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ध्यान : स्व-बोध की साधना का पथ

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 (जागते हुए नींद में प्रवेश की महत्ता और प्रक्रिया)

        डॉ. विकास मानव

_जब नींद अभी नहीं आयी हो. बाह्य जागरण विदा हो गया हो. उस मध्य बिंदु पर बोधपूर्ण रहना सीखें. आत्मा प्रकाशित होगी।_

      आपकी चेतना में कई मोड आते हैं, मोड़ के बिंदु आते हैं; इन बिंदुओं पर अन्य समयों की तुलना में अपने केंद्र के ज्यादा करीब होते हो। कार चलाते समय गियर बदलते हो और गियर बदलते हुए न्‍यूट्रल गियर से गुजरते हो। यह न्‍यूट्रल गियर निकटतर है।

      सुबह जब नींद बिदा हो रही होती है और जागने लगते हो, लेकिन अभी जागे नहीं हो, ठीक उस मध्य बिंदु पर आप न्‍यूट्रल गियर में होते हो। यह एक बिंदु है जहां न सोए हो और न जागे हो, ठीक मध्य में हो; तब न्‍यूट्रल गियर में हो।

     नींद से जागरण में आते समय आपकी चेतना की पूरी व्यवस्था बदल जाती है, वह एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था में छलांग लेती है। इन दोनों के बीच में कोई व्यवस्था नहीं होती, एक अंतराल होता है। इस अंतराल में आपको अपनी आत्मा की एक झलक मिल सकती है।

     यही बात फिर रात में घटित होती है जब आप अपनी जाग्रत व्यवस्था से नींद की व्यवस्था में, चेतन से अचेतन में छलांग लेते हो। तब फिर एक क्षण के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती है. आप पर किसी व्यवस्था की पकड़ नहीं होती है, क्योंकि तब एक से दूसरी व्यवस्था में छलांग लेते हो। इन दोनों के मध्य में अगर सजग रह सके, बोधपूर्ण रह सके, इन दोनों के मध्य में अगर अपना स्मरण रख सके, तो आपको अपने सच्चे स्वरूप की झलक मिल जाएगी।

*इसके लिए क्या करें?*

      नींद में उतरने के पहले विश्रामपूर्ण होओ और आंखें बंद कर लो। कमरे में अंधेरा कर लो। आंखें बंद कर लो और बस प्रतीक्षा करो।

     नींद आ रही है; बस प्रतीक्षा करो। कुछ मत करो, बस प्रतीक्षा करो।  शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर भारी हो रहा है। बस शिथिलता को, भारीपन को महसूस करो।

   नींद की अपनी ही व्यवस्था है, वह काम करने लगती है। आपकी जाग्रत चेतना विलीन हो रही है। इसे स्मरण रखो, क्योंकि यह क्षण बहुत सूक्ष्म होगा, यह क्षण परमाणु सा छोटा होगा। इसे चूक गए तो चूक गए।

    यह कोई बड़ा अंतराल नहीं है, बहुत छोटा है। यह क्षणभर का अंतराल है, जिसमें आप जागरण से नींद में प्रवेश कर जाते हो। तो बस पूरी सजगता से प्रतीक्षा करो। प्रतीक्षा किए जाओ।

इसमें थोड़ा समय लगेगा। कम से कम 90 दिन का समय। तब एक दिन आपको उस क्षण की झलक मिलेगी जो ठीक बीच में है। तो जल्दी मत करो। यह अभी तुरंत ही नहीं होगा, यह आज रात ही नहीं होगा।

     लेकिन शुरू करना है और  प्रतीक्षा करनी है। साधारणत: तीन महीने में किसी दिन यह घटित होगा। यह रोज ही घटित हो रहा है, लेकिन आपकी सजगता और अंतराल का मिलन आयोजित नहीं किया जा सकता। वह घटित हो ही रहा है। बस होशपूर्वक प्रतीक्षा किए जाओ और किसी दिन वह घटित होगा। किसी दिन अचानक यह बोध होगा कि मैं न जागा हूं और न सोया हूं।

यह एक बहुत विचित्र अनुभव है. उससे भयभीत भी हो सकते हो। अब तक आपने दो ही अवस्थाएं जानी हैं, अपने जागने का पता है और अपनी नींद का पता है। लेकिन यह नहीं पता है कि आपके भीतर एक तीसरा बिंदु भी है जब न जागे हो और न सोए हो।

