अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

SKM के आह्वान पर नौ अगस्त को ‘कारपोरेट भगाओ-खेती बचाओ दिवस’ 

Share

विजय विनीत

संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के आह्वान पर बनारस में जुटे पूर्वांचल के किसान संगठनों ने सरकार से न्यूतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)  की गारंटी मांगी है। इसी के साथ तय किया गया है कि अन्नदाता का हक मार रहे कारपोरेट घरानों को भगाने के लिए नौ अगस्त को ‘कारपोरेट भगाओ-खेती बचाओ दिवस’ मनाया जाएगा। इस राष्ट्रव्यापी आंदोलन में किसान और खेत मजदूर बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे।

किसानों नेताओं का कहा, “न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी सिर्फ आम किसानों के लिए ही नहीं, खेत मजदूरों के लिए भी जरूरी है। न्यूनतम समर्थन मूल्य के आंकलन में मजदूरी के कंपोनेंट में अकुशल माना जाता है जो निहायत गलत है। सैकड़ों सालों से खेती करते आ रहे लोगों के श्रम को कुशल श्रम माना जाए ताकि आजीविका के लिए वह मूल्य उपयुक्त हो।”
पूर्वांचल के किसान इसलिए बनारस में जुटे थे ताकि उनकी आवाज पीएम नरेंद्र मोदी तक पहुंचे। संयुक्त किसान मोर्चा की राज्य स्तरीय बैठक में अखिल भारत किसान महासभा के ईश्वरी कुशवाहा ने न्यूनतम समर्थन मूल्य का सवाल उठाते हुए कहा, “कृषि कानूनों के आने से पहले से ही खेती हमेशा घाटे का सौदा रही है। पूर्वांचल के किसान अपनी उपज बेचकर बच्चों की पढ़ाई और परिवार का दवा-इलाज करा पाने में सक्षम नहीं हैं। महंगाई की मार झेल रहे इन किसानों को संकट के समय लाचारी में अपनी जमीनें बेचनी पड़ रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 1947 में खेती से जुड़े सिर्फ 16 फीसदी लोग भूमिहीन थे, जिनकी तादाद अब 32 फीसदी हो गई है।”  

Farmers संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक 

पूर्वांचल में हालात और भी ज्यादा दुखदायी हैं। यहां चालीस फीसदी लोगों के पास जमीनें नहीं हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर पूर्वांचल के किसानों की चिंता की कई वजहें हैं। एमएसपी के हिसाब से कुछ ही किसान अपनी उपज बेच पा रहे हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि केंद्र सरकार रूरल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड राज्य सरकारों को नहीं दे रही है। पहले तीन फीसद का फंड हर साल राज्य सरकारों को मिलता था। केंद्र के निर्देश के बावजूद निजी कंपनियां एमएसपी से कम पर किसानों की उपज खरीद रही हैं और सरकार चुप्पी साधे हुए है। जब तक एमएसपी का प्रावधान क़ानून में नहीं जोड़ा जाएगा तब तक निजी कंपनियों का वर्चस्व ख़त्म नहीं हो सकता है। सरकार के पास कोई रास्ता नहीं है जिससे वो एमएसपी पर पूरी फसल ख़रीदने के लिए निजी कंपनियों को बाध्य कर सके।”

कुशवाहा ने यह भी कहा, “न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को फसल की कीमत तय करने का एक न्यूनतम आधार देता है। वह एक ऐसा रेफ्रेंस प्वॉइंट देता है जिससे फसल की कीमत उससे कम ना हो, जबकि निजी कंपनियां सामान की कीमतें डिमांड और सप्लाई के हिसाब से तय करती हैं। भारत में 85 फीसदी छोटे और मझोले किसान हैं, जिनके पास खेती के लिए पांच एकड़ से छोटी ज़मीन है। कृषि क़ानून वापस लेने के बावजूद सरकार राज़ी नहीं है। इसका एक नया रास्ता यह है कि सरकार किसानों को डायरेक्ट फ़ाइनेंशियल सपोर्ट दे जैसा किसान सम्मान निधि के ज़रिए किया जा रहा है। दूसरा उपाय है किसान दूसरी फसलें भी उगाए जिनकी मार्केट में डिमांड है। अभी केवल गेहूं, धान उगाने पर किसान ज्यादा ज़ोर देते हैं और दलहन और ऑयल सीड पर किसान कम ध्यान देते हैं।”

