बाबूजी इतने निडर थे कि उन्होंने अपने बेटे भूपेश बघेल की सरकार को भी आड़े हाथ लिया। वर्ष 2020 में आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके पिता नंद कुमार बघेल के बीच ठन गई थी। एक तरफ तत्कालीन मुख्यमंत्री पूरे राज्य में राम वनगमन परिपथ का निर्माण करने का प्रयास कर रहे थे, तब बाबूजी ने ही अपने बेटे की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिला के अंतर्गत तुमाखुर्द गांव में उन्होंने 18 मई, 2020 को राज्य सरकार द्वारा लगाए गए राम मंदिर के बोर्ड को गांववालों के साथ बैठक कर उनकी सहायता से हटाकर बौद्ध विहार का बोर्ड लगवा दिया। साथ ही बूढ़ादेव आर्युर्वेद चिकित्सा अनुसंधान केंद्र का शिलान्यास किया था। यह एक क्रांतिकारी कदम था।
गोल्डी एम. जार्ज
बीते 8 जनवरी, 2023 को छत्तीसगढ़ के बहुजन आंदोलन के ओबीसी नायक एवं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंद कुमार बघेल का निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे। वे राजधानी रायपुर में श्रीबालाजी अस्पताल में पिछले 3 महीने से इलाजरत थे।
मुझे अब भी स्मरण है कि 1998 में उनसे मेरी जान-पहचान बनी। मैं उन्हें बाबूजी कहकर पुकारता आया हूं। बहुत ही साधारण वेष-भूषा में, चेहरे पर मुस्कुराहट, जय भीम का संबोधन और दलित, आदिवासी, ओबीसी और मेहनतकश-मजदूरों की चिंता व चर्चा, बस यही थी बाबूजी की पहचान। वर्ष 1998 की पहली मुलाकात के बाद से लेकर कई वर्षों तक उनके साथ अनेक बार यात्राएं करने का अवसर मिला। उन यात्राओ के दौरान उन्हें और अधिक करीब से जानने का मौका भी मिला। वे छत्तीसगढ़ में समतामूलक सामाजिक आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के योद्धा थे।
नए राज्य के गठन के बाद वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ में बाबूजी की किताब ‘ब्राह्मण कुमार रावण को मत मारो’ को लेकर विवाद खड़ा हो गया था, जिसके बाद तत्कालीन अजीत जोगी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने किताब पर प्रतिबंध लगा दिया था। बाबूजी के साथ किये गए अनेक यात्राओं के दौरान वे कहते थे कि “छत्तीसगढ़ दलित-बहुजनों की भूमि है और 3 फ़ीसदी सवर्ण समाज 97 फीसदी लोगों को अनंत गुलामी मे रखना चाहते हैं।” एक प्रबुद्ध समतामूलक भारत के सपना देखने वाले बाबूजी हमेशा मानते थे कि “हम द्विज ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था से कोई खैरात नहीं मांग रहे है, बल्कि उन्हें हमारे प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।”
बाबूजी महामानव जोतीराव फुले, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, छत्रपति शाहूजी महाराज और थंदेई पेरियार को आधुनिक भारत में अपना आदर्श मानते थे। बुद्ध, कबीर, रैदास, घासीदास के उसूलों को प्रबुद्ध भारत के निर्माण का आधारस्तंभ मानते थे।
रावण और महिषासुर शहादत दिवस