     इस बिंदु के प्रथम दर्शन से भयभीत भी हो सकते हो, आतंकित भी हो सकते हो। भयभीत मत होओ, आतंकित मत होओ। जो भी चीज इतनी नयी होगी, अनजानी होगी, वह जरूर भयभीत करेगी। क्योंकि यह क्षण, जब इसका बार-बार अनुभव होगा, तुम्हें एक और एहसास देगा कि आप न जीवित हो और न मृत, कि  न यह हो और न वह। यह अतल खाई जैसा है।

      नींद और जागरण की व्यवस्थाएं दो पहाड़ियों की भांति हैं, आप एक से दूसरे पर छलांग लगाते हो। लेकिन यदि उनके मध्य में ठहर जाओ तो  अतल खाई में गिर जाओगे। इस खाई का कहीं अंत नहीं है, गिरते जाओगे, गिरते जाओगे।

सूफियों ने इस विधि का उपयोग किया है। जब वे किसी साधक को यह विधि देते हैं तो सुरक्षा के लिए वे साथ ही एक और विधि भी देते हैं। सूफी साधना में इस विधि के दिए जाने के पहले दूसरी एक विधि यह दी जाती है कि आप बंद आंखों से कल्पना करो कि मैं एक गहरे और अंधेरे कुएं में गिर रहा हूं एक अतल कुएं में गिर रहा हूं। बस कल्पना करो कि अतल कुएं में गिर रहे हो—गिरते ही जाओ, गिरते ही जाओ, सतत गिरते ही जाओ।

     यह कुआं अतल है, कहीं रुक नहीं सकते। यह गिरना कहीं रुकने वाला नहीं है। आप रुक सकते हो, आंखें खोलकर कह सकते हो कि अब और नहीं. ऐसा किए तो ध्यान खत्म. वस्तुतः यह गिरना अपने आप में कहीं रुकने वाला नहीं है। अगर गिरते रहे तो कुआं अतल है और वह और-और अंधकारपूर्ण होता जाएगा।

    सूफी साधना में यह अभ्यास, अतल कुएं में गिरने का अभ्यास पहले कराया जाता है।  यह अच्छा है, उपयोगी है। अगर इसका अभ्यास किया, अगर इसके सौंदर्य को समझा, इसकी शांति को अनुभव किया, तो जितने ही गहरे इस कुएं में उतरोगे उतने ही ज्यादा शांत होते जाओगे।

     संसार बहुत पीछे छूट जाएगा और लगेगा कि मैं बहुत दूर, बहुत दूर, बहुत दूर निकल आया हूं। अंधकार के साथ शांति बढ़ती जाती है। नीचे गहरे में कहीं कोई तल नहीं है, इसलिए भय पकड़ सकता है। लेकिन आपको मालूम है कि यह सिर्फ कल्पना है, इसलिए इसे जारी रख सकते हो।

       इस अभ्यास के द्वारा आप इस विधि के लिए तैयार होते हो। जब जागरण और नींद के अंतराल के कुएं में गिरते हो तो वह कल्पना नहीं है, वह यथार्थ है। और यह कुआं भी अतल है, अनंत है। इसीलिए बुद्ध ने इसे शून्य कहा है, उसका अंत नहीं है। एक बार इसे जान गए तो आप भी अनंत हो गए।

सामान्य जाग्रत अवस्था में इस शून्य की झलक नहीं मिल सकती है, कठिन है। नींद में इस झलक को पाना तो असंभव ही है। क्योंकि दोनों अवस्थाओं में शरीर की व्यवस्था सक्रिय रहती है और उससे अपने को पृथक करना कठिन है। लेकिन रात में एक क्षण आता है और वैसा ही क्षण सुबह में आता है—चौबीस घंटे में ये दो ही क्षण है—जब यह आसान .है। लेकिन आपको प्रतीक्षा करनी होगी।

      जब नींद अभी नहीं आयी हो और बाह्य जागरण विदा हो गया हो, उस मध्य बिंदु पर बोधपूर्ण रहने से आत्मा प्रकाशित होती है। तब आप जानते हो कि मैं कौन हूं मेरा सच्चा स्वभाव क्या है, मेरा प्रामाणिक अस्तित्व क्या है। जागते हुए आप झूठे हो.  यह भलीभांति जानते हो। जब जागे हुए हो, झूठे बने रहते हो।  उस समय मुस्कुराते हो, जब कि आंसू बहाना ज्यादा सच होता।