उदासी में डूबे हैं गांव

संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय समन्वय समिति के सदस्य चौधरी राजेंद्र सिंह ने कहा, ” पूर्वांचल के ज़िलों के सभी गांव गहरी उदासी में डूबे हुए हैं और सरकार किसानों की आमदनी दोगुनी करने का झूठा सपना दिखाती जा रही है। भारतीय सिनेमा में सालों से परोसी जा रही सरसों के खेतों, दूध की नदियों और नाचते-गाते ख़ुशहाल किसानों वाली छवि के पीछे छिपी असली ज़मीनी कहानी योगी सरकार आखिर क्यों नहीं सुन पा रही है?  ख़ुशहाली और समृद्धि के प्रतीक के तौर पर पहचाने जाने वाले पूर्वांचल में किसानों के घरों में सन्नाटा पसरा हुआ है। किसानों के घरों की औरतों का शादीशुदा जीवन और पुरानी यादें क़र्ज़ से आज़ाद नहीं हैं। वो फ़सलों की रोपाई, सिंचाई और देखभाल करती हैं। जानवरों की रखवाली के लिए उन्हें खेतों पर जाना पड़ता है, फिर भी उनकी जिंदगी का रंग बदरंग है।”

बटाईदार किसानों की समस्याओं को रेखांकित करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय समन्वय समिति के सदस्य सत्यदेव पाल ने कहा, “पूर्वांचल में ज्यादातर भू-स्वामी ऐसे हैं जिनके खेत गांवों में हैं, लेकिन वो रहते हैं शहरों में। वो अपनी खेती बटाईदारी के जरिये कराते हैं। ज्यादातर बटाईदार किसान भूमिहीन हैं अथवा उनके पास निजी तौर पर जमीनों के बहुत छोटे से टुकड़े हैं। संयुक्त किसान मोर्चा को चाहिए कि वो बटाईदार किसानों के सवालों को भी अपने एजेंडे में शामिल करें।” आजमगढ़ के खिरियाबाग आंदोलन से जुड़े राजेश आजाद ने कहा, “किसान आंदोलन के नए चरण में हमें भूमि अधिग्रहण के साथ ही आदिवासियों की जबरिया छीनी जा रही जमीनों के मुद्दों को भी प्रमुखता से उठाना होगा। यूपीए सरकार के समय यह तय हुआ था कि जंगल से जुड़े निवासियों को जमीनों को पट्टा दिया जाएगा और कोई भी प्रोजेक्ट उनकी अनुमति के बगैर नहीं शुरू किया जाएगा, लेकिन बीजेपी सरकार ने इन प्राविधानों को खत्म कर दिया है। इस वजह से आदिवासियों और वनवासियों के सामने दो वक्त की रोटी जुटाने का भीषण संकट खड़ा हो गया है।”

Farmers addressing संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में मौजूद किसान नेता 

क्रांतिकारी किसान यूनियन के मंडल प्रभारी रामनयन यादव ने कारपोरेट घरानों की नीयत पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा, “इन्वेस्टर्स समिट, एयरपोर्ट विस्तारीकरण, वन्य अधिकार कानून, पर्यावरण संरक्षण, रिजर्व टाईगर्स, पर्यटन, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर, खनन, माल ढुलाई केंद्र, ग्रीन बेल्ट, एक्सप्रेस वे जैसे नामों के पीछे भूमि अधिग्रहण हो रहा है। इससे एक ओर जनता की जीवन-शैली और पर्यावरण संकट का विकास होगा और दूसरी ओर उनकी आजीविका पर खतरा बढ़ेगा। इसलिए हमें लोकतंत्रविरोधी सरकार के इस हिटलरी जैसी बुलडोजर नीति के खिलाफ आंदोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। सरकार की यह कारपोरेट विकास मॉडल की नीति जनता पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव डालेगी। यह नीति जनता को उजाड़ देगी, उनकी उत्पादक खेती को नष्ट करेगी, उनके खेत-खलिहानों को छीन लेगी। इसके लिए सरकार लोगों के बीच पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी वर्ग को चुप कराने और भ्रमित करने के लिए गोदी मीडिया का इस्तेमाल कर रही है।”