2007-09 के दौरान मैंने एक तर्क रखा कि राक्षस कौन हैं, इसकी खोज की जाय। उस दौरान बाबूजी ने कहा कि जितने मूलनिवासी योद्धाओं ने आर्यों के विरुद्ध संग्राम कर अपनी जान गंवाईं, उन सबको राक्षस का दर्जा दिया गया। दरअसल वे सब कोई दानव नहीं, बल्कि इस देश के मूलनिवासी बहुजन योद्धा रहे। इसलिए उनका सम्मान करना चाहिए ना कि अपमान।
वर्ष 2010 से लेकर हर साल बाबूजी कई दलित, आदिवासी, ओबीसी संगठनों के साथ मिलकर महिषासुर-मर्दन और रावण-वध का विरोध करते रहे। ऐसे अवसरों को वे शहादत दिवस के रीति से शोक के रूप में मनाते थे। इसी तरह से नरकचौदस को वे रावण जयंती यानि रावण का जन्मोत्सव की तरह मनाने लगे।
बाबूजी का कहना था कि “मूलनिवासी दलित-आदिवासी-ओबीसी को अपने असली इतिहास को नहीं छिपाना चाहिए। हमारे इतिहास को हमें ब्राह्मणवाद के चश्मे से देखने की आवश्यकता नहीं है। रावण और महिषासुर हमारे इतिहास के योद्धा हैं। इनका वध प्रदर्शन बहुजन मूलनिवासी संस्कृति का अपमान है।”
वर्ष 2019 में बाबूजी ने दशहरे के दिन सार्वजनिक कार्यक्रम में रावण को महान पुरखा बताया। दलित-आदिवासी व अन्य सामाजिक संगठनों के तत्वावधान में किए गए आंदोलन मे छत्तीसगढ़ के लगभग 500 गांवों में 2019 में दुर्गापूजा और दशहरा का आयोजन नहीं हुआ। उसी साल बाबूजी ने रावण की पूजा के अलावा महिषासुर और मेघनाद का शहादत दिवस भी मनाया। उनके आह्वान पर छत्तीसगढ़ के आदिवासी-मूलनिवासी बहुल क्षेत्र के 124 गांवों में रावण-वध का लोगों ने बहिष्कार किया। वे कई जगहों पर रावण और महिषासुर के मंदिर बनाने की योजना भी बनाए थे। इसके लिए कुछ स्थानों को चिह्नित भी किया था।
कुत्सित ब्राह्मणवादी विचारधारा का भंडाफोड़
बाबूजी और ब्राह्मणों के बीच विवाद लंबे समय से रहा है। सन् 2000 में उन्होंने ‘ब्राह्मण कुमार रावण को मत मारो’ किताब लिखी, जो तुरंत ही विवादों के घेरे में आ गई थी। बाबूजी के मुताबिक यह किताब कुत्सित ब्राह्मणवादी विचारधारा का भंडाफोड़ था। इसमें मनुस्मृति के अलावा वाल्मीकि और तुलसीदास द्वारा रचित रामायण के संबंध में समीक्षात्मक टिप्पणियां हैं। साथ ही, इसमें दक्षिण के महान दार्शनिक पेरियार के विचारों का उल्लेख है। इस प्रकार यह किताब रामायण की विभिन्न तरीके से समीक्षा करती है और लोगों को बताती है कि राम नाम का चरित्र दलितों, आदिवासियों और मूलनिवासियों पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए गढ़ा गया है। इस किताब को तत्कालीन अजित जोगी सरकार ने प्रतिबंधित किया था। तब बाबूजी नंदकुमार बघेल ने हाई कोर्ट में सरकार के फैसले को चुनौती दी। करीब 17 साल बाद वर्ष 2017 में हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया और सरकार के फैसले को बरकरार रखा। नतीजतन उनकी किताब ‘ब्राह्मण कुमार रावण को मत मारो’ अभी तक प्रतिबंधित है।
इस किताब के साथ ही बाबूजी को ब्राह्मणविरोधी घोषित किया गया। द्विज लोगों ने उन्हे जातिवादी घोषित किया। दरअसल यह ब्राह्मणवादी मानसिकता का उत्पाद है कि जाति व्यवस्था को स्थायी रखने और समतामूलक समाज की स्थापना को रोकने के लिए एक और नया षड्यंत्र ही था। यह दलित-बहुजनों को राज्यसत्ता में हिस्सेदारी के खिलाफ एक बड़ी साजिश थी, जिसे बाबूजी बखूबी समझ रहे थे। इन तमाम आरोप और हमलों के बीच वे निडर थे और अपना आंदोलन को जारी रखे।
