मुनेश त्यागी
सरकार की जानी-मानी साजिश के तहत भारत के 50 स्वतंत्र लेखकों और पत्रकारों के लैपटॉप और मोबाइल दिल्ली पुलिस ने जब्त कर लिए हैं और न्यूज़ क्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और प्रशासक अमित चक्रवर्ती को गिरफ्तार कर लिया है। उन पर दमनकारी और आतंकवादी कानून यूएपीए के तहत आतंकवाद से निपटने के नाम पर मुकदमें लगाए गए हैं। उन्हें आतंकवादी और देशद्रोही बताया जा रहा है।
तानाशाही के बढ़ते षड्यंत्र, तानाशाह की बढ़ती दहशत, डर और खौफ, तानाशाही की बढ़ती निरंकुशता अब अपने असली रूप में देश की जनता के सामने प्रकट हो चुकी है। तानाशाह की बढ़ रही घबराहट और हड़बड़ाहट और बेखौफ आवाजों को कुचलने की तानाशाही और आजाद प्रेस और पत्रकारों से डरा हुआ तानाशाह बदहवास हो गया है। यह सब बता रहा है कि अब यहां कानून के शासन, अभिव्यक्ति की संवैधानिक गारंटियों और न्यायपालिका द्वारा बरती जा रही आजादी की चौकसी के कोई मायने नहीं रह गए हैं।
केंद्र सरकार की दिल्ली पुलिस ने निर्विवादित रूप से साबित कर दिया है कि वह सच की अभिव्यक्ति, पत्रकारों की आजादी, कलम की स्वतंत्रता और आजाद ख्यालों से थर-थर कांपने लगी है। न्यूज क्लिक के लेखकों, पत्रकारों उर्मिलेश, भाषा सिंह, अभिशार शर्मा, अनिन्दो चक्रवर्ती, सोहेल हाशमी और प्रबीर पुरकायस्थ के घरों पर की गई छापेमारी और गिरफ्तारी एकदम मनमानी, डरानेवाली, धमकाने वाली, सताने वाली, गैरकानूनी और संवैधानिक है। यह कानून के शासन और प्रेस की आजादी का खुल्लम-खुल्ला हनन है, प्रेस की आजादी का गला घोटने की सबसे क्रूरतम और गैरकानूनी सरकारी साजिश का हिस्सा है। पत्रकारों और कलम के सिपाहियों को चुप करने की मुहीम खुले तौर पर शुरू हो गई है।
इससे पहले सच की आवाज को दबाने के लिए बीबीसी, न्यूज़ लॉन्ड्री, भास्कर, भारत समाचार, कश्मीर वाला और द वायर पर भी मनमानी और डराने वाली कार्यवाहियां की गई थीं। भारत विश्व प्रेस सूचकांक में लगातार गिरता जा रहा है। वह विश्व प्रेस सूचकांक में नीचे के 20 देश में शामिल हो गया है। भारत जी-20 में भी सबसे नीचे पायदान पर है। यह सरकार से असहमति के अधिकार पर सबसे बड़ा कुठाराघात है और यह मदर ऑफ डेमोक्रेसी की भी हत्या है।
यह छापेमारी और गिरफ्तारी बता रही है कि सरकार सच और विवेक की रिपोर्टिंग से डर गई है। वह सच्चाई को जनता के सामने नहीं आने देना चाहती। सरकार की ये तमाम कार्यवाहियां आजाद प्रेस को, पत्रकारों को और स्वतंत्र लेखकों को डराने की साजिश का बहुत बड़ा हिस्सा है। सरकार की ये तमाम दहशतगर्द कार्यवाहियां पूरे देश की प्रेस मीडिया, पत्रकारों और आज़ाद ख्याल लेखकों को डराने और धमकाने की खौफजदा कार्यवाहियां हैं। ये मनमानी और तानाशाही पूर्ण कार्यवाहियां खोजी पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की आजादी पर सबसे बड़ा हमला हैं।
