अग्नि आलोक
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*कहानी : किराएदार*

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        कुछ कहानियों का आधार अकल्पनीय होता है। लोग सोचते हैं, कि यह संभव नहीं। किंतु जिंदगी से मोहब्बत करने वालों को कल क्या होगा,उसकी परवाह नहीं होती। आज जो है,वही सच है. इस कहानी का आधार यही है.

           *~ पुष्पा गुप्ता*

वह मेरे घर किराएदार बन कर आया था। पापा के गुजर जाने के बाद हमारे जीविका का एक मात्र साधन यही घर था,जिसके निचले हिस्से को हम किराए पर देते थे तथा पापा के आधे पेंशन से किसी तरह गुजारा कर लेते थे।

     कहते हैं न,बुरे दिन आते हैं तो आते ही जाते हैं। हमारे साथ भी यही हुआ। पापा के जाने के बाद मां ने लगभग खाट ही पकड़ ली थी। डॉक्टर कहते है कि शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं,बस मानसिक बीमार हैं। 

      मैं अकेली,जितना हो पाता,करती रहती थी। घर का पूरा काम करके कॉलेज जाती थी। वहां भी मां की फिक्र लगी रहती थी।

पहले जो किराएदार से,वह शादी शुदा थे। उनकी पत्नी भली औरत थीं। तब मैं उनके भरोसे मां को छोड़ कर कॉलेज चली जाती थी। मगर उन्हें घर छोटा लगता था,इस लिए छोड़ कर चले गए। इसमें उनकी गलती नहीं थी,घर है ही इतना छोटा कि कोई भी पूरा परिवार अच्छी तरह नहीं रह सकता है। हमारी मजबूरी थी,पापा ने मुश्किल से यही बनाया था।

हम चाहते थे कि कोई परिवार वाला ही किराएदार रखें। मगर कई महीने घर खाली रखने के बाद भी कोई परिवार वाला किराएदार नही मिला। अंत में मुश्किल से यही अकेला किराएदार मिला जिसे देना मजबूरी थी।

इस किराएदार की उम्र मेरी मां के लगभग थी। देखने में रौबदार मगर शरीफ आदमी था। पहले तो कुछ महीने तक हम उसे ठीक से समझ नहीं पाए,क्योंकि उससे मुलाकात बहुत कम ही होती थी। वह सुबह जल्दी चला जाता और रात में देर से लौटता। शायद वह किसी कंपनी में मुलाजिम था। किराया वह बिल्कुल समय पर देता था।

सन्डे को उसकी छुट्टी रहती तो भी वह कमरे में बंद रहता। 

हम दोनो मां,बेटी को अजीब लगता। एक ही किराएदार, वह भी खामोश रहने वाला। साथ रहने वाले लोग अगर चुप्पी साध लें तो बुरा लगता है।

वैसे हमने भी तो कोशिश नहीं की थी।

लोगो की एक साधारण सोच होती है, गाय घास से दोस्ती कर लेगी तो खाएगी क्या..??

      बस इसी लिए हम किराएदारों से ज्यादा फ्री नहीं होते।

जबकि जरूरत पड़ने पर मकान मालिकों को फायदा उठाने में देरी नही लगती। मगर हम लोग ऐसे नहीं थे।

एक बार पैसों की दिक्कत के कारण हमारा दो महीने का इलेक्ट्रिक  बिल बाकी रह गया था। सुबह दस बजे अचानक बिजली विभाग वाले मीटर काटने आ गए। मुझे कॉलेज की देरी हो रही थी। मां बिजली वाले से रिक्वेस्ट कर रही थी कि अगले महीने बिल भर देगी। मगर मीटर काटने वाला हुज्जत पर उतर आया। तभी किराएदार ऑफिस जाने के लिए बाहर निकला और बिजली वाले को मां के साथ बदतमीजी करते देख कर रुक गया।

उसने बिजली वाले को पूछा कि मीटर काटने से पहले नोटिस दिया जाता है,तुमने दिया क्या..?

