अग्नि आलोक
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हम सब और मुसीबतों के दौर से गुज़रता किसान

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सुसंस्कृति परिहार

यूं तो किसान कर्म ही प्रारंभ से मानसूनी जुआ कहा जाता रहा है।वह खेत में जब बीज डालता है तो जो उम्मीद लगाता है वह प्रारब्ध पर निर्भर करता है।शायद इसलिए पहले का किसान भाग्यवादी अथवा ईश्वर वादी बन गया। लेकिन आज़ादी के बाद पंजाब में जिस तरह भाखड़ा नंगल डैम से नहरें निकली उनने किसान को मज़बूत आधार दिया।उन्नत बीज,कृषि सम्बंधित यंत्र, रसायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रथम पंचवर्षीय योजना फलीभूत हुई। अन्न की पैदावार इतनी बढ़ी कि देश से भुखमरी की समस्या तो हल हुई ,साथ ही विदेशों को निर्यात करने वाला भारत देश बन गया। पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा का किसान अपनी मेहनत की बदौलत अच्छी स्थिति में पहुंच गया।

लेकिन अनाज में लगी मेहनत और तमाम संसाधनों में होने वाले खर्च की लागत मंहगाई के कारण आज इतनी बढ़ गई है कि किसान को उचित दाम नहीं मिल पाते जिससे वे नाखुश हैं,,होना ही चाहिए। आश्चर्यजनक यह भी है हर क्षेत्र में उत्पादक अपने माल की कीमत स्वयं निर्धारित करता है जबकि कृषि क्षेत्र में तमाम जिंस के दाम सरकार निर्धारित करती है।जिसे न्यूनतम मूल्य निर्धारण या एमएसपी कहा जाता है। पिछला किसान आंदोलन 9अगस्त 2020से 11दिसम्बर2021तक चला से लगभग 378 दिन चला जिसमें सरकार ने तीनों कृषि बिल निरस्त करने और एमएसपी पर कमेटी बनाकर घोषणा करने की बात कही थी।सरकार ने एमएसपी की घोषणा और अन्य मांगों पर वादाखिलाफी की जिसकी बदौलत वे आज भी उचित मूल्य हेतु संघर्षरत हैं। पिछले  आंदोलन में किसानों ने अपने 700से अधिक साथियों को खोया था अफ़सोसनाक यह कि ग़मज़दा किसानों ने अभी चल रहे आंदोलन में तीन साथियों को फिर खो दिया है सैकड़ों ज़ख़्मी हैं। कैसी सरकार है जो अपने लोगों से  लड़ रही है।उचित मूल्य निर्धारण में देरी करना और उनके साथ युद्ध जैसे हालात पैदा करना घोर अन्यान्य है जबकि इसकी दोषी भारत सरकार है।

सरकार को यह स्मरण रखना चाहिए यह उनके श्रम का ही परिणाम है जो सरकार 80 करोड़ लोगों को राशन बांटकर लोगों का वोट बड़े प्यार से लगातार हथिया रही है। किसान ही हैं जो देशवासियों का पेट भरते है और भारत के निर्यात को बढ़ाकर राष्ट्रीय आय में इज़ाफ़ा करते हैं।दस साल पहले किसान ने अपनी जो तकदीर बदली थी बच्चों को भरपूर शिक्षा प्रदान की।अपने घर में सुख सुविधाएं जुटाईं  आज उनकी तुलना मुफ्त खोर अडानी जैसे पूंजीपति उद्यमियों से की जा रही है यह सरासर सरकार की ग़लत सोच है।उनकी तरक्की से आहत लोग यह कहकर कि वे खालिस्तानी हैं और विदेश से धन ला रहे हैं।पूर्णतया ग़लत है।हां, उनके बच्चे ज़रुर कई देशों में नौकरियां करते हैं अपने मां-बाप को धन भेजते हैं। वे  विजय माल्या, नीरव मोदी, नीशाल मोदी, मेहुल चोकसी, ललित मोदी वगैरह की तरह देश के बैंक लूटकर भागते नहीं। किसान पुत्र बड़ी संख्या में सेना में भी पदस्थ रहकर शहीद भी होते रहते हैं।अब सेना में भी उनके दरवाजे अग्नि वीर जैसे अल्पकालिक  सेवा पदों में बदल गए हैं। जिससे किसान नाखुश हैं।

देश के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के जय जवान,जय किसान नारा देकर उन्हें बड़ा दर्ज़ा दिया था।आज ना जवानों की कद्र है और ना ही किसानों की। मोदी सरकार इस बार गारंटी की बात कर रही है कौन विश्वास करेगा। पिछले दो कार्यकाल जिस तरह जुमलों में चले गए आगे गारंटी का भी यही हश्र होगा। इसलिए किसान मोर्चे पर डटे हैं वे धूप-ताप,शीत -ओले और तूफान-वारिश से नहीं डरते, ये तो उनके साथी हैं ऐसे हिम्मती किसान के लिए कीलें ठोककर, सड़कों को गड्ढों में तब्दील कर, अश्रुगैस के गोले बरसाने के साथ गोली चालन से डराया जा रहा है। दुनिया देख रही कि अन्नदाता के साथ भारत सरकार कैसा दुर्व्यवहार कर रही है। इसलिए पिछले आंदोलन की तरह इस बार भी भारत-सरकार के ख़िलाफ़ विदेशों में प्रर्दशन शुरू हो गए हैं।

यहां एक बात याद रखनी चाहिए यह आंदोलन विशुद्ध रूप से किसानों का अपना आंदोलन जो अपनी मांगों के साथ संघर्षरत हैं।यह आंदोलन किसी राजनैतिक दल से प्रेरित भी नहीं है।यदि इस आंदोलन का राजनैतिक दल समर्थन करते हैं तो वह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है।भारत सरकार की वायदाखिलाफी का फायदा यदि किसी दल को मिलता है तो इसकी जिम्मेदारी उसकी है। किसानों की पीड़ा देशवासियों की पीड़ा है और उनका इस कठिन दौर में साथ देना हम सबका कर्तव्य है।

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