अग्नि आलोक
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*कहानी :  फांस*

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         ~ रीता चौधरी 

उन्नत की फ्लाइट कोहरे के कारण लेट हो गई थी. अब फ्लाइट रात में साढ़े तीन बजे आएगी, तब तक जागना ही पड़ेगा. यही सोचकर उसने बेमन से शेल्फ पर रखी मैग्ज़ीन उठाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि मैरून रंग के ओवरकोट में एक गोरा और स्निग्ध हाथ भी उसी मैग्ज़ीन पर आ लगा.

“ओह! आई एम सॉरी, आप ले लीजिए.” उन्नत संस्कारवश बोला.

“इट्स ओके, आप ही ले लें.” कहते हुए महिला ने उसकी ओर देखा, तो दोनों चौंक पड़े.

“अरे! तुम यहां कैसे?” दोनों के मुंह से एक साथ निकला. दोनों ये जानकर बहुत ख़ुश हुए कि उनकी फ्लाइट का समय आसपास का ही था. उन्हें जागने का ख़ुशनुमा बहाना मिल गया था. फिर तो एयरपोर्ट का वह अकेला, कोज़ी कोना उस रुपहले पर्दे की तरह हो गया, जिसमें कोहरा छंटते ही फ्लैशबैक में यादों की जमी पर्तें खुलती चली जाती हैं. विश्‍वविद्यालय के पांच साल दोनों सबसे अच्छे दोस्त रहे थे.

उन्नत का गिटार पर उसकी फ़रमाइशी धुनें बजाते-बजाते उंगलियां घायल कर लेना, वाद-विवाद में प्रथम आना, नोट्स के लिए ठिठुरती ठंड में शर्मा सर के घर जाना और उसके एक बार कहने पर वो नोट्स पहले उसे दे देना, शिखा को सब याद था.

शिखा का उसकी उंगलियां देखकर दवाई लगाते हुए रो पड़ना, उसके एक बार कहने पर गाजर का हलवा बनाकर लाना, प्रतियोगी परीक्षाओं के नोट्स शेयर करना, उन्नत को सब याद था.

“तुम्हें याद है हमारी पहली मुलाक़ात भी इसी तरह हुई थी. लाइब्रेरी में दोनों के हाथ इसी तरह एक ही क़िताब पर पड़े थे.” बातों-बातों में उन्नत ने कहा.

“हां, और तब भी तुमने इतनी ही शिष्टता से कहा था ‘आप ही ले लीजिए.’ मुझे तो पहली मुलाक़ात में ही तुम अच्छे लगे थे.” शिखा के स्वर में प्रशंसा थी.

“अच्छे लगे थे? तभी तुम मेरी हर बात काटती रहती थीं? मुझसे झगड़ने का हमेशा बहाना ढूंढ़ती रहती थीं?” उन्नत की आंखों में उलाहना थी.

“हे भगवान! तुम अभी तक उतने ही बुद्धू हो. मैं झगड़ने का नहीं, बल्कि तुम्हें सताने का बहाना ढूंढ़ती थी. तुम्हारी आदत थी, टॉपिक छेड़ दो, तो घंटों बोलते थे और न छेड़ो तो चुप! अपने आप से तो कभी कोई बात सूझती ही नहीं थी तुम्हें. फिर भी कुछ बातें तो कभी बोले ही नहीं, चाहे कितनी कोशिश कर ली मैंने.” बातूनी शिखा एक झटके में सहजता से बोल गई, पर उन्नत ने चौंककर बात पकड़ ली, “बुद्धू मतलब? क्या नहीं बोला मैं?” इस पर शिखा सकपका गई और बात टालने की कोशिश करने लगी, पर उन्नत बात पकड़कर बैठ गया. जिस लड़की को उसने दिल में बिठाकर रखा, हमेशा सम्मान दिया, वो उसे बुद्धू कह रही थी. जल्द ही शिखा को कुछ याद आ गया और उसने बात संभालने की कोशिश की, “तुमने कई बार कहा कि तुम अकेले में कुछ कहना चाहते हो, पर जब अकेले में मैंने याद दिलाया, तो कुछ कहा ही नहीं.”