      बिजली वाला उनसे भी उलझ गया। फिर जो उस किराएदार का रौद्र रूप पहली बार हम लोगो ने देखा। उसने बिजली वाले का गला पकड़ा और घसीटते हुए गेट के बाहर ले जाने लगा। हमे लगा कि कहीं बात न बढ़ जाए,वह सरकारी आदमी था। मैं भी उसके पीछे भागी। किराएदार ने गेट के बाहर बिजली वाले को खड़ा किया और कहने लगा ” तुम बिना नोटिस के किसी अकेली महिला के घर में घुस कर हंगामा कर रहे थे। मैं अभी पुलिस में तुम्हारे ऊपर डकैती का गुनाह दाखिल करता हूं “

बिजली वाले ने अपनी गलती स्वीकार की और बिल आज ही भर देने का अनुरोध करता हुआ,भाग खड़ा हुआ।

किराएदार ने जिद कर के हमसे बिजली का बिल मांगा और जा कर भर दिया।

हम दोनो मां बेटी को अच्छा लगा। अब हमने जाना कि खामोश रहने वाले लोग,असमाजिक नही होते।

अगली सन्डे को वह अपने कमरे के बाहरी हिस्से में झाड़ू लगा रहा था। मां ने उपर के खिड़की से देखा तो उन्हे बुरा लगा। मां ने मुझे कहा कि जा कर उसे झाड़ू लगाने से रोके। जब तक मैं नीचे आती तब तक उसने अपना काम कर लिया था।

      फिर हमने उससे चाय के लिए पूछना शुरू किया। कई बार ना ना करते हुए एक बार हां कर दिया। फिर चाय का सिलसिला शुरू हो गया। उसके बाद कभी नाश्ता, कभी कुछ विशेष व्यंजन बनता तो उसे भी देने की शुरुआत हो गई।

वह भला आदमी था। हम बिना मतलब के उससे दूरी बना कर रख रहे थे।

कुछ दिनो बाद मां की बीमारी का असर कम होने लगा था। उनके स्वास्थ में सुधार होने लगा। अब वह बहुत सारा घर का काम करने लगी थी। उसे सामान्य देख कर मुझे इतमीनान होता।

      मां अक्सर कुछ कुछ खाने का व्यंजन बनाने लगी थी। जब बनता तब मुझे उसको दे आने के लिए कहती। जबकि वह खुद भी नीचे जाने के काबिल हो गई थी। बाजार हाट भी करने लगी थी। बस जब किरायेदार को कुछ देना होता तो वह मुझसे कहती और खुद उससे बचने की कोशिश करती। यानी किराएदार से वह बराबर फासला बनाना नही भूलती।

कभी कभी दोनो सामने होते तो दोनो की निगाहें जमीन पर गड़ी होती। वैसे यह तमीज की बात थी,मगर मुझे लगता यह तमीज कुछ ज्यादा ही हो जाती है।

     थोड़े समय बाद वह हमे अपने परिवार का हिस्सा लगने लगा था। मैं उससे बे तकल्लुफ होने लगी थी,मगर उसके व्यवहार में शालीनता बनी रहती,जो कभी कभी हमे बुरी लगती। हम उस पर विश्वाश और अपनापन बनाए रखते,वह भी हमारा आभार मानता,मगर उसका दायरा हमेशा सीमित रहता।

कुछ और समय बाद वह कभी कभी बाहर से कुछ खाने पीने की चीज लाता तो नीचे से ही आवाज लगा कर मुझे बुलाता  और दे देता। हमे अच्छा लगता।

हम चाहने लगे थे कि कभी कभार वह ऊपर भी आ सकता है।

      मगर वह सीढ़ियों की मर्यादा कभी नहीं लांघता। कभी हमसे बात करना भी होता तो वह नीचे से ही आवाज देता। उसकी पुकार सुन कर मां मुझे ही उससे पूछने को कहती जबकि वह खुद भी पूछ सकती थी। मैं ऊपर की खिड़की से बात करती तो मां बगल में खड़ी उससे छुप कर सुनती,मगर खुद उसके सामने नहीं आती। मुझे मां की यह बात अच्छी नहीं लगती। कभी कभी मैं मां से पूछती भी कि तुम खुद ही उनसे बात कर सकती थी तो क्यों मुझे परेशान करती हो..?

