केंद्र की मोदी सरकार ने मंगलवार को एक बड़ा फैसला लेते हुए बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ देने का ऐलान किया है. पिछड़े समाज से आने वाले कर्पूरी ठाकुर ने अपना सारा जीवन शोषितों, पीड़ितों और वंचितों की लड़ाई लड़ने में खपा दिया. कर्पूरी ठाकुर सादगी और सरलता से जीवन जीने वाले बड़े समाजवादी नेता थे और दो बार बिहार के मुख्यमंत्री भी बने
कर्पूरी ठाकुर को लेकर बिहार में कई किस्से मशहूर हैं, उनमें से एक किस्सा यह है कि जब वह बिहार के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने बेटी की शादी में मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य को आमंत्रित नहीं किया था और अपने गांव में बेहद सादगी के साथ बेटी की शादी की थी. उन्होंने आदेश दे दिया था कि दरभंगा और आसपास के किसी हवाई अड्डे पर उस दिन राज्य सरकार का कोई भी विमान मुख्य सचिव की अनुमति के बिना नहीं उतरेगा.
ऐसा आदेश उन्होंने इसलिए दिया था क्योंकि उन्हें आशंका थी कि आखिरी समय में शादी का पता चलने के बाद शायद कोई मंत्री वहां पहुंच न जाए. उस वक्त मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर चाहते थे कि बेटी की शादी देवघर मंदिर में हो, किंतु कर्पूरी जी की पत्नी की जिद पर गांव में शादी हुई. इसके विपरीत अधिकतर सत्ताधारी नेता पटना में शादी करते हैं ताकि अधिक से अधिक उपहार मिल सके.
राष्ट्रपति भवन ने मंगलवार को यह घोषणा की कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जाएगा. ‘जननायक’ के रूप में मशहूर ठाकुर दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उनका 17 फरवरी, 1988 को निधन हो गया था.
बहनोई नौकरी के लिए आए तो मिले 50 रुपये
कर्पूरी ठाकुर से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि वह जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा। उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए, उसके बाद अपनी जेब से 50 रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, ‘जाइए, उस्तरा आदि खरीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।’
देवीलाल ने कहा पांच-दस हजार रुपये मांगें तो दे देना
उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में कर्पूरी ठाकुर की सादगी का बेहतरीन वर्णन किया है। बहुगुणा लिखते हैं, ‘कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए हरियाणा के मुख्यमंत्री देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- कर्पूरी जी कभी आपसे पांच-दस हजार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरीजी ने कुछ मांगा। हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं।’
विधायक ने जमीन लेने को कहा तो कर्पूरी ठाकुर ने यूं मना किया
70 के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी। खुद कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ विधायकों ने उनसे कहा कि आप भी अपने आवास के लिए जमीन ले लीजिए। उन्होंने साफ मना कर दिया। तब के एक विधायक ने उनसे यह भी कहा था कि जमीन ले लीजिए, नहीं तो आप नहीं रहिएगा तो आपका बाल-बच्चा कहां रहेगा? कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अपने गांव में रहेगा।
बेटे को पत्र लिखने की आदत
कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को पत्र लिखना नहीं भूले। बेटे रामनाथ बताते हैं, ‘पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं- तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।’
जब मुख्यमंत्री के पिता को पीटने आ गए लोग
कर्पूरी के मुख्यमंत्री रहते हुए ही उनके क्षेत्र के कुछ जमींदारों ने उनके पिता को सेवा के लिए बुलाया। जब वे बीमार होने के चलते नहीं पहुंचे तो जमींदार ने अपने लोगों से मारपीट कर लाने का आदेश दिया। इसकी सूचना जिला प्रशासन को हो गयी और तुरन्त जिला प्रशासन कर्पूरी के घर पहुंच गया और उधर मारने वाले भी थे। लठैतों को बंदी बना लिया गया, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने सभी लठैतों को जिला प्रशासन से बिना शर्त छोड़ने का आग्रह किया।
इस पर अधिकारियों ने कहा कि इन लोगों ने मुख्यमंत्री के पिता को प्रताड़ित करने का कार्य किया इन्हें हम किसी शर्त पर नही छोड़ सकते। कर्पूरी ठाकुर ने कहा, ‘पता नहीं कितने असहाय लाचार और शोषित लोग प्रतिदिन लाठियां खाकर दम तोड़ते हैं, काम करते हैं। कहां तक और किस-किसको बचाओगे। क्या सभी मुख्यमंत्री के मां-बाप हैं। इनको इसलिए दंडित किया जा रहा है कि इन्होंने मुख्यमंत्री के पिता को उत्पीड़ित किया है, सामान्य जनता को कौन बचाएगा। जाओ प्रदेश के कोने-कोने मे शोषण उत्पीड़न के खिलाफ अभियान चलाओ और एक भी परिवार सामंतों के जुल्मों सितम का शिकार न होने पाये।’ लठैतों को कर्पूरी ने छुड़वा दिया।
विधायक से थोड़ी देर के लिए की जीप मांगी
80 के दशक की बात है। बिहार विधानसभा की बैठक चल रही थी। कर्पूरी ठाकुर विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे। उन्होंने एक नोट भिजवाकर अपने ही दल के एक विधायक से थोड़ी देर के लिए उनकी जीप मांगी। उन्हें लंच के लिए आवास जाना था। विधायक ने उसी नोट पर लिख दिया, ‘मेरी जीप में तेल नहीं है। कर्पूरी दो बार मुख्यमंत्री रहे। कार क्यों नहीं खरीदते?’
कर्पूरी के घर की हालत देख रो पड़े थे बहुगुणा
एक बार उप मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे, क्योंकि उनकी जायज आय कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती थी। कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद अविभाजित उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गांव गए थे। बहुगुणा कर्पूरी ठाकुर की पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे। कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार विधायक रहे, पर अपने लिए उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया। न ही कोई जमीन खरीद सके।
यूगोस्लाविया में कोट भेंट की गई
कर्पूरी 1952 में विधायक बन गए थे। एक प्रतिनिधिमंडल में जाने के लिए ऑस्ट्रिया जाना था। उनके पास कोट ही नहीं था। एक दोस्त से मांगना पड़ा। वहां से यूगोस्लाविया भी गए तो मार्शल टीटो ने देखा कि उनका कोट फटा हुआ है और उन्हें एक कोट भेंट किया।