मगर उन्नत के दिल पर जमी हिमालय सी बर्फ़ को ऊष्णता मिल चुकी थी. वो पिघल चली, “क्या कहता मैं? जब तुम्हें टायफॉइड हुआ था, तो सारी-सारी रात जागकर तुम्हारे सब्जेक्ट के नोट्स क्यों बनाता था? और उन्हें तुम तक पहुंचाने के लिए दिसंबर के महीने में सुबह-सुबह आधे घंटे पहले घर से क्यों निकलता था? जब तुमने वाद-विवाद के लिए सरकारी क्षेत्र को चुना और कहा कि तुम किसी सरकारी कर्मचारी से ही शादी करोगी, तो अचानक मैं निजी क्षेत्र में जाने के निर्णय को बदलकर सरकारी प्रतियोगिताओं की तैयारी क्यों करने लगा?” बहुत सी ऐसी बातें गिनाने के बाद वो बोला, “कुछ बातें कहने की नहीं, समझने की होती हैं, मिस बुद्धिमान! और हां, मैंने नहीं कहा था, तो तुम ही कह देतीं.”

इतनी बातें सुनकर शिखा भी प्रवाह में आ चुकी थी. वो भी चहककर बोली, “अरे वाह! मैंने भी तो बहुत तरीक़े से कहा, पर खुलकर कैसे कहती? आख़िर लड़की थी मैं.” उन्नत भी उसी प्रवाह में बोल गया, “वाह जी वाह! हर क्षेत्र में बराबरी का दावा और प्यार का इज़हार करना हो तो…”

वे दोनों इस समय एक-दूसरे की आंखों में देख रहे थे. मगर एकदम खुले शब्दों में दिल की बात ज़ुबां पर आते ही दिमाग़ ने ब्रेक लगाए, मगर जैसे तेज़ गति से चलती गाड़ी ब्रेक लगने के बाद भी थोड़ा खिसककर अक्सर दुर्घटना कर ही बैठती है, वैसे ही ज़ुबां तो चुप हो गई, पर दोनों की आंखें बहुत कुछ बोलती रहीं.

आज इतने सालों बाद ये पता चलने पर कि जिसे उन्होंने टूटकर चाहा, उनका वो पहला प्यार भी उन्हें ही प्यार करता था. वे हतप्रभ भी थे, ख़ुश भी और दुखी भी.

“काश! हम तब ये सब समझ पाते, कह पाते.” उन्नत कुछ देर बाद एक ठंडी सांस लेकर बोला.

“और काश! अब न समझते, अब न कहते. ये सोचकर जीना कितना आसान था कि मेरा प्यार एकतरफ़ा था.” ये कहते हुए शिखा की पलकें भीग गईं. उन्नत एक झटके से वर्तमान में लौटा, तो समझ नहीं पा रहा था कि बात को कैसे संभाले.

“मुझे माफ़ कर दो. मेरा मतलब वो नहीं था. मैं सचमुच में शर्मिंदा हूं.” उसने नज़रें झुका लीं.

उसके बाद बहुत देर तक उन दोनों के बीच का मौन मुखर रहा. फिर सन्नाटे के शोर को चुप कराने के लिए शिखा ने ही बात शुरू की, “तुम्हारी पत्नी कैसी है? कितने बच्चे हैं तुम्हारे?”

“वो बहुत अच्छी है…” बात एक बार फिर चल निकली, पर इस बार बात का विषय उम्र का दूसरा पड़ाव था. दोनों ने ही बताया कि वे अपने जीवन से ख़ुश और जीवनसाथी से संतुष्ट हैं.

अपनी फ्लाइट का एनाउंसमेंट सुनकर उन्नत भावुक हो गया, “फिर कब मुलाक़ात होगी?”

“पता नहीं, शायद कभी न हो. लेकिन एक बात कहना ज़रूरी है, जो शायद फोन पर न कह पाऊं. मैंने कहा था न कि अब हम दिल की बात न कहते, तो अच्छा ही होता, पर अब लगता है कि ये ठीक ही हुआ. ऐसी कौन-सी कमी थी मुझमें, जो मेरे प्यार ने मुझे स्वीकार नहीं किया. ये सोच ही शायद वो ख़लिश थी, जिसके कारण मैं अपने अतीत को याद नहीं करना चाहती थी, पर आज वो फांस भी निकल गई.” उन्नत भी ऐसा ही महसूस कर रहा था.

उसके बाद सामान समेटना, बाय बोलना, मोबाइल नंबर लेना, फ्लाइट में बैठना, सब कुछ ऐसे महसूस हुआ, जैसे वो ख़ुद न करके किसी चलचित्र पर देख रहा हो. शायद एक फांस निकल जाने का सुकून उसके मन को प्रफुल्लित कर रहा था.

