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शेयर की खरीद-बिक्री की सुरक्षा के लिए क्यों जरूरी है डीमटीरियलाइजेशन

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धनेन्द्र कुमार

पहले शेयर की खरीद-बिक्री के लिए काफी जटिल कागजी कार्रवाई होती थी, जिसमें बहुत सारे दस्तावेज और लेन-देन के समझौते आदि शामिल होते थे। एक आम आदमी के लिए यह बहुत कठिन और खर्चीला था। इसे डीमटीरियलाइजेशन (DMAT) के जरिए काफी आसान बना दिया गया है। DMAT अकाउंट में शेयर, बॉन्ड्स, म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस जैसे इन्वेस्टमेंट को रखने की प्रक्रिया डिजिटल है तो यह सरल और पारदर्शी हो जाती है। इसके चलते आज एक आम आदमी के लिए शेयर मार्केट, म्यूचुअल फंड, बॉन्ड वगैरह में खरीद-फरोख्त आसान हो गई है।

DMAT अकाउंट में शेयर, बॉन्ड्स, म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस जैसे इन्वेस्टमेंट को रखने की प्रक्रिया डिजिटल है

DMAT की सेफ्टी

प्रतिभूतियों (Securities) की प्राप्ति में देरी को कम करने के लिए, IPO में बड़ी संख्या में आवेदनों को प्रॉसेस करने, शेयर प्रमाण-पत्रों को सुरक्षित रखने और चोरी, फ्रॉड वगैरह को रोकने के लिए DMAT प्रक्रिया अपनाई गई थी।

  • 1996 का डिपॉजिटरी अधिनियम DMAT प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। भारत में दो डिपॉजिटरी हैं- सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज (इंडिया) लिमिटेड और नैशनल सिक्यॉरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड।
  • आमतौर पर तीन तरह की कंपनियां अपनी प्रतिभूतियों को DMAT फॉर्म में बदल सकती हैं। लिस्टेड कंपनी, अनलिस्टेड पब्लिक कंपनी और अनलिस्टेड निजी कंपनी।
  • लिस्टेड कंपनी अपनी प्रतिभूतियां स्टॉक मार्केट पर लिस्ट करती हैं, जिससे लोग इसे खरीद-बेच पाएं। इन कंपनियों को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) और कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय (MCA) विनियमित करता है।
  • लिस्टेड कंपनियों के लिए SEBI DMAT प्रकिया को डिवेलप करने के लिए समय-समय पर आदेश जारी करता है। इस प्रक्रिया के तहत लिस्टेड कंपनियों के लिए अपनी भौतिक प्रतिभूतियों को DMAT में बदलना जरूरी होता है।
  • SEBI ने 1 अप्रैल 2019 से भौतिक रूप में शेयरों के किसी भी प्रकार के हस्तांतरण को बैन कर दिया। यह बदलाव प्रतिभूतियों के हस्तांतरण में धोखाधड़ी और हेर-फेर के जोखिम को रोकने के लिए किया गया था।
  • DMAT से लेन-देन में सुविधा और सुरक्षा को देखते हुए MCA ने 10 सितंबर, 2018 को एक अधिसूचना जारी कर निर्देशित किया कि सभी अनलिस्टेड पब्लिक कंपनियां 2 अक्टूबर, 2018 से केवल DMAT से ही प्रतिभूतियां जारी करेंगी।
  • इससे लगभग 30 से 40 हजार अनलिस्टेड पब्लिक कंपनियों के परिवर्तन में मदद मिली। लेकिन ऐसी कंपनियों की कुल संख्या लगभग 10% ही है।

नई अधिसूचना

फिर भी, रजिस्टर्ड कंपनियों में सबसे बड़ी संख्या अनलिस्टेड प्राइवेट कंपनियों की है। पिछले महीने 27 अक्टूबर की अधिसूचना में केंद्र सरकार ने अनलिस्टेड प्राइवेट बड़ी कंपनियों (जिनमें यूनिकॉर्न स्टार्ट-अप भी शामिल हैं) के लिए डीमटीरियलाइजेशन अनिवार्य कर दिया है। इसमें छोटी और सरकारी कंपनियों को छूट दी गई है। कंपनियों को इसका अनुपालन 30 सितंबर, 2024 तक करना होगा। इस डेट के बाद कोई भी प्राइवेट कंपनी अपनी सिक्यॉरिटीज को डीमटीरियलाइजेशन किए बिना इश्यू या वापस खरीद नहीं कर सकेगी। सरकार का यह निर्देश वित्तीय व्यवस्था में पारदर्शिता और बेहतर निगरानी के लिए जरूरी माना गया है और इससे बेनामी लेन-देन पर अंकुश लगाया जा सकता है।

फायदे ही फायदे

डीमटेरियलाइजेशन के अनेक लाभ हैं।

  • इनमें भौतिक दस्तावेजों के खोने का भय नहीं रहता। लेन-देन में समय की बचत, जटिल और खर्चीली कागजी कार्रवाई से बचत, स्टांप शुल्क और अन्य शुल्क जैसी लागत में बचत तो होती ही है, लेन-देन को ट्रैक करने में भी सुविधा होती है।
  • DMAT से शेयरों के स्वामित्व के स्पष्ट डेटा से धोखाधड़ी भी रोकी जा सकती है।
  • इससे कंपनियों में देश और विदेश के निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा।

सुरक्षित निवेश

भारत में जनधन-आधार-मोबाइल (JAM) योजना के तहत आम लोगों के 50 करोड़ से अधिक खाते खोले गए हैं। इनमें 55.5% महिलाएं हैं। इन खातों में 2 लाख करोड़ रुपये जमा हुए हैं। इसके चलते छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में आम आदमी, खासतौर से महिलाओं को निवेश और बचत जुटाने में भी मदद मिलेगी। ऐसे में भारत के कोने-कोने से छोटी बचत जुटेगी जिसका कॉरपोरेट सेक्टर में आसान और सुरक्षित निवेश हो सकता है। इसमें DMAT का बड़ा योगदान संभावित है।

(लेखक वर्ल्ड बैंक में भारत के पूर्व कार्यकारी निदेशक रहे हैं)

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