रवीश कुमार
भारत में इस विषय पर रिसर्च किए जाने की बहुत ज़रूरत है। कई लोग मुझे लिखते हैं कि व्हाट्स एप ग्रुप में रिश्तेदारों से बहस करना मुश्किल हो गया है। वो इतनी सांप्रदायिक बातें करते हैं कि उनसे बहस करना मुश्किल हो गया है। ये रिश्तेदार अपनी मूर्खता को लेकर इतने उग्र हो चुके हैं कि इनके सामने बहुत लोग खुद को असहाय पाते हैं। आप कुछ भी तर्क दीजिए, तथ्य दीजिए इन रिश्तेदारों पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है। रिश्तेदार एक व्यापक टर्म है इसमें पिता भी शामिल हैं। उनके लिए अलग से कैटेगरी नहीं बनाई है। यह समस्या मामूली नहीं है।
मेरा सुझाव है। इस तरह की बहसों और फार्वर्ड किए जा रहे पोस्ट की सामग्री जमा करें। ख़ुद ही विश्लेषण करें और दो तीन हफ़्तों के अंतराल पर रिश्तेदार को भेज दें कि ये आपके सोचने का पैटर्न है। किस कैटेगरी के रिश्तेदार हैं, अपने जीवन यापन के लिए किया करते हैं, इनके घर में कौन सी किताबें हैं, क्या पढ़ते हैं, कौन सा चैनल देखते हैं और कितनी देर देखते हैं। फ़ेसबुक पर भी अपने विश्लेषण को पोस्ट करें। रिश्तेदारों की सांप्रदायिकता को लेकर बड़े स्तर पर अभियान चलाने की ज़रूरत है। कौन रिश्ते में क्या लगता है केवल उस रिश्ते का आदर करें मगर उनकी सांप्रदायिक बातों से संघर्ष करना बहुत ज़रूरी है।आपको यह समझना होगा कि इन रिश्तेदारों के असर में आकर कोई बच्चा दंगाई बन सकता है। किसी की हत्या कर सकता है। ये रिश्तेदार हमारे सामाजिक ढाँचे के लिए ख़तरा बन चुके हैं। व्हाट्स एप ग्रुप के रिश्तेदारों से सतर्क होने का समय आ गया है। इनसे दूर मत भागिए। सामने जाकर कहिए कि आप कम्यूनल है। आपकी सोच एक दंगाई की सोच हो चुकी है। परिवारों में लोकतंत्र बचेगा तभी देश में लोकतंत्र बचेगा।