घर पहुंचने पर पत्नी प्रीति ने हमेशा की तरह गर्मजोशी से उसका स्वागत किया. “तुम्हारी बहुत याद आई.” कहकर वो उन्नत से लिपट गई. घर प्रीति और बच्चों की सम्मिलित आवाज़ से चहकने लगा. “पापा, आप अपना गिटार ताखे पर से उतार दो, मैं बजाऊंगी. मैंने सीख लिया है.” बेटी नीना बोली, तो प्रीति ने उसे ये कहकर टोका कि पापा थके-मांदे आए हैं, पर उन्नत ने ख़ुशी से तुरंत स्टूल लेकर गिटार उतार दिया. यही नहीं, कुछ ही देर में उन्नत के हाथ पूरे घर में गिटार का मधुर स्वर गुंजायमान कर रहे थे. प्रीति तो ख़ुशी से विभोर हो गई.

जल्द ही प्रीति ने महसूस किया कि संजीदा और अंतर्मुखी उन्नत एकदम से बिंदास और चंचल हो गए हैं. उसे ये परिवर्तन बहुत अच्छा लगा. मगर वो सोचती रह गई कि चार दिन के ऑफिशियल टूर में ऐसा क्या हो गया कि..? वो उन्नत को अक्सर किसी से फोन पर बहुत देर तक बातें करते सुनती. एक दिन उन्हें फोन पर बहुत ही धीमे स्वर में बातें करते देखकर पूछा, तो उन्नत ने जवाब दिया कि एयरपोर्ट पर एक नई दोस्त बनी है. पर उन्नत का तो पुरुष और महिला दोस्तों से बात करने का लहज़ा एकदम समान है. फिर बिना मतलब तो वे किसी से एक शब्द भी नहीं बोलते. फिर इससे बात करते समय ही स्वर इतना धीमा और लहज़ा इतना गोपनीय क्यों हो जाता है?

उन्नत उसे और बच्चों को लेकर पार्क जाने लगे थे, सारी शाम गिटार बजाने लगे थे और सोशल नेटवर्किंग साइट खोलते समय या मोबाइल पर बातें करते समय अलग कमरे में जाने लगे थे. उनके फोन पर हर थोड़ी देर में चुटकुले व मैसेज आने लगे थे. उन्नत चुटकुले प्रीति को सुनाते और मैसेज का उत्तर देते समय उनके चेहरे पर चहक और शरारत होती.

प्रीति की छठी इंद्रिय जगने लगी थी, पर उसे उन्नत में आया बदलाव इतना अच्छा लग रहा था कि वो उन्हें टोकना नहीं चाहती थी. जहां तक वो उन्नत से शिखा के बारे में जान पाई थी, वो बिल्कुल उसी की तरह लगती है- चंचल, शोख, बिंदास, बहिर्मुखी, उन्नत के बिल्कुल विपरीत. इतने विपरीत स्वभाव के व्यक्ति से चंद घंटों में दोस्ती कैसे हो गई उनकी?

इसी ऊहापोह में डेढ़-दो महीने निकल गए. प्रीति की डायरी लिखने की आदत थी. वह मन के सभी भाव डायरी में लिखती थी. उन्नत एक समझदार, संवेदनशील और ज़िम्मेदार पति रहे हैं. दस वर्ष के वैवाहिक जीवन में उसे पति से कोई शिकायत नहीं रही, पर एक खालीपन हमेशा से सालता रहा. उसे लगता कि जैसे उसके पति ने ख़ुद को एक कवच में बंद कर रखा है. जैसे वो एक अच्छे बेटे, पिता, सरकारी अधिकारी होने का दायित्व निभाते हैं, वैसे ही एक अच्छा पति होने का भी दायित्व ही निभा रहे हैं.

पहले वो इस ख़्याल को झटक देती थी कि इंसान का स्वभाव अभाव ढूंढ़ने का होता है. जीवन में कोई अभाव नहीं, तो मन ने ये सोच लिया, पर अब उसका यह विश्‍वास दृढ़ हो गया कि उन्नत स्वभाव से अंतर्मुखी नहीं थे. कुछ हुआ था उनके जीवन में, मगर क्या? उसे इस बात की चुभन भी थी कि उन्नत को उनके कवच से निकालने का जो काम वो बरसों शिद्दत से कोशिश करने के बाद भी नहीं कर पाई, उस महिला ने चंद घंटों में कैसे कर दिया?

