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बढ़ती प्रदूषण समस्या के लिए फैक्ट्रियां, वाहन और सरकार की ग़लत नीतियां जिम्मेदार

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मुनेश त्यागी

         हर साल की तरह इस साल भी प्रकृति और मैन मेड प्रदूषण के घेरे ने नेशनल कैपिटल रीजन को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। इस बार तो प्रदूषण इतना घनघोर और भयानक है कि लोगों का सांस लेना भारी हो रहा है, उनके गले में खरांस और खांसी हो रही है, आंखों से पानी बह रहा है, नाक से जैसे सांस लेना भरी हो रहा है। इस स्थिति को देखकर तो लगने लगा है कि अब मेहनत से बनाए गए इन घरों को छोड़कर यहां रहने वालों को अपने गांव देहात जाना होगा। इस स्थिति को लेकर भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी बहुत गंभीर है, मगर सरकार की कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है।

      आजकल दिल्ली का नेशनल कैपिटल रीजन प्रदूषण की गंभीर चपेट में है। पूरे आसमान पर धुंध और धुआं छाया हुआ है जिस वजह से सांस लेना भी दूभर हो रहा है। जैसे पूरा नेशनल कैपिटल रीजन एक गैस चेंबर बनकर रह गया है। बच्चे बीमार हो जा रहे हैं। कई बच्चे तो स्कूल के समय में ही बेहोशी की स्थिति में पहुंच गए हैं। इसे लेकर मीडिया में काफी शोर मचा हुआ है और स्थिति यहां तक गंभीर हो गई है कि सरकार को बीस नवंबर तक स्कूलों को बंद करने को मजबूर होना पड़ा है।

      कोई कुछ कह रहा है, कोई कुछ कह रहा है। कोई इसके लिए पटाखों के छोड़ने को जिम्मेदार मान रहा है, तो कोई वाहनों को जिम्मेदार मान रहा है, तो कोई उद्योगों और फैक्ट्रियों से लगातार निकलते धुएं को इसके लिए जिम्मेदार मान रहा है और अधिकांश सरकारी अमला तो इसके लिए पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाने को जिम्मेदार ठहरा रहा है।

        मगर सरकार इस सबको लेकर गंभीर नहीं है, ना दिल्ली की सरकार और ना केंद्र की सरकार। इन दोनों सरकारों ने पिछले काफी वर्षों से इस बढ़ती समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया है। हां, एक दूसरे के ऊपर दोषारोपण जरूर किया है, मगर किसी भी सरकार ने बढ़ते प्रदूषण के कारणों की जांच नहीं की।

      अगर हम जहरीले होते हुए प्रदूषण पर एक नजर डालें कि कौन कितना प्रदूषण फैला रहा है तो हम पाते हैं कि इस प्रदूषण फैलाने के लिए 51 परसेंट जहरीला धुआं उगलती हुई फैक्ट्रियां और उद्योग जिम्मेदार हैं। 25% वाहन जिम्मेदार हैं। 11% घरेलू उपयोग जिम्मेदार है। 8% कृषि जिम्मेदार है। 4% अन्य कारण जिम्मेदार हैं इस प्रकार हम देख रहे हैं कि 76% प्रदूषण केवल फैक्ट्रियां और वाहन फैला रहे हैं कृषि मात्र 8 परसेंट प्रदूषण फैला रही है।

        यहीं पर सबसे बड़ा सवाल उठता है तो फिर खेती और किसान व पराली जलाने को इसके लिए मुख्य रूप जिम्मेदार क्यों और कैसे ठहराया जा रहा है? क्या इस समस्या से ध्यान भटकाने के लिए और इसकी सारी जिम्मेदारी किसानों पर या पराली पर डाली जा सकती है? उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर हमारी सरकार को प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे। इसके लिए सरकार को नई टेक्निक की इजाद करनी पड़ेगी और उसे अपनी परिवहन नीतियों में जबरदस्त सटीक तरीके से सुधार करना होगा।

         पूरी दुनिया में उद्योग धंधे फल फूल रहे हैं। बैजिंग, टोक्यो, मास्को, शंघाई, न्यूयॉर्क, लंदन, वाशिंगटन, ब्राजीलिया और दुनिया के दूसरे शहरों में वहां पर, दिल्ली एनसीआर जैसी प्रदूषण की समस्या नहीं है। आखिर क्यों? हमें उन देशों से सीखना पड़ेगा और फैक्ट्रियों द्वारा प्रदूषण फैलाने पर रोक लगाने की पहल करनी होगी।

       दूसरे, हमारे यहां वाहन प्रणाली को लेकर सरकार की नीतियां ठीक, जनहितकारी और पर्यावरणरक्षक नहीं हैं। सरकार की नीतियां देश और दुनिया की “वाहन लोबी” तय कर रही है। सरकार ने इस वाहन लोबी के सामने नतमस्तक कर दिया है पूरी वाहन लोबी का मकसद, अपने वाहन बेचकर सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना है, मुनाफा बटोरना है, उसे जनता की समस्याओं से कुछ लेना देना नहीं है, उसे प्रदूषण के खतरनाक स्तर तक खराब हो जाने से कोई समस्या या परेशानी नहीं है। 

