एक क्लिक पर निकाली जा सकने वाली जानकारी के लिए 30 जून तक का समय मांगना बताता है कि दाल में कुछ काला नहीं है, पूरी दाल ही काली है। कांग्रेस नेता ने पूछा है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड का सच जानना देशवासियों का हक़ है, तब एसबीआई क्यों चाहता है कि चुनाव से पहले यह जानकारी सार्वजनिक न हो पाए?
जेपी सिंह
क्या सुप्रीम कोर्ट से इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए एसबीआई चार महीने का समय क्या इसलिए मांग रही है ताकि आसन्न लोकसभा चुनाव के पहले ये भांडा न फूटे कि इलेक्टोरल बॉन्ड से 98 प्रतिशत रकम भाजपा को किस किस ने दी है और क्यों दी है? क्या इसमें उन लोगों द्वारा दी गयी रकम भी शामिल है, जो बैंकों का लाखों करोड़ लेकर देश छोड़कर भाग गये हैं? क्या इसमें डरा धमका कर वसूली गयी रकम भी शामिल है?
एसबीआई ने याचिका में भारतीय चुनाव आयोग को चुनावी बॉन्ड के संबंध में जानकारी देने के लिए 30 जून, 2024 तक समय बढ़ाने की मांग की है। एसबीआई को ही इलेक्टोरल बॉन्ड को जारी करने के लिए अधिकृत किया गया था। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया और इसकी पूरी जानकारी सार्वजनिक करने के लिए कहा है।
इलेक्टोरल बॉन्ड आने के बाद इस पर सबसे ज़्यादा सवाल पारदर्शिता और कालेधन को लेकर ही हुआ। एडीआर जैसी इलेक्शन-वाच संस्थाओं और इस विषय के जानकार लोगों ने इस प्रावधान की शुचिता और उपयोगिता पर गंभीर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे।
15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा दिए गए फै़सले के अनुसार, एसबीआई को 6 मार्च तक चुनाव आयोग को जानकारी देनी होगी। यानी अब इसके लिए सिर्फ़ दो दिन का समय बचा है। और अब उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चार महीने का समय बढ़ाने की गुहार लगा दी है।
एसबीआई ने कहा है कि 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच विभिन्न दलों को चंदा देने के लिए 22, 217 चुनावी बॉन्ड जारी किए गए थे। भुनाए गए बॉन्ड प्रत्येक चरण के अंत में अधिकृत शाखाओं द्वारा सीलबंद लिफाफे में मुंबई मुख्य शाखा में जमा किए गए थे। एसबीआई ने कहा कि चूंकि दो अलग-अलग सूचना साइलो मौजूद हैं, इसलिए उसे 44, 434 सूचना सेटों को डिकोड, संकलित और तुलना करना होगा।
एसबीआई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई तीन सप्ताह की समयसीमा पूरी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी। दरअसल लोकसभा चुनाव की अधिसूचना 15 से 20 मार्च के बीच जारी होने की संभावना है और मई 24 के तक चुनाव नतीजे आ जाएंगे। एसबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने के लिए 30 जून 24 तक के लिए समय मांगा है।
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को 2018 में लाया गया था। हालांकि, योजना शुरू होने के बाद से ही सवालों के घेरे में थी। अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया है तो चर्चा है कि सरकार अब इसका विकल्प तलाश रही है।
भारतीय स्टेट बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि कोर्ट ने अपने फैसले में अप्रैल 2019 से 15 फरवरी 2024 तक इलेक्टोरल बॉन्ड के दाता की जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया है। एसबीआई ने कहा कि इस समयकाल में 22,217 चुनावी बॉन्ड का उपयोग विभिन्न राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया गया था। बैंक ने आगे कहा कि प्राप्तकर्ता द्वारा भुनाए गए बॉन्ड अधिकृत ब्रांच द्वारा सीलबंद लिफाफे में मुंबई के मुख्य ब्रांच में जमा किए गए थे।
एसबीआई ने अपनी याचिका में आगे कहा कि दो अलग-अलग सूचना साइलो मौजूद होने के कारण कुल 44, 434 सूचना सेटों को डिकोड, संकलित और उनकी तुलना करनी होगी। इसलिए कोर्ट से सम्मानपूर्वक आग्रह है कि कोर्ट द्वारा 15 फरवरी 2024 के फैसले में तय की गई तीन सप्ताह की समयसीमा इस पूरी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे में आग्रह है कि एसबीआई को कोर्ट के फैसले का अनुपालन करने के लिए माननीय न्यायालय द्वारा समयसीमा का विस्तार दिया जाए।
इससे पहले 15 फरवरी के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने चुनावी बॉन्ड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि ये संविधान के तहत सूचना के अधिकार, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। साथ ही कोर्ट ने एसबीआई को निर्देश दिया था कि वो खरीदे गए सभी इलेक्टोरल बॉन्ड का डाटा चुनाव आयोग के साथ साझा करे। 12 अप्रैल, 2019 से अब तक बॉन्ड खरीदने की तारीख, खरीदने वाले का नाम, उसकी वैल्यू और किस राजनीतिक दल ने उस बॉन्ड को भुनाया है, जैसी सभी जानकारी चुनाव आयोग के साथ साझा करना होगा।
दरअसल चुनावी बॉन्ड योजना शुरू होने के बाद से ही सवालों के घेरे में थी। इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को 2018 में लाया गया था। हालांकि, 2019 में ही इसकी वैधता को को चुनौती देते हुए तीन याचिकाकर्ताओं ने योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। वहीं, केंद्र ने योजना का बचाव करते हुए कहा था कि इससे सिर्फ वैध धन ही राजनीतिक पार्टियों को मिल रहा है। सरकार ने गोपनीयता पर भी बल दिया था। हालांकि अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया है तो चर्चा है कि सरकार इसका विकल्प तलाश रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि दानदाताओं की 44, 434 स्वचालित डेटा प्रविष्टियों को केवल 24 घंटों में प्रकट और मिलान किया जा सकता है, फिर इस जानकारी को एकत्रित करने के लिए एसबीआई को 4 महीने और क्यों चाहिए?