वो इन भावों को ज्यों का त्यों डायरी में उतार ही रही थी कि उसकी प्रिय सखी साधना का फोन आ गया. “फटाफट सोसायटी के गेट पर मिल.” उसने पूछा, “किसलिए?”

“हद हो गई. शॉपिंग मॉल नहीं चलना क्या? अरे! आज तेरह फरवरी है.”

“ओह नो, मैं तो भूल ही गई थी. तू बस पंद्रह मिनट का टाइम दे.” कहकर प्रीति फुर्ती से उठी, तैयार हुई, बच्चों को तैयार किया, मगर जल्दी में मोबाइल भूल गई और डायरी भी खुली छोड़कर चली गई.

एक चाभी उन्नत के पास रहती ही थी. बच्चों को पास ही में मायके में छोड़ा, भैया से कहा कि छह बजे के बाद उन्हें घर छोड़ दें और साधना के साथ मेट्रो में बैठ गई. दोनों को एक साथ याद आया कि वो मोबाइल भूल आई हैं.

उन्नत इस मामले में बहुत कंजूस थे. इसलिए प्रीति हर साल वैलेंटाइन डे के एक दिन पहले उन्नत को बिना बताए, उनके लिए शॉपिंग कर लाती थी. वैसे प्यार जताने का कोई मौक़ा वो छोड़ती नहीं थी, पर ये दिन उसे बहुत पसंद था. वो इस दिन उन्नत की मनपसंद डिशेज़ बनाकर कैंडल लाइट डिनर सजाती और एक-एक कर गिफ्ट्स खोलकर दिखाती. फिर उलाहना देती कि कभी मेरे लिए भी कोई गिफ्ट लाया करो.

“हां, हां, बिल्कुल! जब चाहो, जो चाहो ख़रीद लो. सारा वेतन तो तुम्हें दे देता हूं,  फिर गिफ्ट कहां से लाऊं?” उन्नत मासूमियत से कहते.

उन्नत लौटे, तो डायरी खुली थी, उस पर प्रीति का मोबाइल रखा था. वो डायरी पढ़ने लगा. जल्दी में इतना ही समझ पाया कि प्रीति शिखा के कारण आहत है. ‘…सब कहते हैं कि मैं बहुत कुशल वक्ता हूं, पर ऐसी प्रतिभा का, ऐसे जीवन का क्या फ़ायदा?’ उसमें अंत में लिखा था. उन्नत की आंखें अंतिम शब्दों पर अटक गईं- ‘ऐसे जीवन का क्या फ़ायदा?’

‘कहां चली गई प्रीति ये सब लिखकर? कैसे पता करे?’ वो घबरा गया.

प्रीति के साथ बिताए दस सालों के सुखी विवाहित जीवन के दृश्य उसकी आंखों में तैरने लगे. कितनी अच्छी है प्रीति, कितना अच्छा है उसका निश्छल और समर्पित प्यार, उसका एक-एक कथन आदेश होता है प्रीति के लिए, कैसे उसने प्रीति को इतनी बड़ी चोट पहुंचा दी?, कैसे उसे ये ग़लतफ़हमी हो गई? उ़फ्! कहां ढूंढ़े? तभी बच्चों को छोड़कर उनके मामा बाहर से ही निकल गए. उन्हें कुछ काम था.

बच्चों ने मां के बारे में पूछने पर कह दिया कि उन्हें कुछ पता नहीं. उन्नत ने घबराकर हर जगह फोन किया, पर किसी को प्रीति के बारे में कुछ पता नहीं था. सबसे घनिष्ठ सहेली साधना तो फोन उठा ही नहीं रही थी. अब उन्नत का दिल रो उठा.

प्रीति को लौटते समय देर हो गई, तो उसने खाना पैक करवा लिया. घर में घुसते ही उसने उन्नत का बुझा चेहरा देखा, तो बोली, “बच्चों को भूख लगी होगी, इसलिए मैं…”

“मुझे पता था कि तुम बच्चों को छोड़कर कहीं नहीं जा पाओगी.” उन्नत ने उसकी बात काटकर आगे बढ़कर उसके हाथ पकड़ लिए.