इस पर वह खामोश हो जाती।

यही हालत किराएदार की भी थी। उसके पास अनेक मौके होते जब वह सीधा मां से अपनी जरूरत की बातें कर सकता था,मगर वह भी मुझे ही माध्यम बनाता। 

    जब कभी वह दोनो सामने होते तो कभी भी नजर नहीं मिलाते। उनकी सारी काम की बातों में उनकी नजरें जमीन की भेट चढ़ जाती। यानी वे दोनो तब भी फ्री महसूस नहीं करते। उन दोनो के बीच कठोर मर्यादा की दीवार होती। वे दोनो हमेशा एक दूसरे से दूरी बना कर रखते।

मां और मैं,दोनो मेरी शादी के लिए परेशान रहते। मां मेरी शादी करना चाहती ,मगर मैं इस लिए शादी नहीं करना चाहती कि मेरे चले जाने के बाद मां का क्या होगा। इसी उधेड़बुन में मेरी उम्र बढ़ती जा रही थी। इस भारी मुश्किल का समाधान नहीं था। मां की बीमारी का मुख्य कारण,मेरी शादी नही हो पाना भी था।

मां हर किसी से मेरे लिए लड़का ढूंढने की बात करती। अच्छा लड़का मिलता भी,मगर मेरे लिए वह किसी काम का नहीं होता क्योंकि जब मैं लड़के से मां को साथ रखने की बात करती,तो वह भाग खड़ा होता।

कुछ दिन पहले एक लड़के के परिवार वालों से मां ने मेरी शादी की बात पक्की कर दी। मैं यह जानते ही गुस्सा और फिक्र से परेशान हो गई।

हम दोनो अपनी अपनी जिद में कई दिनो तक एक दूसरे से बात चीत बंद कर दी। मैं बिना खाए कॉलेज चली जाती जब लौटती तो पाती कि आज चूल्हा ही नहीं जला। मां की जिद ने उन्हे फिर से बीमार करना शुरू कर दिया था। मेरा मन अब किसी काम में नहीं लगता। न घर में और न हीं कॉलेज में।

     इधर मां ने शादी की तैयारियां शुरू कर दी थी। पड़ोस की चाची के साथ बाजार से खरीदारी करने लगीं।

उनके पुराने गहने थे उसे पॉलिश करने के लिए दे दिया। 

एक दिन बैंक में जा कर पापा का फिक्स डिपोजिट तुड़वा लाई। अब मुझे समझ में आने लगा कि अब बचना मुश्किल है।

मैने निश्चय किया कि एक बार लड़के से मिल कर अपनी शर्त रखूंगी। अगर मान गया तो ठीक वरना शादी तोड़ दूंगी। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मैं क्या करूं। मां को मैं किस के भरोसे छोड़ कर शादी कर लूं…? ज्यों ज्यों मां के द्वारा तय की गई शादी की तारीख करीब आती जा रही थी। त्यों त्यों मेरी मानसिक स्थिति खराब होती जा रही थी।

इसी परेशानी के बीच एक दिन मैं कोलेज से लौट कर सीढ़िया चढ़ती हुई दरवाजे के पास पहुंची तो ड्राइंग रूम से किराएदार को मां से बात करने की आवाज सुन कर मेरे पांव दरवाजे के बाहर ही ठिठक गए। दरवाजा खुला था मगर पर्दा लगा होने के कारण कोई मुझे बाहर खड़ा देख नहीं सकता था।

मेरे लिए यह आश्चर्यजनक बात थी।

      जिस आदमी ने कभी भी हमारी सीढ़ी पर पांव नहीं रखा और जिस मां ने कभी भी किराएदार से आंख तक नहीं मिलाई,वह दोनों बातें कर रहे थे..?

मेरी जिज्ञासा बढ़ी और मैं छुप कर उन दोनो की बात सुनने लगी।

किराएदार कह रहा था ” तुमने इतना कष्ट उठाया और मुझे बताया तक नहीं..? माना कि शादी करना तुम्हारी मजबूरी थी,मगर एक बार मुझसे कह कर तो देखा होता..?

मां ने कहा ” मैं बाबूजी से कैसे कहती। अगर मैं किसी के माध्यम से उन्हे बताती भी तो सिवाय मेरी और उनकी बदनामी के और कुछ भी हासिल नहीं होता.”

