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तुलसी दल  कब और क्यों नहीं तोड़ना चाहिए

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आशुतोष वार्ष्णेय

भगवान को चढ़ाने के लिए तुलसीदल निषेध तिथि, वार को छोड़कर ही तोड़ना चाहिए। निर्णय सिन्धु धर्मशास्त्र के मतानुसार मंगलवार, शुक्रवार, रविवार को, द्वादशी, अमावस्या एवं पूर्णिमा तिथि को, वैधृति और व्यतीपात योग में, संक्रान्ति, जननाशौच और मरणाशौच में तुलसी दल तोड़ना मना है। विष्णुधर्मोत्तर के अनुसार रात्रि और दोनों संध्याओं में भी तुलसी दल नहीं तोड़ना चाहिए। लेकिन तुलसी दल के बिना भगवान की पूजा पूर्ण नहीं होती। अतएव निषिद्ध समय में तुलसी के पौधे से स्वयं गिरी हुई पत्तियों से भगवान का पूजन करना चाहिए, ऐसा वराह पुराण का मत है। तुलसी दल बासी नहीं होता अतः पहले दिन के पवित्र स्थान पर रखे हुए तुलसी दल से भी भगवान की पूजा की जा सकती है। शालग्राम की पूजा के लिए निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी दल को तोड़ा जा सकता है। तुलसीदल तोड़ने का मन्त्र – आह्निकसूत्रावली के अनुसार निम्नलिखित मंत्र पढ़कर श्रद्धाभाव से तुलसी को बिना हिलाये-डुलाये तुलसी के अग्रभाग को तोड़ें, इससे पूजा का फल लाख गुना बढ़ जाता है। जो इस मंत्र का पाठ न कर सके वह श्रद्धा-भाव से यह प्रार्थना भी कर सकता है।

तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिया। चिनोमि केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने।।
त्वदङ्गसम्भवैः पत्रैः पूजयामि यथा हरिम्। तथा कुरु पवित्राङ्गि! कलौ मलविनाशिनि ।।

‘‘गोविन्द के हृदय को प्रफुल्लित करने वाली माता तुलसी, मैं तुम्हें नारायण की पूजा के लिए तोड़ रहा हूं, तुम्हें नमस्कार है। आपके बिना हारश्रृंगार आदि फूलों और तरह-तरह के सुगन्धित पदार्थों की भेंटों से भी हरि की तृप्ति नहीं होती। हे कल्याणकारिणी! हे महान ऐश्वर्य वाली! तुम्हारे बिना तो सब कर्म निष्फल हैं। हे तुलसी माता! मेरे लिए कल्याणकारिणी बन जाओ। हे दिव्य गुणों वाली माँ! तोड़ने से आपके हृदय (जड़ों) पर जो आघात पहुंचे, आप उसके लिए मुझे क्षमा कर देना। जगन्माता तुलसी, आपको मेरा नमस्कार है।’’

इस प्रकार कहकर तीन बार ताली बजाकर भगवान श्री हरि के लिए तुलसी दल तोड़ना चाहिए। ध्यान रखें कि नहाए बिना ही जो मनुष्य तुलसीदल को तोड़कर पूजा करता है, वह अपराधी होता है और उसकी पूजा निष्फल हो जाती है, ऐसा विद्वान कहते हैं। घर में तुलसी का पौधा लगाने का चलन बहुत पुराना है, पर इसके फायदे के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। विशेषज्ञों का दावा है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, उन घरों के लोग अपेक्षाकृत कम बीमार पड़ते हैं, क्योंकि यह पौधा हवा में मौजूद बैक्टीरिया के प्रभाव को कम करता है, ठीक उसी प्रकार से जैसे-चौकीदार चोरों से घर की रक्षा करता है।

अपने आप में छोटा सा दिखने वाला तुलसी का पौधा साक्षात् लक्ष्मी का स्वरूप है। पद्म पुराण के अनुसार जिस स्थान पर तुलसी का पौधा रहता है वहां पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी आदि समस्त देवता निवास करते हैं। जो भक्त तुलसी की नित्य श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं, उनको अनायास ही सभी देवों की पूजा का फल एवं लाभ प्राप्त होता है। तुलसी की उत्पत्ति के विषय में धर्मशास्त्रों में यह दृष्टान्त प्राप्त होता है। कहा जाता है, महादैत्य जलंधर की पतिव्रता पत्नी वृंदा का सतीत्व ऐसा था कि वह जालंधर की अमरता का आधार बन गया था।

देवयोग से कुछ ऐसा हुआ जिससे वृंदा का पुण्यबल क्षीण हुआ, तत्पश्चात् जलंधर का वध सम्भव हो पाया। जब वृंदा इस कृत्य से अवगत हुई तो उसने क्रोध से भरकर भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। इस पर विष्णु ने श्राप स्वीकार करते हुए वृंदा को वृक्ष बन जाने और स्वयं सदा उसकी छाया में रहने की बात कही। यही वृंदा तुलसी है और भगवान विष्णु का यह पत्थर रूप शालग्राम माना जाता है।

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