैं। कैरेबियन्स की यात्रा के दौरान कोलंबस ने ऐसी ही एक जलपरी को देखने की बात कही थी।

       हालांकि उनके द्वारा देखी गई जलपरी किस्सों वाली जलपरी जैसी सुंदर नहीं थी। वर्ष 2009 में इसराइल के समुद्र में लोगों ने कलाबाजियां करती एक जलपरी को देखा था और उसकी तस्वीरें ली थीं। ग्रीनलैंड में एक पनडुब्बी के कुछ कर्मचारियों ने जलपरी को देखने का दावा किया था जिसने पनडुब्बी के शीशे पर अपना हाथ रखा था।

       उसके हाथ की उंगलियां हम मनुष्यों के जैसी ही थीं। वर्ष 1842 में न्यूयॉर्क के डॉ जे. ग्रिफिन ने यह दावा किया था कि उनके पास एक असली जलपरी है जिसे उन्होंने फिजी आईलैंड से पकड़ा है। यह खबर फैलने पर मीडिया वालों ने उन्हें घेर लिया। उन्हें बिल्कुल जलपरी जैसी ही एक मछली दिखाई गई। मीडिया में इस खबर को पढ़कर एक सर्कस वाले ने ग्रिफिन से वह जलपरी मुंहमांगी कीमत पर खरीद लेनी चाही, लेकिन ग्रिफिन ने उसे बेचा नहीं।

     1865 में म्यूजियम में लगी आगमें जलपरी भी जल मरी।  दुनिया भर में एलियंस की तरह जलपरियों को देखने के दावे होते रहे हैं, लेकिन प्रामाणिक साक्ष्य के अभाव में वैज्ञानिक उन पर भरोसा नहीं करते।

           वैज्ञानिकों की बात अलग है, हमारा मन तो कहता है कि जिस समुद्र में जीवों की असंख्य प्रजातियां मौजूद हैं वहां थोड़ा मनुष्य और थोड़ी मछली जैसी दिखने वाली एक प्राणी क्यों नहीं हो सकती ? यह संभव है कि हमारे पूर्वजों ने ऐसे जीव देखे हों और लोगों को उनकी कहानियां सुनाई हों।

       कालांतर में उन कथाओं को दोहराने वाली असंख्य पीढ़ियों ने अपनी कल्पनाशीलता और रूमान के हिसाब से उनमें बहुत कुछ जोड़-घटा दिया होगा। जलपरियों की जो कहानियां आज मिथक के तौर हम सुन रहे हैं उनमें बहुत सारी कल्पनाओं के साथ शायद थोड़ी-सी सच्चाई भी हो।

       जलपरियों और मत्स्यपुरुषों की सदियों से कही या सुनी जाने वाली कहानियां अतिशयोक्तिपूर्ण तो हैं लेकिन काल्पनिक नहीं, यह अब साबित होने लगा है। पिछले दिनों अमेरिका के कैलिफोर्निया-तट से दूर मोंटेरे बे में राहेल कार्सन के नेतृत्व में एक समुद्री अभियान दल ने समुद्र के लगभग दो हज़ार फीट नीचे एलियन जैसा एक प्राणी देखा और उसकी तस्वीरें ली हैं।

       उस प्राणि के शरीर का ज्यादातर हिस्सा मछलियों जैसा और काला है. मगर सिर वाला हिस्सा सपाट और  पारदर्शी है। उसकी चमकदार आंखें उसके चेहरे के पीछे दो चमकते हुए हरे रंग के पत्थरों जैसी नजर आ रही हैं।  अध्ययन से पता चला कि मछली की असाधारण आंखें उसके पारदर्शी सिर के भीतर घूम सकती हैं।आंखों के ऊपर होने की वजह से वे शायदअपने ऊपर मौजूद पानी को स्कैन कर भोजन ढूंढती हैं। उसका सिर्फ चेहरा देखा जाय तो एलियन स्त्री या पुरुष का भ्रम होता है।

       जीवविज्ञानियों के अनुसार एलियंसनुमा यह समुद्री जीव दरअसल एक दुर्लभ प्रजाति की मछली है। इसे बैरेली मछली का नाम दिया गया गया है। इस मछली के शरीर का सिर वाला हिस्सा और उसकी विचित्र आंखें उसके जीवन की कठिन परिस्थितियों से निर्मित हुई हैं। यह मछली बहुत गहरे समुद्र में रहती है जहां तक सूर्य की रोशनी की पहुंच नहीं है।

        अंधेरे और कठोर वातावरण की वजह से इसके चेहरे में बदलाव आया है और इसने अपनी देखने की क्षमता भी विकसित की है। ऐसी आंखों को ट्यूबलर आंखें कहा जाता है जो आमतौर पर गहरे समुद्र में रहने वाले जीवों में पाई जाती हैं।

मत्स्यकन्याओं और मत्स्यपुरुषों की कल्पनाओं को साकार होते देख दुनिया भर के जीवविज्ञानियों का ध्यान इन बैरेली मछलियों की ओर आकृष्ट  हुआ है। वैज्ञानिकों का राय है कि विकास के दौर में सभी जीवों सहित मछलियों  में भी असंख्य परिवर्तन आए हैं। संभव है कि विकास के क्रम में उसने बहुत गहरे पानी में रहनेे के लिए अपने अंगों को पानी की स्थितियों के अनुरूप ढाल लिए हों।

      सच्चाई जो भी हो, विकास की इस अवस्था में मछलियों को देखकर यह भरोसा तो बनता ही है कि हमारे पूर्वजों द्वारा जलपरियों या जलपुरुषों के बारे में कही गई कहानियों में कल्पनाओं का जितनाघालमेल हो, अंधविश्वास कहकर उन्हें खारिज तो नहीं ही किया जा सकेगा।

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