हरनाम सिंह
*……आखिरकार मेरे आत्मीय साथी केसरी सिंह चिडार जीवन की जंग में लड़ते- लड़ते शहीद हो गए। हाल ही में 13 अप्रैल को जब वे मुंबई से इलाज करवा कर इंदौर लौटे थे, तब मैं साथी राम आसरे पांडे के साथ उनसे मिलने गया था। जिस रोग से वे जीवन की जंग लड़ रहे थे संभवतः उसके परिणामों से वे वाकिफ थे। मुलाकात में उन्होंने मुझे प्रलेसं का रजिस्टर सौंपा।*
*इंदौर में वे मेरे मार्गदर्शक मित्र थे। मेरा उनसे परिचय मंदसौर से ही था, जब वे बी एस एन एल की नौकरी के सिलसिले में तबादले पर मंदसौर आए थे। कहीं से मेरा फोन नंबर लेकर नए शहर में मुझे ढूंढते हुए मेरे घर पहुंचे। उस मुलाकात से पहले हम एक दूसरे को नहीं जानते थे। लेकिन वैचारिक प्रतिबद्धता ही थी जिसने आजीवन हमें जोड़े रखा। वर्षों तक वे प्रलेसं मंदसौर इकाई के अध्यक्ष पद पर रहे। मंदसौर में संपन्न राज्य सम्मेलन में भी उन्होंने महती भूमिका निभाई थी। सेवानिवृत्ति के पूर्व ही उनका तबादला इंदौर हो गया। मंदसौर से बिछड़े हम पुनः इंदौर में मिले। इतिहास दोहराया गया। यहां भी इंदौर प्रलेसं इकाई में उनके नेतृत्व में मुझे काम करने का अवसर मिला।*
*लेकिन अब वे ऐसे बिछड़े हैं कि पुनः मिलने की कोई संभावना ही नहीं रही है। ऐसे आत्मीय साथी का इस तरह चले जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति तो है ही। प्रलेस संगठन और इंदौर इकाई भी उनके बिना अधूरी रह गई है। कामरेड केसरी सिंह चिडार की स्मृति को लाल सलाम।*