कल तक, सरकार के राजनीतिक और विपक्षी कार्यकर्ताओं पर ईडी, आई टी और सीबीआई के हमले करके उन्हें चुप करने की साजिशें हो रही थीं। अब आजाद ख्याल पत्रकारों, लेखकों और आजाद मीडिया कर्मियों पर इस तरह का हमला किया जा रहा है ताकि सरकार के विरोध और जनता के हित में सच्चाई की आवाज और कलम की आजादी की हर कोशिश को डरा धमकाकर चुप कराया जा सके। अभिव्यक्ति की आजादी पर यह ताजा तरीन हमला एक सरकार की सोची समझी साजिश का बड़ा हिस्सा है और सरकार के सर्वांगीण पतन की सबसे बड़ी निशानी है।
मौजूदा सरकार संविधान के नाम पर, संविधान की शपथ खाकर सत्ता में आई है, मगर वह आज संविधान और अभिव्यक्ति की आजादी को पूरी तरह से रौंदने और नेशनाबूद करने पर तुली हुई है। इन आजाद कलाम के और सच्चाई के समर्थक पत्रकारों और लेखकों का अपराध यह है कि ये पत्रकार और लेखक, सरकार की जन विरोधी नीतियों पर बेबाकी से लिखते रहते हैं, उनके बारे में जनता को बताते रहते हैं, सरकार की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जन विरोधी नीतियों से जनता को अवगत कराते रहते हैं। ये सरकार की अमीरों को अमीर और गरीबों को गरीब बनाने वाली नीतियों की जनता को जानकारी देते रहते हैं।
इनका अपराध यह है कि ये पत्रकार और लेखक उन सब मुद्दों को जनता के सामने लाते रहते हैं जिन्हें गोदी मीडिया और जेबी मीडिया जनता से छुपाता है और उसे गुमराह करता रहता है। कितने कमल की बात है कि पूंजीपतियों के जो जेबी पत्रकार और गोदी मीडिया दिन-रात हिंसा, नफरत, अंधविश्वासों और धर्मांधता का साम्राज्य मजबूत करने में जुटे हैं और विवेक, ज्ञान और आलोचना व अन्वेषण की भावना पर लगातार चोट करते रहे हैं, उन्हें सरकार ने खुला छोड़ दिया है और जो पत्रकार और लेखक सरकार की जन विरोधी नीतियों का भंडाफोड़ कर रहे हैं और जनता को सच्चाई से अवगत करा रहे हैं, उन्हें डराया धमकाया और जेल में भेजा जा रहा है। यह प्रेस की और अभिव्यक्ति की आजादी पर सबसे बड़ा हमला है। यह भारत के जनतंत्र का सबसे काला अध्याय है।
अब जनता की बारी है कि वह एकजुट होकर प्रेस की आजादी और कलम पर लगाई जा रही बंदिशों का खुलकर जवाब दे और सच्चाई और जनता के दोस्त पत्रकारों और लेखकों का खुलकर साथ दे, वरना बहुत देर हो जाएगी और तब पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा।
ऐसे समय के लिए ही क्रांतिकारी शायर फ़ैज़ अहमद फैज ने लिखा था कि ,,,
मताएं लौहो कलम छिन गई तो क्या गम है
कि खून ऐ दिल में डुबो ली हैं उंगलियां मैंने,
जबां पर मोहर लगी तो क्या कि रख दी हैं
हर हल्का ऐ जंजीर में जबां मैंने।
आज के इस इस कठिन समय में भारत की जनता को, किसानों मजदूरों को, बुद्धिजीवियों को, तमाम धर्मनिरपेक्ष ताकतों को, इन स्वतंत्र और जनता के सच्चे दोस्त लेखकों और पत्रकारों के साथ मजबूती से खड़ा होने की महती जरूरत है और इस तानाशाहीपूर्ण काले और जनतंत्र विरोधी समय का मुकाबला करने की सबसे बड़ी जरूरत है और मजबूती के साथ यह कहने की जरूरत है,,,,
उन्हीं के सामने उनकी शिकायत का इरादा है
नतीजा कुछ भी निकले आज बगावत का इरादा है।