निडर बाप ने बेटे के योजना का विरोध किया
बाबूजी इतने निडर थे कि उन्होंने अपने बेटे भूपेश बघेल की सरकार को भी आड़े हाथ लिया। वर्ष 2020 में आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके पिता नंद कुमार बघेल के बीच ठन गई थी। एक तरफ तत्कालीन मुख्यमंत्री पूरे राज्य में राम वनगमन परिपथ का निर्माण करने का प्रयास कर रहे थे, तब बाबूजी ने ही अपने बेटे की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिला के अंतर्गत तुमाखुर्द गांव में उन्होंने 18 मई, 2020 को राज्य सरकार द्वारा लगाए गए राम मंदिर के बोर्ड को गांववालों के साथ बैठक कर उनकी सहायता से हटाकर बौद्ध विहार का बोर्ड लगवा दिया। साथ ही बूढ़ादेव आर्युर्वेद चिकित्सा अनुसंधान केंद्र का शिलान्यास किया था। यह एक क्रांतिकारी कदम था।
बाबूजी के मुताबिक गोंड आदिवासी, सिंधु घाटी की सभ्यता के अंग थे। लेकिन साढ़े तीन हजार साल पहले ब्राह्यणों के आगमन होते ही वे गुलाम बना दिए गए। इस तरह बाबूजी के द्वारा विगत ढाई दशकों से चला रहे सांस्कृतिक जागरूकता आंदोलन ने एक और कदम बढ़ाया। इसमे कोई दो मत नहीं कि बहुत सारे दलित-आदिवासी-मूलवासी कार्यकर्ता और समाज राज्य सरकार के निर्णय के खिलाफ थे। तुमाखुर्द के जिस जगह पर राम-लक्ष्मण की मंदिर बनाने की योजना राज्य सरकार ने बनाई थी, वहां गांव के लोगों ने अशोक स्तंभ स्थापित कर बौद्ध विहार का शिलालेख लगा दिया।
बेटे की सरकार के द्वारा गिरफ़्तारी
एक घटनाक्रम मे जब बाबूजी ने ब्राह्मणों के ऊपर उत्तर प्रदेश में कुछ टीका टिप्पणी की तब 4 सितंबर, 2021 को ‘सर्व ब्राह्मण समाज’ ने रायपुर के डीडी नगर पुलिस थाना में शिकायत दर्ज करवाई कि “नंद कुमार ने लोगों से ब्राह्मणों का ‘बहिष्कार’ और उन्हे बेदखल करने के लिए कहा था।” शिकायत पर 86 वर्षीय बाबूजी को भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत 7 सितंबर, 2021 को गिरफ्तार किया गया था। अपने विचारों के प्रति बाबूजी इतने प्रतिबद्ध थे कि उन्होंने जमानत के लिए मना कर दिया और अदालत ने उन्हें 15 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। बाद में उनके वकील ने जमानत याचिका दायर की और तत्काल सुनवाई की मांग की। तीन दिन जेल मे बिताने के बाद 10 सितंबर को उन्हें जमानत पर रिहा किया गया।
जीवन भर बहुजन आंदोलन को नेतृत्व कर आगे बढ़ाने के लिए संघर्षरत रहे बाबूजी हमेशा कहते थे कि जिस दिन इस देश का ओबीसी वर्ग ब्राह्मणवादी जातिवाद के गुलामी को महसूस करेगा तब बहुत बड़ी क्रांति आएगी। उस दिन इस देश का रुख बदला हुआ नजर आएगा। आज इस देश को उस ओबीसी को गुलामी से मुक्ति के लिए क्रांति की जरूरत है जिसके लिए वे हमेशा अग्रसर रहे। एक नया सपना देखने और दिखाने वाले बाबूजी को अलविदा!!