एसबीआई द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड का विवरण देने के लिए सुप्रीम कोर्ट से और समय मांगने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने कहा कि मोदी सरकार चुनावी बॉन्ड के जरिए अपने संदिग्ध लेनदेन को छिपाने के लिए हमारे देश के सबसे बड़े बैंक को ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “देश के सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड की मोदी सरकार की ‘काला धन रूपांतरण’ योजना को “असंवैधानिक”, “आरटीआई का उल्लंघन” और “अवैध” करार देते हुए रद्द कर दिया था और एसबीआई को 6 मार्च तक डाटा विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहा था। लेकिन बीजेपी चाहती है कि इसे लोकसभा चुनाव के बाद किया जाए।”
उन्होंने आगे लिखा, इस लोकसभा का कार्यकाल 16 जून को खत्म होगा और एसबीआई 30 जून तक डेटा साझा करना चाहता है। बीजेपी इस फर्जी योजना की मुख्य लाभार्थी है। खड़गे ने इस मुद्दे पर सवाल पूछे हैं।
खड़ग के सवाल:क्या मोदी सरकार आसानी से बीजेपी के संदिग्ध सौदों को नहीं छिपा रही है, जहां राजमार्गों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों, बिजली संयंत्रों आदि के अनुबंध इन अपारदर्शी चुनावी बॉन्डों के बदले मोदी जी के करीबियों को सौंप दिए गए थे?
खड़गे ने कहा कि कांग्रेस पार्टी बिल्कुल स्पष्ट थी कि चुनावी बॉन्ड योजना अपारदर्शी, अलोकतांत्रिक और समान अवसर को नष्ट कर देने वाली थी। लेकिन मोदी सरकार, पीएमओ और एफएम ने बीजेपी का खजाना भरने के लिए हर संस्थान – आरबीआई, चुनाव आयोग, संसद और विपक्ष पर बुलडोजर चला दिया। अब हताश मोदी सरकार, तिनके का सहारा लेकर, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को विफल करने के लिए एसबीआई का उपयोग करने की कोशिश कर रही है!
राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने ‘चंदे के धंधे’ को छिपाने की पूरी ताक़त झोंक दी है। इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए एसबीआई द्वारा चार महीने का समय मांगे जाने को लेकर राहुल ने कहा है कि चुनाव से पहले मोदी के ‘असली चेहरे’ को छिपाने का यह ‘अंतिम प्रयास’ है।
राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि एक क्लिक पर निकाली जा सकने वाली जानकारी के लिए 30 जून तक का समय मांगना बताता है कि दाल में कुछ काला नहीं है, पूरी दाल ही काली है। कांग्रेस नेता ने पूछा है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड का सच जानना देशवासियों का हक़ है, तब एसबीआई क्यों चाहता है कि चुनाव से पहले यह जानकारी सार्वजनिक न हो पाए?
राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि देश की हर स्वतंत्र संस्था ‘मोडानी परिवार’ बन कर उनके भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने में लगी है।
याचिका में एसबीआई ने कहा है कि 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच विभिन्न दलों को चंदा देने के लिए 22,217 चुनावी बॉन्ड जारी किए गए थे। भुनाए गए बॉन्ड प्रत्येक चरण के अंत में अधिकृत शाखाओं द्वारा सीलबंद लिफाफे में मुंबई मुख्य शाखा में जमा किए गए थे। एसबीआई ने कहा कि चूंकि दो अलग-अलग सूचना साइलो मौजूद हैं, इसलिए उसे 44, 434 सूचना सेटों को डिकोड, संकलित और तुलना करना होगा।