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संतान के लिए दरदर भटकते-लुटते दंपतियों का दर्द

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    सोनी तिवारी, मेडिकल स्कॉलर

   काफी समय से ऑब्जर्व कर रही हूं कि निसंतान दंपति इधरउधर भटकते रहते हैं। सफलता हाथ नहीं लगती।  मुझे उनके लिए बहुत दुख होता है।

स्कूल लाइफ से ही लड़कियां सेक्स प्रैक्टिसनर बन जाती हैं. तमाम पिल्स,गोलियां, अन्य उपाय. कई बार अवॉर्शन तक. शादी भी देर में होती है. इन सबका साइड इफेक्ट असर करता है.

 आज इस विषय पर कुछ लिख रही हूँ। अपनी बात रखने से पहले कुछ उदाहरण देना चाहूंगी :

 एक 36-40 साल के निसंतान दंपति। शादी को 6 साल हो गए. बहू ग्रेजुएट और लड़का 10वी पास है। बेटे की मां  मेरी सहेली के यहां काम करती है।आए दिन छुट्टी करती है. बहू को कभी इस बाबा के तो कभी उस बाबा के चक्कर लगवाती है.

  एक दिन सहेली ने मुझे बताया कि उनके लाखों रुपए इलाज में खत्म हो गए. सारा जमापूंजी खत्म हो चुकी है.  खुशखबरी नसीब नही हुई.

मैंने सहेली  कहा कि उन्हें ivf सेंटर जाने बोलना. इतना पैसा खर्च कर रहे है तो सही जगह से इलाज कराओ। जिनसे इलाज कहा से करा रहे हो उनके पास कोई जानकारी नहीं. जिन डॉक्टर के पास गए उनके काम का भी कुछ पता नहीं, कोई प्रिस्क्रिब्शन तक नही। बोली पुड़िया बना कर दवाई दी जाती है.

   ऐसे लोगों को आप समझा भी नही सकते। यह अपना घर भी बेच देंगे किसी बाबा या ढोंगी के चक्कर में ,पर सही जगह से इलाज नहीं कराएंगे।

दूसरा उदाहरण एक ड्राइवर का है। शादी को 4 साल हो चुके थे। बहू को हर जगह से बुराभला सुनने को मिलता था। लड़कों में तो कोई कमी मानी नहीं जाती है. ड्राइवर भी दारू पी कर मारपीट करता था। बच्चा न होने का सारा दोष पत्नी पर मढ दिया जाता था। पत्नी इलाज के लिए मायके गई.  एक बाबा के यहाँ डेढ़ माह रेगुलर जाती रहकर उनका इलाज ली । उनके आशीर्वाद ? से उनके यहाँ एक संतान हुई है। खुशी की बात है पर फिर भी लोगों के ताने खत्म नहीं हो रहे।

   अब स्त्री को शक की नजरों से देखा जा रहा है। चलो माना की बाबा ने सेक्ससुख ले-देकर सब किया. ठीक है, काम तो बना. लेकिन अजीब हैं लोग भी. जब मियाबीबी खुश तो यह चार लोग हर जगह आपत्ति करने क्यों आ जाते हैं।

    वैसे यहां पत्नी स्मार्ट निकली। इनके पास भी IVF सेंटर जाने का ऑप्शन तो था।

तीसरा उदाहरण मेरे डायरेक्ट  संपर्क में आया था। इनकी शादी को 10 साल हो गए थे। 03 साल से कही ट्रीटमेंट ले रहे थे। दोनों पढ़े लिखे थे। मैंने इनसे इलाज के पेपर्स मांगे तो इनके पास भी कोई पेपर्स नही थे। इनको भी दवाइयां कागज की पुड़िया में या बिना रैपर के मिलती थी,जिसका नाम इन्हें भी  पता नही था। 

  इनके हिसाब से बहुत ही प्रसिद्ध डॉक्टर से वो लोग इलाज करा रहे थे और लाखों रुपए खर्च कर चुके थे। मेरे समझाने पर यह लोग ivf सेंटर गए। पैसे से पहले ही बरबाद हो चुके थे। फिर भी जैसे तैसे इलाज कराया।

   पूरी ईमानदारी से डॉक्टर की बात मानी और हर टेस्ट कराए, एक साल के अंदर ही खुशखबरी आई। अभी वो दोनों एक संतान के माता पिता हैं। 

मेरे से मिलने वालों में कुछ ऐसी भी शादीशुदा लड़कियां थी,जिनको सच बताऊं तो कोई प्रोब्लम ही नही थी। उनकी जिंदगी में इतना ज्यादा तनाव था कि वो उसके रहते गर्भवती नही हो पा रही थी और इलाज़ के लिए घर से निकल नही पा रही थी। 

   मैंने कुछ महीने एक टैबलेट खाने को बोली (कुछ नही एक विटामिन ही थी।) उन्हें घूमने जाने को बोला. मेडिटेशन करने को बोला। कुल मिलाकर तनाव कम करने के उपाय ही बताए।  कुछ ही महीनों में गर्भवती हो गई। जब उन्हें पता चला कि वो किसी दवाई से नही, प्राकृतिक रूप से गर्भवती हुई है, तो सोचिए उन्हें कितना अच्छा लगा होगा।

मेरा उन सब निसंतान दंपती से निवेदन है कि आप इलाज़ के लिए सही जगह की जानकारी ले और उचित डॉक्टर का चुनाव करें। नई टेकनिक Ivf महंगी तो है, लेकिन किस्तों में जगह जगह जो पैसे बर्बाद करते हैं और निराश भी होते हैं, उनको जोड़कर देखो तो महगी नहीं है.

   हमारे मिशन की हेल्प से आप एक रात में ही प्रेग्नेंट हो सकती हैं, वो भी निःशुल्क. कैसे? यह आपका मैटर नहीं होना चाहिए. इसलिए अगर आम से मतलब है, गुठली से नहीं तो रिजल्ट लें और घर जाएं.

    पूजा पाठ अपनी जगह है, पर काम का कर्म भी तो करना होता है। मतलब सही जगह से सही इलाज़। अपनी मेहनत का पैसा ऐसे ही कही भी बरबाद न करे। हर किसी निसंतान दपंती को एक जैसी समस्या नही होती. इसीलिए सबका इलाज़ भी एक जैसा नहीं होता। हमें अपनी तरफ से सही प्रयास तो करना ही चाहिए।

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