     इसी वजह से पूरा पर्यावरण चंद पूंजीपति मुनाफाखोरों की मुनाफाखोरी की भेंट चढ़ गया है। सरकार ने सस्ती वाहन व्यवस्था की नीतियों का परित्याग कर दिया है और अपनी जिम्मेदारी छोड़कर, आने जाने के लिए जनता को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहरा दिया है। इसलिए लोग अपने सस्ते और सुलभ साधन ढूंढ रहे हैं और उन्होंने निजी वाहनों का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। इसी कारण सड़कों पर कारों की लाइन लग गई है और यह समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसके कारण प्रदूषण की समस्या भयंकर होती जा रही है। रोजी रोटी कमाने के लिए, दूसरे निजी वाहन भी इस समस्या को दिन प्रतिदिन और भयावह एवं गंभीर कर रहे हैं।

       इसके लिए हमारा सुझाव है कि कारों के व्यक्तिगत प्रयोग पर रोक लगा देनी चाहिए और सिर्फ शासन-प्रशासन और बीमारों को लाने ले जाने के लिए व्यक्तिगत वाहनों का प्रयोग स्वीकृत किया जाना चाहिए। व्यक्तिगत वाहनों की समस्या से निपटने के लिए यह जरूरी है कि सरकार बहुत बड़े पैमाने पर वाहन प्रणाली में सुधार करें। सड़कों पर धुआं रहित निजी वाहनों और बसों का संचालन किया जाए, यात्रियों की संख्या के अनुपात में, आधुनिक धुंआ रहित बसों को सड़कों पर लगाया जाए। इसी के साथ साथ शहरों में मेट्रो की व्यापक सुव्यवस्था की जाए और इसी के साथ साथ अगर सरकार परिवहन व्यवस्था को आधुनिक, ऐसीयुक्त करके और चुस्त-दुरुस्त कर देगी और सभी मुख्य मार्गों पर ऐसीयुक्त परिवहन व्यवस्था की का इंतजाम कर देगी और मुख्य मार्गों पर रेल परिवहन और मेट्रो का जाल बिछा देगी, तो लोग पहले की तरह, सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का प्रयोग करने लगेंगे और अपने निजी वाहनों का प्रयोग बंद कर देंगे। ऐसा करने से प्रदूषण की समस्या काफी हद तक सॉल्व हो जाएगी।

        अब से 20 साल पहले इन तमाम शहरों में यह प्रदूषण की समस्या नहीं थी। पहले तो कोई प्रदूषण नहीं होता था। पहले किसानों को इसके लिए दोषी नहीं ठहराया जाता था, तो इसका कारण यह था कि पहले सड़कों पर कारों की संख्या इतनी नहीं थी जितनी आज है। कारों की बढ़ी हुई संख्या सड़कों पर होने की वजह से और दूसरे वाहनों की संख्या बढ़ने के कारण, ट्रकों, बसों, टेंपो आदि रोज लगातार वातावरण में धुआं फेंक रहे हैं, प्रदूषण फैला रहे हैं और यह धुंआं वातावरण में रम कर जाता है, हवा न चलने के कारण इधर-उधर नहीं जाता, जिस कारण प्रदूषण की समस्या भयंकर रूप लेती जा रही है।

       इसी के साथ साथ पराली की समस्या पर भी समुचित ध्यान देकर, किसानों को विश्वास में लेकर और पराली की समस्या से निबटने के लिए नई तकनीक लाकर, पराली को जलाने की समस्या से निपटा जा सकता है। पराली से छोटे उद्योग लगाए जा सकते हैं, पराली को पशुओं का चारा इस्तेमाल करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा सकता है,  पराली की समस्या से निपटने के लिए मशीनों का इस्तेमाल  किया जा सकता है। यह सब करने के लिए सर्वकल्याणकारी नीतियों को लेकर सरकार को आगे आना पड़ेगा। इसके लिए केवल किसानों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

     इसी के साथ-साथ सरकार को दुनिया के बड़े-बड़े शहरों का भी अध्ययन करना होगा और यह जानना होगा कि वहां पर प्रदूषण की समस्या को किस तरह से नियंत्रण में किया गया है? वहां पर सरकारों ने और जनता ने क्या-क्या कदम उठाए हैं? जिस वजह से वहां के बड़े-बड़े शहरों में प्रदूषण की समस्या नहीं है। उसी के आधार पर भारत के शहरों में हो रही प्रदूषण की घातक समस्या से निपटा जा सकता है।

        तो इस प्रकार संक्षेप में हमारा कहना यह है कि फैक्ट्री और उद्योग धंधों को धुआं रहित बनाया जाए, सड़कों पर निजी वाहनों के निजी प्रयोग पर रोक लगाई जाए, बसों के ओड इविन  इस्तेमाल पर अमल किया जाना चाहिए, जहां तक हो सके, घरों से ही काम करने को बढ़ावा दिया जाए। सड़कों पर सरकार द्वारा आधुनिक सुविधाओं से लैस सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था अपनाकर, बसों और मेट्रो का पर्याप्त इंतजाम किया जाए, ताकि लोग अपने ऑफिसों को जाने के लिए, या बाजार में जाने के लिए, या अपने काम करने के लिए सार्वजनिक वाहन प्रणाली का प्रयोग करें, अपने व्यक्तिगत वाहनों का नहीं।

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