अग्नि आलोक
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कुछ देर के लिए ही सही बाँट लिया कर मेरे बुढ़ापे का अकेलापन…. 

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पति पत्नी दोनों आने वाले बड़े त्योहार की ख़रीदारी को लेकर बहुत जल्दीबाजी में औऱ बहुत उत्सुक थे ।

पति ने पत्नी से कहा, “ज़ल्दी करो, मेरे पास टाईम नहीं है औऱ भी जरुरी काम है ऑफिस का ।” 

दोनों तैयार होकर घर से निकलने लगे ….

तभी बाहर बरामदे में बैठी बूढ़ी माँ पर उसके बेटे की नज़र पड़ गई ।

वह माँ के पास जाकर बोला, “माँ, हम लोग त्योहार की ख़रीदारी के लिए बाज़ार जा रहे हैं। आपको कुछ चाहिए तो मुझें बता दीजिए प्लीज ।

माँ ने कहा.. मुझे कुछ नहीं चाहिए बेटा…।”

बेटे के बार बार बहुत ज़ोर देकर कहने पर माँ बोली, “ठीक है, तुम रुको, मैं अभी तुम्हें लिख कर देती हूँ।

उसके कुछ देर बाद माँ ने बेटे को कुछ लिखकर एक कागज़ थमा दी ।

बेटा गाड़ी के ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए अपनी पत्नी से बोला, “देखा, माँ को भी कुछ चाहिए था, पर बोल नहीं रही थीं। मेरे ज़िद करने पर लिस्ट बना कर दी है। रोटी और वस्त्र के अलावा भी इंसान को जीवन में बहुत कुछ चाहिए होता है।”

अच्छा बाबा ठीक है, पर पहले मैं अपनी ज़रूरत का सारा सामान लूँगी । बाद में आप अपनी माँ की लिस्ट देखते रहना….पत्नी बोली ।

दोनों गाड़ी से बाज़ार के लिए निकल पड़े।

चार घंटो तक पूरी ख़रीदारी करने के बाद पत्नी बोली, “अब मैं बहुत थक गयी हूँ, मैं कार में एसी चला कर बैठती हूँ, आप अपनी माँ का सामान उनका लिस्ट देख कर खरीद लो।” माँ ने इस त्योहार पर क्या मँगाया है…जरा मुझें भी बताना ?

पति ने माँ का दिया हुआ कागज पत्नी को ही पकड़ा दी।

बाप रे! इतनी लंबी लिस्ट, . पता नहीं क्या क्या मँगाया  है ? और बनो श्रवण कुमार, कहते हुए पत्नी गुस्से से पति की ओर देखने लगी औऱ वापस उसे लिस्ट पकड़ा दी ।

पर ये क्या?

पति की आँखों में आँसू…….. और लिस्ट पकड़े हुए हाथ सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था….. उसका पूरा शरीर बेसुध था।

उसकी पत्नी बहुत घबरा गयी। क्या हुआ, ऐसा क्या माँग लिया है तुम्हारी माँ ने ? कहकर पति के हाथ से पर्ची झपट ली….

हैरान थी पत्नी भी …क्योंकि इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे…..

उस कागज़ में लिखा था….

” मेरे कलेजे के टुकड़े, मेरे आँखों के तारे,मेरे प्यारे बेटा.. मुझे इस त्योहार पर क्या ,किसी भी त्योहार पर कभी कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम ज़िद कर रहे हो तो……यदि तुम्हारे शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो फ़ुरसत के कुछ पल मेरे लिए लेते आना….क्योंकि ढलती हुई साँझ हूँ अब मैं , मुझे गहराते अँधियारे से डर लगने लगा है ,मुझें अकेलापन से डर लगने लगा है, मेरा ये बुढ़ापा मुझें काटता है, मुझें अब तन्हाई से डर लगने लगा है ,तो जब तक मैं जिंदा हूँ ,जबतक मेरी सांसे चल रही है, जबतक मेरी धड़कनों में आवाज़ है,कुछ पल बैठा कर मेरे पास, कुछ देर के लिए ही सही बाँट लिया कर मेरे बुढ़ापे का अकेलापन…. बिन दीप जलाए ही रौशन हो जाएगी मेरी जीवन की काली साँझ…. कितने साल हो गए बेटा तुझे स्पर्श नहीं किया। एक बार फिर से, आ मेरी गोद में अपना सिर रख और मैं ममता भरी हथेली से सहलाऊँ तेरे सिर को । एक बार फिर से इतराए मेरा हृदय मेरे अपनों को क़रीब, बहुत क़रीब पा कर…. और मुस्कुरा कर मिलूँ मौत के गले …. क्या पता अगले त्योहार तक रहूँ ना रहूँ……..!!

दोनों रोने लगे…..

…………..

दोस्तों….हमारे माता पिता को सिर्फ़ हमारा प्रेम चाहिए हमारा साथ चाहिए , हमारा आदर औऱ सम्मान चाहिए ।औऱ कुछ नहीं बस…….!!

#रिपोस्ट, लक्ष्मीकांत पांडेय 

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