*रजनीश भारती*
अक्सर युद्ध एवं तनाव की खबरें देष की नियंत्रण रेखा या सीमा रेखा की ओर से आती रहती हैं। देष के सैनिक छोटी-मोटी तनख्वाह के बदले देश की सरहदों पर वीरतापूर्ण कार्यवाहियां कर रहे हैं। हमारे देश के ढपोर-शंखी नेता उन सैनिकों की वीरता का सारा श्रेय हड़पने के लिए नियंत्रण रेखा/सरहद पर होने वाले युद्ध एवं तनावों पर बढ़-चढ़ कर बयान देते रहते हैं। वे सामंती लठैतों की तरह गुर्राते हैं कि – ‘मार डालेंगे।’ ‘काट डालेंगे।’ ‘सबक सिखा देंगे।’ ‘दुश्मन के घर में घुस कर मारेंगे।’ ‘मुँहतोड़ जवाब देंगे।’……
परन्तु हमारे देश के बाजार में एक भयानक युद्ध चल रहा है। इस युद्ध में एक ओर भारत के कारखानों का बना हुआ माल है तो दूसरी ओर चीन के कारखानों का बना हुआ माल मोर्चा सँभाले हुए है। दोनों के बीच जबर्दस्त टक्कर हो रही है। चीन का माल भारत के कारखानों के बने हुए माल को भारत के ही बाजार से खदेड़ कर बाहर करता जा रहा है। चीन का माल आज हमारे देश के 80 प्रतिशत बाजार पर छा गया है और धड़ल्ले से बिक रहा है मगर इसका ‘मुँहतोड़ जवाब’ देने के लिए शासक वर्ग का कोई नेता लफ्फाजी भी नहीं कर रहा है।
बाजार में किसका माल बिक रहा है यह गम्भीर मामला है। इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि जिस देश का माल बिकता है उसी देश के कारखाने चलते हैं। वही देश अपने नौजवानों को रोजगार देने में सक्षम होता है। रोजगार पाने के कारण उस देश के नौजवानों का जीवन स्तर ऊँचा उठता जाता है और उनके व्यक्तित्व का विकास होता जाता है। इसके विपरीत जिस देश के कारखानों का माल नहीं बिकता उसके कारखाने बन्द होते जाते हैं वह देश अपने बेरोजगारों को रोजगार नहीं दे पाता है जिससे भयानक बेरोजगारी बढ़ती चली जाती है। बेरोजगार नौजवान दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर होते हैं। तथा बेरोजगार आबादी किसानों के ऊपर आश्रित होती जाती है जिससे किसान भी तबाह होते जाते हैं। उनका जीवन स्तर बद से बद्तर होता जाता है। इन्हीं परिस्थितियों में अधिकांश पूँजीपति अपने कारखाने बन्द करके शापिंग मॉल खोलते हैं और दूसरे देशो से सस्ता माल खरीदकर बेचते हैं जिसके कारण छोटे-छोटे दुकानदार भी तबाह होते जाते हैं। जब ‘औद्योगिक पूँजी’ उद्योग बन्द करके व्यापार में घुसती है तब आपसी होड़ और बढ़ जाती है। तस्करी, कालाबाजारी और जमाखोरी बढ़ती है। इन कारणों से अधिकांश नौजवान अपराधी बन जाते हैं तथा बहुत से नौजवान आत्महत्या कर लेते हैं। इस प्रकार पूरे देश का भविष्य अन्धकारमय होता जाता है। अतः बाजार में हो रहा युद्ध सरहद पर होने वाले युद्ध से ज्यादा भयानक है परन्तु बाजार में जारी युद्ध का शासक वर्ग के लोग जिक्र नहीं करते।
जहाँ हमारे देश के कुछ शान्ति विरोधी बड़बोले नेता ‘चीन को मुँहतोड़ जवाब’ देने के लिए हर वक्त मुँह बाये खड़े रहते हैं, ऐसे माहौल में पड़ोसी देश चीन के साथ परस्पर शान्ति एवं मित्रता की बात करना, एक जोखिम भरा कदम है। ऐसा कोई जोखिम भरा कदम उठाये बगैर हम उन्हीं शान्ति विरोधियों की ही बात पर आते हैं और इस सवाल पर बहस करना चाहते हैं कि ‘चीन को मुँहतोड़ जवाब’ कैसे दिया जाय? चीन को मुँहतोड़ जवाब देने के लिये उसकी ताकत और उसकी रणनीति तथा अपनी ताकत एवं अपनी रणनीति का ज्ञान और उसका सटीक और वैज्ञानिक विश्लेषण करना पड़ेगा। शासक वर्ग आम जनता की रोजी-रोटी के सवालों पर बहस नहीं करवा रहा है। वह हिन्दू बनाम मुस्लिम, साधू बनाम मुल्ला, मंदिर बनाम मस्जिद, साम्प्रदायिक बनाम सेकुलर के सवालों पर पूरी बहस को उलझा दिया है। कौन व्यक्ति देशभक्त है कौन देशद्रोही है? इस पर तो बहस करवाता है मगर इस पर बहस नहीं करवाता कि समाजवादी या पूँजीवादी में से कौन सी नीति देश के खिलाफ है और कौन सी नीति देश के पक्ष में है? तथा कौन सी नीति देश की एकता-अखण्डता के साथ-साथ देश में समता, स्वतंत्रता, न्याय व बन्धुत्व का वातावरण तैयार करेगी। कौन सी नीति है जो विकास के साथ-साथ महँगाई, बेरोजगारी, भ्रश्टाचार, कर्ज, युद्ध आदि समस्याओं को दूर कर सकेगी ? हम पड़ोसी देशो के खिलाफ युद्ध के जरिये सबको सम्मानजनक रोजगार, आधुनिक वैज्ञानिक षिक्षा, सुरक्षा, आधुनिक चिकित्सा दे सकते हैं? या समाजवाद के जरिये? इन सवालों पर जद्दोजहद करना ही हमारा मुख्य उद्देष्य है।