    “तुमने जब कॉलेज आना बंद किया तो मुझे लगा कि शायद तुम बीमार हो या कहीं बाहर गई हो। एक दिन रूपम ने बताया कि उसी दिन तुम्हारी शादी है। मैं आवक रह गया। जब तुम्हारी बारात लगी तब मैं वहीं था। सोचो मेरी क्या हालत हुई होगी ” किराएदार ने जवाब दिया।

मां ने सिसकते हुए कहा ” तुमने भी तो देर कर दी थी। तुम्हे अपने परिवार वालों को मेरे घर भेजना चाहिए था “

किराएदार ने जवाब दिया ” हां, इसे मेरी गलती कह सकती हो। मगर मुझे कहां पता था कि तुम इतनी जल्दी पराई कर दी जाओगी. “

दोनो कुछ देर खामोश रहे। सिर्फ मां के सिसकने की आवाज आ रही थी।

थोड़ी देर की खामोशी के बाद मां की आवाज आई ” उस दिन जब तुम किराए पर रूम लेने के लिए मेरी बेटी से नीचे बात कर रहे थे,तब मैंने ऊपर खिड़की से देख लिया था।

     तुम्हारे चले जाने के बाद बेटी ने बताया कि तुम अकेले रहने वाले हो। पहले हमने तय किया था कि किसी अकेले किराएदार हो कमरा नहीं देंगे। मगर मुझे तुम्हारी नेक नियति पर आज भी यकीन था। जवान बेटी के होते हुए भी मैने तुम्हे रूम देने की हामी भरी थी “

किराएदार ने जवाब दिया ” हां,मैं भी तुम्हे पहली बार देखा तो हैरान रह गया। मुझे अफसोस भी हुआ कि तुम्हारे पति नहीं रहे. “

” उस दिन तुमने बिजली वाले को सबक सिखाई तब मुझे भरोसा हुआ कि आज भी तुम्हे मेरी मर्यादा का खयाल है। मुझे अच्छा लगा और हम दोनो मां बेटी को पहली बार लगा था कि उसके पिता के जाने के बाद भी अब हम सुरक्षित हैं। कोई है जिसे ईश्वर ने हमारी परवाह करने के लिए भेजा है.”

थोड़ी देर दोनो खामोश रहे,फिर मां ने पूछा “तुम्हारा परिवार कहां है। कौन कौन हैं…?”

उसने कमजोर शब्दों में कहा ” तुम से बिछड़ने के बाद,मेरे जीने का हौसला टूट गया था। मगर मुझ पर मेरे परिवार की जिम्मेदारी थी।पढ़ाई खत्म कर के नौकरी करने लगा। घर को व्यवस्थित करते करते पहले मां गईं। मां के जाने के कुछ महीने बाद ही पापा चले गए। उनके बाद कोई मुझे पूछने वाला था नहीं जो मुझसे शादी की बात करता। फिर इतना अरसा गुजर गया कि शादी का खयाल ही नहीं आया। अब तन्हा हूं.”

उनकी बातों को सुन कर मेरी आंखे भरने लगी थीं।

कुछ देर खामोश रहने के बाद मां ने कहा ” बेटी की शादी की उम्र निकलती जा रही है। मगर वह मुझे अकेला छोड़ कर शादी करना नहीं चाहती है। मेरी परेशानी का उसे जरा भी ख्याल नहीं है। बड़ी मुश्किल से यह रिश्ता मिला है।

      मैने किसी तरह तैयारियां तो कर ली है। मगर उसका कोई भरोसा नहीं कि कब ना बोल दे। पास पड़ोस वाले ताना देते हैं कि मैं उसकी कमाई के कारण व्याह नहीं कर रही हूं। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं…”?