आपके आंसू भी भरोसे योग्य नहीं हैं। वे भी दिखाऊ हो सकते हैं, नकली हो सकते हैं, होने चाहिए इसलिए हो सकते हैं। आपकी मुस्कूराहट झूठी है। जो लोग चेहरे पढ़ना जानते वे कह सकते हैं कि यह मुस्कूराहट रंग—रोगन से ज्यादा नहीं है, भीतर उसकी कोई जड़ें नहीं हैं। यह मुस्कुराहट बस चेहरे पर है, ओंठों पर है, ऊपरी है। यह आपके प्राणों से नहीं उठी है। कहीं उसकी जड़ें नहीं है और न कहीं उसके हाथ-पाँव ही है। वह ऊपर से ओढ़ी हुई है। वह भीतर से बाहर नहीं आई है, वह बाहर से थोपी गई है।

      जो भी कहते हो, जो भी करते हो, सब नकली है। यह जरूरी नहीं है कि  यह नकली व्यापार जान-बूझकर करते हो। उसके प्रति सर्वथा अनजान भी हो सकते हो। अनजान ही हो। अन्यथा इस नकली मूढ़ता को सतत जारी रखना बहुत कठिन हो जाए। यह व्यापार स्वचालित है। यह झूठ चलता रहता है जब जागे हुए हो और यह झूठ तब भी चलता रहता है जब सोए हुए हो—लेकिन तब और ढंग से चलता है। आपके सपने प्रतीकात्मक हैं, सच नहीं। हैरानी की बात है कि आप अपने सपनों में भी सच्चे नहीं हो, अपने सपनों में भी भयभीत हो और प्रतीक निर्मित करते हो।

अब मनोविश्लेषक आपके सपनों का विश्लेषण करता रहता है, यही उसका धंधा है। यह एक भारी धंधा बन गया है, क्योंकि आप खुद अपने सपनों का विश्लेषण नहीं कर सकते हो। सपने प्रतीकात्मक हैं, वे सच नहीं हैं। वे सिर्फ प्रतीकों के द्वारा कुछ कहते हैं। अगर  अपनी मां की हत्या करना चाहते हो, उससे छुटकारा पाना चाहते हो, तो सपने में उसकी हत्या नहीं करोगे,  उसकी जगह किसी ऐसे व्यक्ति की हत्या कर दोगे जो देखने में आपकी मां जैसी हो। अपनी चाची या किसी और की हत्या करोगे, अपनी मां की नहीं।

      आप अपने सपने में भी प्रामाणिक नहीं हो सकते हो। यही कारण है कि मनोविश्लेषण की जरूरत पड़ती है, एक पेशेवर व्यक्ति की जरूरत पड़ती है, जो आपके सपनों की व्याख्या कर सके। लेकिन सपने को भी इस ढंग से रख सकते हो कि मनोविश्लेषण भी धोखा खा जाए।

   आपके सपने भी सर्वथा झूठे हैं। लेकिन अगर जागते हुए सच्चे रह सको तो ये सपने सच हो सकते हैं, तब वे प्रतीकात्मक नहीं होंगे। तब अगर  अपनी मां की हत्या करना चाहोगे तो  सपने में अपनी मां की ही हत्या करोगे, किसी और की नहीं। फिर व्याख्या करने वाले की जरूरत नहीं होगी जो  बताए कि आपके सपने का अर्थ क्या है। लेकिन हम इतने झूठे हैं, धोखेबाज हैं कि सपने के एकांत में भी संसार से, समाज से डरते हैं। मां की हत्या करना सबसे बड़ा पाप है। पता नहीं, आप ने कभी इस पर विचार किया है कि नहीं कि मां की हत्या करना क्यों सबसे बड़ा पाप है। यह सबसे बड़ा पाप कहा गया है, क्योंकि प्रत्येक आदमी मां के प्रति गहरी शत्रुता अनुभव करता है।   

यह सिखाया जाता है, संस्कारित किया जाता है कि मां को चोट पहुंचाने का विचार करना भी पाप है। मां ने जन्म दिया है! सारी दुनिया में, सभी समाजों में यही बात सिखायी जाती है। धरती पर एक भी ऐसा समाज नहीं है जो इससे सहमत न हो कि मां की हत्या सबसे बड़ा पाप है। जिसने जन्म दिया उसे ही आप मार रहे हो?

