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किसान आंदोलन में सरकार द्वारा की गई गलतियां का असर अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर

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सनत जैन

किसान आंदोलन में सरकार द्वारा की गई गलतियां अब अमेरिका और कनाडा तक पहुंच गई है। किसान आंदोलन को केंद्र सरकार ने प्रारंभ से ही गलत तरीके से हैंडल किया। जिसके कारण अब यह एक अंतरराष्ट्रीय समस्या के रूप में सामने आ रहा है। केंद्र सरकार ने किसान आंदोलन को उग्रवादी, सिख धार्मिक भावना से प्रेरित मान लिया था। प्रारंभ में किसान आंदोलन का पूरा नेतृत्व वामपंथी किसान संघो के हाथ में था। दूसरा सरकार ने सोचा था कि आंदोलनकारी जल्द ही थक हारकर वापस लौट जाएंगे। सरकार ने सिखों का विश्वास जीतने के लिए किसी सिख नेता को भी वार्ता में शामिल नहीं किया। अकाली दल से केंद्र सरकार का रिश्ता पहले ही टूट चुका था। पंजाब में कांग्रेस की सरकार से बात करने की कोई स्थिति नहीं थी। जिसके कारण किसान आंदोलन को लेकर सरकार और किसान संगठनो के बीच लगातार दूरियां बढ़ती चली गई।

किसान आंदोलन लंबा चलने के कारण,कनाडा के उग्रपंथी भी किसानों के समर्थन में सामने आए। किसान आंदोलन को लेकर सभी के मन में सहानुभूति की लहर दौड़ी। विदेश में बसे हुए सिखों ने भी अपने स्तर पर आंदोलनकारी किसानों की मदद की। संगीत जगत से जुड़े और पंजाबी पॉप स्टारों का एक बड़ा वर्ग किसान आंदोलन के समर्थन में आ गया। किसान आंदोलन के समय जो सख्ती सरकार ने ‎दिखाई थी इसका असर बड़े व्यापक रूप से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब देखने को मिल रहा है। भारत के गोदी मीडिया के टीवी चैनलों ने उस समय आग में घी डालने का काम किया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसानों के आंदोलन को चरमपंथी,खालिस्तान आंदोलनकरियों द्वारा चलाए जा रहा आंदोलन बताया। जिसके कारण इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। ‎किसान आंदोलन में आ‎र्थिक मदद देने पर केन्द्र सरकार ने उत्पीड़न की कार्यवाही की थी।
कनाडा से निज्जर को लेकर जो विवाद शुरू हुआ था। अब वह अमेरिका तक बढ़ चला है। केंद्र सरकार के ऊपर ब्रिटेन के बाद अब अमेरिका ने भी अपने नागरिकों की हत्या करने का आरोप भारत पर लगा दिया है। कनाडा मामले में तो गोदी मीडिया और सरकार ने बड़ा प्रोपोगंडा किया था। लेकिन जब अमेरिका ने इसी आधार पर जब भारत सरकार को नोटिस भेजकर कार्रवाई करने की मांग की। तब सरकार और गोदी मीडिया ने भी चुप्पी साध ली है। सिख अलगाववाद और उग्रवाद को लेकर चाहे जो भी चुनौती देश और विदेश में हो। अमेरिका और कनाडा का जो सरदर्द था, अब वह भारत के गले पड गया है। कनाडा और अमेरिका में स्वयंभू खालिस्तानी वहां जो भी गतिविधि करते हो, इसका असर कनाडा और अमेरिका पर होता था। लेकिन किसान आंदोलन को गलत तरीके से हैंडल करने के कारण अब इस मामले का असर भारत पर भी असर पड़ने लगा है। जो लड़ाई अभी तक कनाडा और अमेरिका तक सीमित थी। वह भारत में भी देखने को मिलने लगी है। जिसमें राजनैतिक लड़ाई और विचारों को लेकर भारत मैं अलगाववाद की आंतरिक गतिविधियां बढ़ने लगी हैं। कनाडा ब्रिटेन अमेरिका में होने वाली आंतरिक गतिविधियों का असर भारत पर पड़ रहा है। हाल ही में ‎ब्रिटेन के ब‎र्मिंघम में खा‎लिस्तानी अवतार ‎सिंह खांडा की मौत के मामले में उनके प‎रिजनों ने भारत के ‎खिलाफ ‎रिपोर्ट दर्ज कराई है। कुछ महीनों से भारत की पु‎लिस उसे परेशान कर रही थी। भारत सरकार को समय रहते इस पर प्रतिक्रिया देने के स्थान पर इस मामले में शांति बरतने से ही भला होगा। राजनीतिक कारणों से आरोप और प्रत्यारोप करने का असर किसान आंदोलन के दौरान किस तरीके से भारत में पड रहा है, इसको भी समझना होगा। केंद्र सरकार को इस संबंध में अब काफी सतर्कता से सोच समझ कर ही अपने कदम बढ़ाना चाहिए। अन्यथा भारत की छवि विदेश में खराब होगी। वही अलगाववादी खालिस्तान समर्थक एक बार फिर विदेश में और देश में फिर अपनी गतिविधियां बढ़ाने में सफल होंगे। पृथक खालिस्तान और पंजाब का मुद्दा तीन दशक के बाद एक बार फिर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैल रहा है। इसको लेकर उग्रवादी घटनाएं बढ़ रही हैं। केंद्र सरकार को काफी सजगता और सतर्कता के साथ ही इस मामले को जल्द से जल्द शांत करना होगा अन्यथा इसके भीषण परिणाम भी भोगने पड सकते हैं।

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