किराएदार ने कहा ” उसकी सोच भी सही है। तुम्हे किसके भरोसे छोड़ कर जाए। मैं तो उसे इस मामले में कुछ समझा नहीं सकता। मगर तुम्हे यकीन दिला रहा हूं। भविष्य में क्या होगा,पता नहीं,मगर मैं तुम्हारे साथ एक किराएदार के रूप में पूरी जिंदगी यहीं बीता कर अपनी प्रायश्चित करूंगा। तुम्हे किसी भी हालत में अकेला नहीं छोडूंगा। मेरा यकीन करो। जो गलती मुझसे तब हुई थी,उसका प्रायश्चित मैं जरूर करूंगा “

उनकी बात सुनते हीं मेरे आंखों की पोर पर टिके आंसू बहने लगे। मुझसे वहां खड़ा रहना मुश्किल हो गया था। मैं धीरे धीरे सीढ़िया उतरने लगी।

       आज सीढियां उतरते हुए मेरा मन भारी बोझ से मुक्त महसूस हो रहा था। मुझे लग रहा था जैसे मेरी कोई मुराद पूरी हो गई है। मैं खुद को हल्का और भावुक महसूस कर रही थी। मैं धीरे धीरे चलती हुई नीचे आई और एक कोने में बैठ कर फुट फूट कर रो पड़ी।

जी भर कर रो लेने के बाद मैने मां को फोन लगाया कि मैं पांच मिनिट में पहुंच रही हूं। मैने ऐसा इस लिए किया कि किराएदार वहां से हट कर अपने कमरे में चला जाए ताकि हम तीनो की मर्यादाएं छुपी रह सके।

मैने देखा वह जल्दी जल्दी सीढ़िया उतर कर अपने कमरे में चला गया।

वह अपने कमरे में तो चला गया,मगर मेरे अंदर भरोसा..इतमीनान भर गया था। मुझे लग रहा था मानो मेरे मन से भारी बोझ उतार गया हो।

मैं ऊपर आई तो मां सोफा पर बैठी थी। उसकी आंखें रोने के कारण सूजी हुई थी। उसके चेहरे पर मेरे शादी से इंकार का खौफ साफ दिख रहा था।

पिछले कई दिनो से मैं मां से नाराज थी।

      उसे आज भी मेरी नाराजगी की आशंका थी। मगर आज मैं खुशी से उसके गले से लग गई। मां को अजीब सा लगा। उसने मुझे थोड़ा हटा कर मेरी आंखों में देखा। मेरी इतमीनान से भरी आंखों को देख कर उसे आश्चर्य हुआ। मैने हंसते हुए उसके गालों को सहलाया और फिर अपने गले से लगाते हुए पूछा ” सारी तैयारियां हो गई क्या..? कुछ बाकी हो तो बता देना। मैं दो तीन दिन कॉलेज नही जाऊंगी और तुम्हारा हाथ बटाऊंगी “

मां मुझे आवाक सी देखे जा रही थी। मेरी हसीं,मेरा इतमीनान उसे भ्रमित कर रहा था।

       आज मेरी शादी है। मैं खुश हूं कि मेरे जाने के बाद मां के पास कोई अपना तो है,जो उनका जी जान से ख्याल रखेगा। मैने यह जाहिर नहीं होने दिया कि उनके रिश्ते के बारे में मैं जानती हूं। जमाना चाहे जो कहे,मुझे उसकी परवाह नही। मुझे बस यकीन है कि हमारे घर के निचले हिस्से में रहने वाला किराएदार कभी भी मेरी मां की मर्यादा की सीढ़ी नहीं लांघेगा और उनका ख्याल रखेगा।

विदाई के वक्त मां रो रही थी। पास पड़ोस के लोग भी विदाई में शामिल थे। मां के गले से लग कर मैं खूब रोई। कार पर चढ़ने वक्त मैंने देखा,मेरा किराएदार कार का दरवाजा खोले खड़ा था। मैं कुछ देर तक उसकी आंखों में देखती रही,मानो मेरी नजर उसकी आंखों में मेरी मां के भरोसे को ढूंढ रही हो। मैं अनायास ही उसके पांव को छूने के लिए झुक गई। वह आवाक सा खड़ा रहा। मैं उसके चरणों से तब उठी जब उसका हाथ अपने माथे पर महसूस किया।

कार चल पड़ी। थोड़ी दूर जाने पर मैने पीछे मुड़ कर देखा,किराएदार मेरी मां के बिलकुल करीब खड़ा था……!

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