      लेकिन यह सिखावन क्यों? गहरे में यह संभावना है कि प्रत्येक व्यक्ति अनिवार्यत: अपनी मां के विरोध में चला जाए, क्योंकि मां ने सिर्फ जन्म ही नहीं दिया,  उसने आपको झूठ और नकली बनने के लिए मजबूर भी किया। आप जो भी हो, अपनी मां के बनाए हुए हो। अगर एक नरक हो तो इसमें मां का बड़ा हाथ है, सबसे बड़ा हाथ है। अगर दुख में हो तो उस दुख में कहीं न कहीं  मां मौजूद है, क्योंकि मां ने आपको जन्म दिया, उसने पाल—पोसकर बड़ा किया। या कहें कि उसने  पाल—पोसकर नकली कर दिया, उसने  आपकी प्रामाणिकता से हटा दिया।  आपका पहला झूठ आपके और आपकी मां के बीच घटित हुआ—पहला झूठ।

जब बच्चे ने बोलना भी नहीं सीखा है, उसके पास भाषा भी नहीं है, तब भी वह झूठ बोल सकता है। देर— अबेर वह जान जाता है कि उसके अनेक भाव मां को पसंद नहीं हैं। मां का चेहरा, उसकी आंखें, उसका व्यवहार, उसकी मुद्रा, सब बता देते हैं कि उसकी कुछ चीजें पसंद नहीं की जाती हैं, स्वीकृत नहीं हैं। और तब बच्चा दमन करने लगता है; उसे लगता है कि कुछ गलत है। अभी उसके पास भाषा नहीं है, उसका मन सक्रिय नहीं है, लेकिन उसका सारा शरीर दमन करने लगता है। और फिर उसे पता चलता है कि कभी-कभी कोई बात उसकी मां के द्वारा सराही जाती है। और यह बच्चा मां पर निर्भर है, उसका जीवन ही मां पर निर्भर है। अगर मां उसे छोड़ दे तो वह नहीं जी सकता। उसका पूरा जीवन मां में केंद्रित है।

      इसलिए मां का सब कुछ-उसका व्यवहार, उसकी बात, उसका इशारा-बच्चे के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। अगर बच्चा मुस्कुराता है और तब मां उसे प्रेम देती है, लाड़-दुलार देती है, दूध पिलाती है, छाती से लगा लेती है, तो समझो कि बच्चा राजनीति सीखने लगा। वह तब भी मुस्कुराएगा जब उसके भीतर मुस्कुराहट नहीं होगी। क्योंकि अब वह जानता है कि ऐसा करके वह मां को खुश कर सकता है।

    अब वह झूठी मुस्कुराहट मुस्कुराएगा। अब एक झूठा व्यक्ति पैदा हो गया। अब एक राजनीतिज्ञ अस्तित्व में आया। अब वह जानता है कि कैसे झूठ हुआ जाए।

      यह सब वह अपनी मां के सत्संग (असत- संग) में सीखता है। संसार में यह उसका पहला संबंध है। इसलिए जब उसे अपने दुखों का पता चलेगा, अपने नरक का बोध होगा, उलझनें घेरेंगी, तब उसे यह भी पता चलेगा कि इस सब में कहीं न कहीं उसकी मां छिपी है। इसलिए पूरी संभावना यह है कि आप अपनी मां के प्रति शत्रुता अनुभव करो। यही कारण है कि सभी संस्कृतियां जोर देकर कहती हैं कि मां की हत्या जघन्य पाप है; विचार में भी, स्वप्न में भी आप मां की हत्या नहीं कर सकते।

   सावधान! मैं यह नहीं कह रहा हूं कि अपनी मां की हत्या करो। मैं केवल यह कह रहा हूं कि आपके स्‍वप्‍न तक झूठे हैं, वे प्रतीकात्मक हैं, सच्चे नहीं। आप इतने झूठे हो कि सच्चा स्‍वप्‍न भी नहीं देख सकते।

ये आपके दो झूठे चेहरे हैं। एक चेहरा  जागरण में प्रकट होता है और दूसरा  नींद में। इन दो झूठे चेहरों के बीच एक छोटा सा द्वार है, एक छोटा सा अंतराल है। इस अंतराल में अपने मौलिक चेहरे की झलक मिल सकती है-उस मौलिक चेहरे की जो तब था जब आप मां से नहीं संबंधित हुए थे, और मां के जरिए समाज से नहीं जुड़े थे; जब  अपने साथ अकेले थे, जब आप, ‘आप’ थे.  यह-वह नहीं थे, जब कोई विभाजन नहीं था। केवल सत्य था, कुछ असत्य नहीं था। इन दो व्यवस्थाओं के बीच आपको अपने उस सच्चे चेहरे की झलक मिल सकती है।