किसानों को लूट रहे कारपोरेट घराने

पूर्वांचल में खेती के लिए मिलने वाली बिजली का सवाल उठाते हुए जय किसान आंदोलन के प्रांतीय अध्यक्ष रामनेत यादव ने कहा, “यूपी में किसानों के खेत-खलिहानों, यहां तक कि उनकी झोपड़ियों में भी बिजली के मीटर लगा दिए हैं और बाहरी लोगों को भेजकर किसानों से मनमानी धन वसूली कराई जा रही है। हम चाहते हैं कि किसानों को तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त दी जाए। सीएम योगी ने वादा किया था कि वह किसानों को खेती में इस्तेमाल होने वाली बिजली मुफ्त देंगे, लेकिन सरकार अपने वादे को भूल गई। किसानों को अपनी भूल-भुलैया में फंसाकर सिर्फ गुमराह कर रही है और वंचित तबके को खुशहाल जीवन देने के बजाय नर्क की ओर ढकेल रही है।” किसान नेता एवं चिंतक रामजनम ने कहा, “किसान आंदोलन को बुनकरी, कारीगरी, कुटीर और छोटे उद्योगों की समस्याओं को अपने एजेंडे में शामिल करना होगा। यह वह तबका है जो किसानों की तरह शहर में रहते हुए भी बदहाल है और आकंठ तक कर्ज में डूबा हुआ है। अन्न और वस्त्र मुहैया कराने वालों को अब एकजुट होकर आवाज बुलंद करनी होगी।”
उच्च शिक्षा में बेतहाशा शुल्क वृद्धि और निजीकरण का सवाल उठाते हुए किसान मजदूर परिषद की सदस्य प्रज्ञा सिंह ने कहा, “किसानों के सामने अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। उच्च शिक्षा में किसानों के बच्चों को आरक्षण को नहीं मिलने से उनकी जिंदगी पर बहुत बुरा असर पड़ पड़ रहा है। नीट परीक्षा में आधी सीटें प्राइवेट मेडिकल कालेजों को दे दी गई हैं जिससे उनके मालिक मालामाल हो रह हैं। निजी कालेजों में किसानों के बच्चे नहीं पढ़ पा रहे हैं, क्योंकि उनके पास भारी-भरकम फीस भरने के लिए पैसे नहीं हैं। निजी मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस की डिग्री वही बच्चे ले पा रहे हैं जिनके परिवारों के लोग दो से पांच करोड़ रुपये खर्च करने में सक्षम हैं।”

बुलडोज़र के ख़तरे पर सवाल

लोक समिति के संयोजक नंदलाल मास्टर ने बनारस के सर्व सेवा संघ पर बुलडोजर के खतरे का सवाल उठाते हुए कहा, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उस जमीन को कब्जाने में जुटा है जिसे विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण की पहल पर पूरी कीमत अदा करने के बाद खरीदा गया था। आरएसएस की बढ़ती मनमनी और शिक्षा के केंद्रों पर किए जा रहे हमले से देश का हर प्रबुद्ध व्यक्ति चिंतित और परेशान हैं। आरएसस अब राष्ट्रीय आंदोलन और राष्ट्र निर्माण के इतिहास को मिटाने पर तुल गया है। इसी कड़ी में वह महात्मा गांधी की इकलौती विरासत पर अपना कब्जा जमाने के लिए एड़ी से चोटी का जोर लगा रहा है।”

“बीजेपी और आरएसएस के लोग गोडसेवाद को बढ़ावा देने के लिए विनोबा और जयप्रकाश के रचनात्मक कार्यक्रमों के प्रमुख केंद्र को नष्ट करने पर उतारू हैं। संयुक्त किसान मोर्चा सर्व सेवा संघ के मुद्दे को अपने अपने एजेंडे में शामिल करें। हमें आपसी बंधुत्व का आदर्श बनाना होगा। हमें संघर्ष में जुटे रहना चाहिए और हमेशा अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहना चाहिए। विकास के नए मॉडल के विपरीत सत्ताधारियों की असलियत समझानी होगी।” भारतीय किसान यूनियन के प्रांतीय उपाध्यक्ष सिद्धनाथ सिंह ने आह्वान किया कि किसान एकता और सहयोग के जरिये अपने हक के लिए आवाज बुलंद करते रहें। उन्होंने कहा, “अगामी लोकसभा चुनाव में किसानों की एकजुटता अहम भूमिका अदा करेगी और मौजूदा सरकार को किसानों की उपेक्षा भारी पड़ेगी।”
कार्यक्रम का संचालन करते हुए किसान मजदूर परिषद के राष्ट्रीय समिति के सदस्य अफलातून ने कहा, “तीनों काले कानून को वापस कराने के आंदोलन के समय जिस प्रतिबद्धता के साथ किसानों के सभी संगठन एकजुट थे, उसी तरह की एकजुटता आज भी दिखाने की जरूरत है। अभी किसानों की मुश्किलें दूर नहीं हुई हैं, क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की बात पूरी नहीं हुई है। मौजूदा व्यवस्था में न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकारें इसलिए नहीं दे रही हैं क्योंकि खेती और गांव के शोषण पर ही विलासितापूर्ण विकास की राह चुनी जाती है। ऐसे में किसानों की लड़ाई अभी आधी-अधूरी मानी जा सकती है। जब तक हम कारपोरेट घरानों के बढ़ते बर्चस्व को खत्म नहीं करेंगे, तब तक किसानों पर खतरा मंडराता रहेगा। ऐसे में यह जरूरी है कि किसान और खेत मजदूर एकजुट होकर कारपोरेटरों की दखलंदाजी के खिलाफ मुहिम चलाएं।”