प्रीति खुली डायरी देखकर सारा माजरा समझ गई. बच्चों को सुलाने के बाद उसने दस सालों में पहली बार उन्नत से खुलकर झगड़ा किया और शिखा के बारे में सब कुछ बताने को कहा. दोनों ने चांदनी रात में बालकनी में आराम से बैठकर बात शुरू की. प्रीति जैसे-जैसे उन्नत के प्रफुल्लित विद्यार्थी जीवन और शिखा के बारे में सुनती गई, उसके चेहरे की मुस्कुराहट लौटती गई. बातचीत सूर्य की पहली किरण के साथ ख़त्म हुई, तो उन्नत ने भावुक होकर प्रीति को बांहों में ले लिया और उसके माथे को चूमते हुए कहा, “तुम मेरा आज हो और आज मैं तुम्हें बहुत-बहुत प्यार करता हूं. मैं सपने में भी तुम्हें आहत नहीं कर सकता.”

आज पति के आलिंगन की उष्णता ने प्रीति के संपूर्ण अस्तित्व को पिघला दिया. उसका बदन वैसे ही सिहर उठा, जैसे प्रथम स्पर्श में सिहरा था. उसकी आखें नम थीं और वो पति के मधुर स्पर्श में पूरी तरह खोई थी, तभी वो बोले, “काश! मेरी शिखा से दोबारा मुलाक़ात न होती और तुम्हें चोट न पहुंचती. अब मैं उससे बात नहीं किया करूंगा.”

“किसने कहा कि आपके शिखा से मिलने या बात करने से मुझे चोट पहुंची है?” प्रीति चुहलभरे स्वर में बोली. उसकी बात सुनकर उन्नत ने उसका चेहरा अपने सीने से हटाकर अपने हाथों में ले लिया और उसकी आंखों को पढ़ने की कोशिश करते हुए बोला, “क्या कहा तुमने? तुम आहत नहीं हो? फिर तुम्हारी वो डायरी की बातें और झगड़ा?”

“डायरी में तो मैंने केवल अपनी उत्सुकता लिखी थी, आप में आए अचानक परिवर्तन के प्रति. आपके मन में चोर था, इसलिए आपने उसे अलग ढंग से लिया. रही बात लड़ाई की, तो जब आप इतनी मुश्किल से अपने कवच से बाहर आए थे, तो मुझे भी कुछ तो करना था, आपके मन का बंद दरवाज़ा खोलने के लिए.”

प्रीति ने अपना सिर फिर से उन्नत के सीने पर रख दिया. “मैं तो बहुत ख़ुश हूं कि आपकी शिखा से दोबारा मुलाक़ात हुई. जिस प्यार के कारण, जिस मुलाक़ात के कारण दस साल में पहली बार आपने मुझे अपनी बांहों में लेकर ‘आई लव यू’ कहा, पहली बार इतने प्यार से मेरा चेहरा हाथों में लेकर मेरी आंखों को पढ़ने की कोशिश की, पहली बार खुले मन से चहककर नितांत व्यक्तिगत बातें मेरे साथ बांटी. पहली बार हमने सारी रात बात की, जिस प्यार के कारण आपने मुझे बताया कि आप मुझे इतना प्यार करते हो कि मुझे आहत नहीं करना चाहते, वो प्यार तो अमृत कलश है. 

शायद उसी मुलाक़ात के कारण आपको पता चला कि आप मुझे कितना प्यार करने लगे हैं और अपने जीवन से कितने संतुष्ट हैं. आपसी भरोसे और कर्त्तव्यनिष्ठा की बुनियाद पर टिका हमारा प्यार इतना कमज़ोर नहीं कि अतीत के ख़ुशगवार हवा के झोंके से डर जाए या बिखर जाए. जिस प्यार ने आपमें इतना प्यारा बदलाव ला दिया, मुझे ऐसे प्यार से कोई आपत्ति नहीं है.” प्रीति ने आख़िरी वाक्य सीधे उन्नत की आंखों में देखकर बड़ी ही शरारती मुस्कुराहट के साथ कही. “हट पागल, अब हमारे बीच कोई प्यार-मुहब्बत की बातें नहीं होतीं. लेकिन हां, तुमने कहा है कि तुम्हें कोई आपत्ति नहीं है. याद रखना.” अब उन्नत के स्वर में भी वही खनक भरी शरारत आ गई और उसने पूरी उष्णता के साथ प्रीति को बांहों में भर लिया. “चलिए, आज हम अपने जीवन का सबसे सुंदर वैलेंटाइन डे मनाएंगे. कहां ले चल रहे हैं आज?” प्रीति की आवाज़ में भी चहक थी.

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