       साधारणत: हम अपने सपनों की चिंता नहीं लेते, हम सिर्फ जागते समय की चिंता लेते हैं। लेकिन मनोविश्लेषण आपके सपनों की ज्यादा चिंता लेता है, वह आपके जागरण की चिंता नहीं लेता। क्योंकि वह समझता है कि जागे हुए आप ज्यादा झूठे होते हो। आपके सपनों से कुछ पकड़ा जा सकता है। जब आप सोए होते हो तो कम सजग होते हो,  कुछ आरोपित नहीं करते, तब तोडते—मरोड़ते नहीं। उस अवस्था में कुछ सत्य पकड़ा जा सकता है।

     जागते हुए ब्रह्मचारी हो सकते हो, साधु हो सकते हो। लेकिन आपने अपनी कामवासना को दबा रखा है। वह दबी हुई कामवासना आपके स्‍वप्‍नों में अभिव्यक्‍त होगी; तो सपने कामुक होंगे। ऐसा साधु खोजना कठिन है जो कामुक सपने न देखता हो। यह असंभव है। कामुक सपनों के बिना अपराधी तो मिल जाएंगे, लेकिन ऐसा धार्मिक आदमी खोजना मुश्किल है जो कामुक सपने न देखता हो।

    एक व्यभिचारी कामुक सपनों के बिना हो सकता है, लेकिन तथाकथित साधु—महात्मा कामुक सपनों के बिना नहीं हो सकते। क्योंकि आप जागते हुए जिसे दबाओगे, वह आपके सपनों में उभरकर आएगा, वह सपनों को प्रभावित करेगा।

    मनोचिकित्सक आपके जागरण की फिक्र नहीं करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि वह बिलकुल झूठा है। अगर कुछ सच्चा, कुछ यथार्थ देखना हो तो वह केवल सपनों में देखा जा सकता है।

 ध्यान-तंत्र कहता है कि सपने भी उतने सच नहीं हैं। हालांकि जागरण की तुलना में वे ज्यादा सच हैं-यह पहेली सी मालूम होगी, क्योंकि हम सपनों को असत्य मानते हैं-वे जागरण की घड़ियों की बजाय ज्यादा सच हैं। सपनों में आप अपने पहरे पर कम होते हो, नींद में सेंसर सोया रहता है, और दमित चीजें ऊपर आ सकती हैं, अपने को अभिव्यक्‍त कर सकती हैं। यह अभिव्यक्ति प्रतीकात्मक होगी, पर प्रतीकों को समझा जा सकता है।

     सारी दुनिया में मनुष्य के प्रतीक समान हैं। जागते हुए आप भिन्न भाषा बोल सकते हो, लेकिन सपने में वही भाषा बोलते हो जो सारे लोग बोलते हैं। सारी दुनिया की स्‍वप्‍न— भाषा एक है। अगर कामवासना दबाई गई है तो दुनियाभर में एक ही तरह के प्रतीक उसे अभिव्यक्‍त करेंगे। अगर भोजन की इच्छा को दबाया गया है, भूख को दमित किया गया है तो उसे भी सपने में सर्वत्र एक ही तरह के प्रतीक अभिव्यक्‍त करेंगे।

      स्वप्न- भाषा एक है। लेकिन प्रतीकों के कारण ही स्‍वप्‍नों के साथ एक दूसरी कठिनाई है। फ्रायड उनका अर्थ एक ढंग से कर सकता है, कोई उनका अर्थ भिन्न ढंग से कर सकता है और एडलर उनका अर्थ और भी भिन्न ढंग से कर सकता है। अगर सौ मनोविश्लेषक तुम्हारा विश्लेषण करें तो वे सौ व्याख्याएं करेंगे। आप पहले से भी ज्यादा उलझन में पड़ जाओगे। एक ही चीज की सौ व्याख्याएं और भी भ्रांत कर देंगी।

      ध्यान तंत्र कहता है, आप न जागते हुए सच हो और न सोते हुए सच हो, तुम इन दो अवस्थाओं के बीच में कहीं सच हो। इसलिए न जागरण की फिक्र करो और न नींद और स्वप्न की, सिर्फ अंतराल की फिक्र करो। उस अंतराल के प्रति जागो। एक से दूसरी अवस्था में गुजरते हुए इस अंतराल का दर्शन करो। आप एक बार  जान जाते हो कि यह अंतराल कब आता है,  उसके मालिक हो जाते हो। तब कुंजी मिल गई.  किसी भी वक्‍त उस अंतराल को खोलकर उसमें प्रवेश कर सकते हो। तब आपके होने का एक भिन्न आयाम, एक नया आयाम खुलता है।

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