Farmers Presence संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में मौजूद किसान नेता 

फ़ासीवादी हमलों का विरोध

संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक का संचालन करते हुए किसान मजदूर परिषद के राष्ट्रीय समिति के सदस्य अफलातून ने फासीवादी हमलों का विरोध किया। उन्होंने कहा, “आजमगढ़, मऊ, बनारस, चंदौली, और सोनभद्र में भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई के चलते खेती-किसानी करने वालों की नींद हराम हो गई है। किसानों को परेशान किए जाने का सिलसिला बंद नहीं हुआ तो वो अपने अस्तित्व और आजीविका सड़क पर उतरने के लिए बाध्य होंगे। किसानों की एकजुटता का नतीजा है कि आजमगढ़, बनारस, मिर्जापुर, सोनभद्र में सरकार किसानों की जमीनें जबरिया नहीं छीन पा रही है। जमीन बचाने की लड़ाई हम सबकी यह साझी लड़ाई है। हम सभी जाति-धर्म से ऊपर उठकर संघर्ष करने के लिए तैयार हैं। हमें विभाजन और असंतोष का कारण बनने से बचना होगा। हमें सुसंगत योजना और कार्यक्रमों को विकसित करना होगा ताकि हम लोगों को एक साथ जोड़ सकें और हमारी मांगों को पूरा करने के लिए एकजुट हो सकें। किसानों का संघर्ष लंबा और कठिन हो सकता है, लेकिन किसान हितों के लिए हमें एकजुट होकर लड़ाई लड़नी होगी और सरकार को जवाबदेह भी बनाना होगा।”

संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय समन्वय समिति और प्रदेश संयोजन समिति के आह्वान पर आयोजित बैठक मे मेहनतकश मुक्ति मोर्चा, इंकलाबी मजदूर केंद्र, खेत मजदूर किसान संग्राम समिति, किसान मजदूर परिषद, जनवादी किसान सभा, अखिल भारतीय किसान महासभा, अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा, क्रांतिकारी किसान यूनियन, मजदूर किसान एकता मंच, जय किसान आंदोलन, संग्रामी किसान समिति, भारतीय किसान यूनियन, जन स्वराज, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, भगत सिंह स्टूडेंट मोर्चा, अखिल भारतीय किसान फेडरेशन आदि संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े किसान नेताओं ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी पर क़ानून बनाने और उन किसानों के परिजनों के लिए मुआवज़े की मांग उठाई जिन्होंने कर्ज नहीं चुका पाने के कारण आत्महत्याएं की हैं।

किसान नेता प्रह्लाद सिंह, रामजी सिंह, तेज नारायण यादव, विद्याधर श्रवण, मणि देव चतुर्वेदी, कृपा वर्मा, रजनीश भारती, अनिल सिंह, शशांक, रितेश विद्यार्थी, कन्हैया, डॉक्टर महेश विक्रम, दुखहरण राम, तेज बहादुर, सौरभ कुमार, विमल त्रिवेदी, बलवंत यादव, शशिकांत, उमाकांत, गरीब राजभर, डॉक्टर संतोष कुमार, शिवराम यादव, सत्य प्रकाश, सत्येंद्र कुमार प्रजापति, सदानंद पटेल, रामदयाल वर्मा, रमेश कुमार सिंह, कैलाश शर्मा, कामरेड रमाशंकर, सरोज, बचाऊ राम, लक्ष्मण प्रसाद मौर्य, कमलेश कुमार राजभर, मोहम्मद अहमद अंसारी, पराग, श्याम, महेंद्र यादव, रामजन्म यादव, संतोष कुमार सिंह, परशुराम मौर्य, सिद्धि बिस्मिल, संदीप, डॉक्टर राजेश, पंकज भाई, जुम्मन आदि ने तय किया कि जल्द ही पूर्वी उत्तर प्रदेश में किसानों का बड़ा सम्मेलन आयोजित किया जाएगा, जिसमें साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की परिस्थिति और भूमि अधिग्रहण आंदोलन के मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।
बैठक के बाद किसानों का जत्था सर्व सेवा संघ परिसर में पहुंचा और वहां आंदोलनकारियों को अपना समर्थन पत्र सौंपा। साथ ही यह भी कहा कि गांधी की विरासत को बचाने के लिए पूर्वांचल के किसान आंदोलन छेड़ेंगे। साथ ही बीजेपी सरकार की दोषपूर्ण नीतियों के बारे में जन-जन को आगाह करेंगे।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें