अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

कर्मठ और जुझारू प्रशासनिक दक्षता के साथ: सामाजिक सरोकार से गहरे जुड़ी थीं निर्मला बुच 

Share

-सुसंस्कृति परिहार

दरअसल निर्मला बुच उस वक़्त सुर्ख़ियों में आई थी जब सुकमा जिले के कलेक्टर रहे एलेक्स पॉल मेनन का नक्सलियों ने अपहरण कर लिया था। यह साल था 2012। अपहरण के बाद नक्सलियों और सरकार के बीच वार्ता हुई। नक्सलियों की मांग पर सरकार ने वार्ता के लिए मध्यस्थों की नियुक्ति की तब डॉ रमन सिंह की सरकार की तरफ से निर्मला बुच और पूर्व मुख्य सचिव एसके मिश्रा को मध्यस्थ बनाया गया जबकि नक्सलियों की ओर से पूर्व प्रशासनिक अधिकारी बीडी शर्मा और हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हरगोपाल ने मध्यस्थता की थी।इस वार्ता का नतीजा यह निकला की माओवादियों ने कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन को सकुशल रिहा कर दिया। हालाँकि अगवा करने के दौरान माओवादियों ने मेनन के सुरक्षाकर्मी की हत्या कर दी थी लेकिन तब निर्मला बुच छग और मध्यप्रदेश एक बड़ी शख्सियत बतौर पहचानी गई।

निर्मला बुच वर्ष 1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में आई। 1961 में मसूरी अकादमी में प्रशिक्षण के बाद उनकी पहली पोस्टिंग जबलपुर में हुई। इसके बाद कई जिलों में पदस्थ रही। बुच सेवानिवृत्ति के बाद समाज कल्यण के कार्यों में सक्रिय रही।उनका जन्म 11 अक्टूबर 1925 में उत्तरप्रदेश के खुर्जा जिले में हुआ था। वे मध्यप्रदेश सरकार में 1975 से 1977 तक वित्त सचिव एवं शिक्षा सचिव और 1991 से 1992 में मुख्य सचिव के पद पर रही हैं।बेखौफ छवि रखने वाली निर्मला बुच पूर्व सीएम सुंदरलाल पटवा के कार्यकाल में मध्यप्रदेश की चीफ सेक्रेटरी बनी थीं। उमा भारती जब प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं, तो उन्होंने निर्मला बुच को अपना सलाहकार बनाया। मुख्य सचिव निर्मला बुच भारत सरकार के योजना आयोग में 1988 से 89 में सलाहकार भी रही हैं, उन्होंने महिला सशक्तिकरण की दिशा में पहला कदम उठाते हुए मध्यप्रदेश ग्रामीण विकास में पंचायती राज की रूपरेखा तैयार की थी।प्रशासनिक पदों पर रहते हुए निर्मला जी ने सरकार और गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर शोध, प्रबंधन और निर्बल समाज को ताकत देने के लिए लगातार कई काम किए हैं। उन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए विकास का जो मॉडल तैयार था वह मील का पत्थर साबित हुआ था, उन्होंने महिला के विकास के लिए भी कदम आगे बढ़ाए थे श्रीमती बुच का समूचा कार्यकाल साफ-सुथरा रहा। इसके चलते सेवानिवृत्ति के बाद भी वह प्रशासनिक क्षेत्र की रोल मॉडल बनी।

सेवानिवृत होने के बाद भी उनकी सामाजिक क्षेत्र में सक्रियता बनी रही। उन्होंने चाइल्ड राइट्स ऑब्जर्वेटरी, महिला चेतना मंच जैसी संस्थाओं की स्थापना की। वर्किंग वुमन होस्टल खुलवाए। उनके चीफ सेक्रेटरी रहते हुए मध्यप्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग अस्तित्व में आया था। संयोग से मुझे भी चाईल्ड राइट्स आब्जर्वेटरी मध्यप्रदेश का सदस्य निर्मला जी ने ही बनाया था उस समय बच्चों की समस्याओं पर लगातार में लेख प्रदेश के अखबार में प्रकाशित हो रहे थे। मुझे नवनिर्मित दमोह की पहली बाल्य कल्याण समिति का सदस्य बनाया गया था।जब भी हम सब मीटिंग में एकत्रित होते वे समय से पूर्व आतीं और बच्चों से जुड़ी किसी महत्वपूर्ण समस्या सामने रखतीं और समिति द्वारा जो परामर्श दिया जाता उस पर सक्रियता से जिला बाल अधिकार मंच से काम करातीं थी। उनकी प्रशासनिक क्षमता यहां भी सहजता से देखने मिली। काम के प्रति उनकी दीवानगी का आलम ये था कि कर्मचारी कभी कभी परेशान हो उठते थे। इस सबके बावजूद वे काम करने वालों की भरपूर प्रशंसा करती थीं।वे प्रतिवर्ष अपने पति पूर्व मुख्य सचिव नीलकंठ बुच की स्मृति में प्रतिवर्ष शानदार व्याख्यान आयोजित करती थीं जो भोपाल के यादगार कार्यक्रम में शुमार होता रहा है।निर्मला बुच ने कई किताबें भी इस बीच लिखीं जिनकी चर्चा कम हुई है।

बहरहाल,97वर्ष तक अपनी कर्मठता के बलबूते पर उन्होंने अपनी जो छवि निर्मित की वह ना केवल पहली और अब तक की प्रमुख महिला सचिव की है।बल्कि उनकी कार्यप्रणाली और सेवानिवृत्त होने के बाद महिलाओं और बच्चों के प्रति जो प्रतिबद्धता चेतना मंच और चाईल्ड राइट्स आब्जर्वेटरी के ज़रिए दिखाई वो उन्हें हमेशा ज़िंदा रखेगी।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें