मुनेश त्यागी
इस दुनिया में सदियों से किताबों का बहुत ऊंचा स्थान रहा है। इसे बेहतर से बेहतरीन बनाने में क्रांतिकारी किताबों का सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त है। अगर इस दुनिया में क्रांतिकारी किताबें नहीं होतीं तो इस दुनिया से कभी भी शोषण, जुल्म, अन्याय, भेदभाव और गैरबराबरी समाप्त करके देश और दुनिया के बड़े हिस्से में समता, समानता, बराबरी, न्याय, भाईचारे, जनवाद, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का समाज कभी भी कायम नहीं किया जा सकता था। इस दुनिया की सबसे पहली क्रांतिकारी किताब “कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो” यानी साम्यवादियों का घोषणापत्र को 21 फरवरी 1848 को कार्ल मार्क्स और फ्रेड्रिक एंगेल्स ने लिखा था। इसके बाद दुनिया में बहुत सारी क्रांतिकारी किताबें लिखी गई जिन्होंने इस दुनिया के शोषितों और गरीबों के कल्याण की नींव रखी थी।
इस किताब के आने से पूरी पूंजीवादी दुनिया में हलचल और खलबली मच गई। इस किताब ने सामंती और पूंजीवादी जुल्मों सितम, शोषण, अन्याय, भेदभाव और मजदूरों की मेहनत की लूट की पोल खोल दी और पूंजीवादी समाज के स्थान पर समाजवादी समाज आने की घोषणा कर दी और इसी किताब में पूंजीवादी व्यवस्था को सर्वहारा क्रांति के दम पर बदलने की राह प्रशस्त कर दी गई थी।
सर्वहारा का पहला अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट संगठन, ” कम्युनिस्ट लीग”, जिसकी स्थापना 1847 के जून में मार्क्स और ऐंगल्स के नेतृत्व में हुई थी। कम्युनिस्ट लीग ने पुराने वर्गों के परस्पर विरोध पर आधारित बुर्जुआ समाज के उन्मूलन और वर्गों तथा निजी स्वामित्व से मुक्त नए समाज की स्थापना को अपना लक्ष्य बनाया। उसी के निर्देश पर मार्क्स और एंगेल्स ने “कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र” लिखा। इस पहली महान क्रांतिकारी पुस्तक के कुछ प्रमुख अंश इस प्रकार हैं””
“आज तक के अस्तित्वमान समस्त समाज का इतिहास “आदिम्य साम्यवाद को छोड़कर”, वर्ग संघर्षों का इतिहास रहा है। संक्षेप में उत्पीड़क और उत्पीड़ित, एक दूसरे का अविरत और निरंतर विरोध, कभी छिपे तो कभी प्रकट, लडाई लड़ते आए हैं।”
” आधुनिक राज्य की कार्यपालिका, पूरे बुर्जुवा वर्ग यानी कि पूंजीपति वर्ग के सामान्य मामलों का संचालन करने वाली समिति के अलावा और कुछ भी नहीं है, यानी वर्तमान राज्य, बुर्जुवा वर्ग की कार्य समिति है।”
” जिन पेशों के संबंध में अब तक लोगों के मन में आदर और श्रद्धा की भावना थी, उन सभी का प्रभामंडल बुर्जुआ वर्ग ने छीन लिया है। डॉक्टर, वकील, पुरोहित, लेखक, कवि और वैज्ञानिक, सभी को उसने अपने वेतन भोगी उजरती मजदूर बना लिया है।”
“जिन हथियारों से बुर्जुआ वर्ग ने सामंतवाद को पराभूत किया था, अब मजदूर ही, स्वयं बुर्जुआ वर्ग के विरुद्ध ही तन जाते हैं। किंतु बुर्जुआ वर्ग ने केवल ऐसे हथियार ही नहीं गढे हैं जो उनकी मृत्यु को लाते हैं, बल्कि उसने उन लोगों को भी पैदा किया है, जिन्हें इन हथियारों को इस्तेमाल करना है, वे हैं,,,आज के मजदूर यानी सर्वहारा वर्ग।”
“बुर्जुआ वर्ग के खिलाफ सर्वहारा वर्ग का संघर्ष यद्यपि अंतर्य की दृष्टि से नहीं, तथापि रूप की दृष्टि से आरंभ से ही राष्ट्रीय संघर्ष होता है। निसंदेह हर देश के सर्वहारा को सबसे पहले, अपने ही बुर्जुआ वर्ग से निपटना चाहिए।”
“कम्युनिस्ट, एक ओर व्यवहार में हर देश की कम्युनिस्ट पार्टी के सबसे आगे बढ़े हुए और कृतसंकल्प जुज होते हैं। ऐसा जुज जो और सभी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। कम्युनिस्टों का तात्कालिक लक्ष्य ही है जो अन्य सभी सर्वहारा पार्टियों का है अर्थात सर्वहारा का एक वर्ग के रूप में गठन, बुर्जुआ प्रभुत्व का तख्ता पलटना, यानी सर्वहारा द्वारा राजनीतिक सत्ता का जीता जाना।”
“पूंजी एक सामूहिक उत्पाद है और केवल समाज के बहुत से सदस्यों के संयुक्त कार्यकलाप से ही बल्कि अंततोगत्वा समाज के सभी सदस्यों के संयुक्त कार्यकलाप से ही उसे गतिशील किया जा सकता है। इस प्रकार, पूंजी निजी नहीं, एक सामाजिक शक्ति है।”
“जिस अनुपात में एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के शोषण का अंत किया जाता है, उसी अनुपात में, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का, शोषण भी समाप्त कर दिया जाएगा। हर युग को शासित करने वाले विचार, सदा उसके शासक वर्ग के ही विचार रहे हैं।”
“मजदूर वर्ग की क्रांति में पहला कदम सर्वहारा वर्ग को उठाकर, शासक वर्ग की स्थिति में लाना, जनवाद की लड़ाई को जीतना है, जिसमें सभी बच्चों की सार्वजनिक विद्यालयों में मुफ्त शिक्षा का अनिवार्य प्रावधान किया जायेगा।”
“विकास क्रम में जब वर्ग भेद मिट जाएंगे और सारा उत्पादन पूरे राष्ट्र के एक विशाल संघ के हाथ में केंद्रित हो जाएगा, तब सार्वजनिक सत्ता अपना राजनीतिक स्वरूप खो देगी यानी राज्य नाम की संस्था विलुप्त हो जायेगी। राजनीतिक सत्ता, इस शब्द के असली अर्थ में केवल एक वर्ग की, दूसरे वर्ग का उत्पीड़न करने की संगठित शक्ति का नाम है।
“कम्युनिस्ट, मजदूर वर्ग के तात्कालिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए, उसके सामूहिक हितों को हासिल करने के लिए लड़ते हैं। संक्षेप में कम्युनिस्ट, सर्वत्र विद्यमान सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था के विरुद्ध, हर क्रांतिकारी आंदोलन का समर्थन करते हैं। वे सब जगह तमाम देशों की जनवादी पार्टियों के बीच एकता और समझौता कराने की कोशिश करते हैं। कम्युनिस्ट क्रांति के भय से शासक वर्ग कांपते हैं तो कांपा करें। सर्वहाराओं के पास अपनी बेडियों को खोने के सिवा और कुछ नहीं है। जीतने के लिए उनके सामने सारी दुनिया है।”
“दुनिया के मजदूरों एक हो!”
“कम्युनिज्म, सर्वहारा वर्ग की मुक्ति की शर्तों का सिद्धांत है। सर्वहारा समाज का वह वर्ग है जो अपनी जीविका के साधन पूर्णतया तथा केवल अपनी श्रम की बिक्री से हासिल करता है। किसी पूंजी से प्राप्त मुनाफे से नहीं। संक्षेप में सर्वहारा अथवा सर्वहाराओं का वर्ग 19वीं शताब्दी का श्रमजीवी वर्ग है।”
“बड़े पूंजीपतियों का वर्ग, जिनका सभी सभ्य देशों में अब सभी निर्वाह साधनों तथा कच्चे माल और उपकरणों पर, प्रायः पूर्ण स्वामित्व है, यही वर्ग बुर्जुआ वर्ग अथवा बुर्जुआ है।”
“उन लोगों का वर्ग, जिनके पास बिल्कुल कुछ भी नहीं है, जो इस कारण बुर्जुआ वर्ग को अपना श्रम बेचने के लिए बाध्य होते हैं ताकि बदले में आवश्यक निर्वाह साधन हासिल किए जा सकें। इस वर्ग को सर्वहारा वर्ग यानी सर्वहारा कहा जाता है।”
“इस प्रकार एक और सर्वहारा के बढ़ते हुए असंतोष और दूसरी और उसकी बढ़ती हुई शक्ति के जरिए औद्योगिक क्रांति, सर्वहारा द्वारा सामाजिक क्रांति के आने का पथ प्रशस्त करती है।”
“सभी बच्चों की, उनके इतने बड़े होते ही कि मां की देखभाल की जरूरत न रहे, राष्ट्रीय संस्थाओं में और राष्ट्रीय खर्च पर शिक्षा। शिक्षा उत्पादन से जुड़ी हो।”
मार्क्स और एंगेल्स की दुनिया की सबसे पहली क्रांतिकारी किताब की क्रांतिकारी अवधारणा को दुनिया के तमाम समाजवादी क्रांतिकारियों,,,,,लेनिन, स्टालिन, माओ, हो ची मिन्ह, फिदेल कास्त्रो, चे ग्वेरा, सुभाष, बिस्मिल, भगत सिंह और उनके साथी, नंबूद्रीपाद, पीसी जोशी, बीटी रणदिवे, ज्योति बसु, हरकिशन सिंह सुरजीत, वीर चंद्रसिंह गढ़वाली, मुजफ्फर अहमद, कुरुप्सकाया, रोजा लक्जमबर्ग, सेलिया सांचेज, प्रीतिलता, दुर्गा भाभी आदि ने आगे बढ़ाया है।
इस क्रांतिकारी किताब के बाद, दुनिया में बहुत सारे क्रांतिकारी लेखकों ने बहुत सारी किताबें लिखी हैं जैसे मार्क्स की “पूंजी”, चेर्नेशेवस्की की “क्या करें”, चार्ल्स डार्विन की “ओरीजिन ओफ स्टाइसिस” लेनिन की “एक कदम आगे दो कदम पीछे”, “क्या करें”, “राज्य और क्रांति”, “वामपंथी कम्युनिज्म एक बचकाना मर्ज” और “साम्राज्यवाद पूंजीवाद की अंतिम अवस्था”, मैक्सिम गोरकी की “मां”, रामवृक्ष बेनीपुरी की “लाल रूस”, माओ की “लाल किताब”, चमन लाल की “भगत सिंह और साथियों के दस्तावेज”, प्रेमचंद की “गोदान”, राहुल सांकृत्यायन की “साम्यवाद ही क्यों?”, “तुम्हारी क्षय” और “वोल्गा से गंगा” और भागो नही दुनिया को बदलो”, भगवती शरण उपाध्याय की “खून के छींटे इतिहास के पन्नों पर”, पंडित सुंदरलाल की “भारत में अंग्रेजी राज”, अयोध्या सिंह की “भारत का मुक्ति संघर्ष”, रजनी पामदत्त की “आज का भारत”, शिव वर्मा की “संस्कृतियां” , यशपाल की “सिंहावलोकन”, अंबेडकर की “हिंदू धर्म की पहेलियां”, “जातिवाद का विनाश”, सव्यसाची की “यह सब क्यों?”, और”कम्युनिस्टों ने क्या किया”, नंबूद्रीपाद की “गांधी और उनका वाद”, लू शाओची की “अच्छे कम्युनिस्ट कैसे बनें?” और “पार्टी जीवन के अंदरूनी संघर्ष”, जयप्रकाश नारायण की”संपूर्ण क्रांति”, लेफ्ट वर्ल्ड द्वारा “फिदेल कास्त्रो की जीवनी” और “फिदेल कास्त्रो के भाषण”, दुष्यंत कुमार की “साए में धूप”, सब्यसाची की “क्रांतिकारी गीत”, मोती लाल भार्गव की “गणेशशंकर विद्यार्थी”, गुणाकर मुले की “हमारा सौर मंडल”, मुनेश त्यागी की “क्रांतिकारी गीत संग्रह”, “विज्ञान, अंधविश्वास और भगवान”, “लेनिन” और क्रांतिकारी गीत और कविताएं” और “हमारे क्रांतिकारी नायक”, डॉ महेंद्र प्रताप सिंह की “कैसे बिखरा सोवियत संघ का आशियाना”, “मार्क्स, एंगेल्स लेनिन के अनमोल वचन” और “वामपंथ ही क्यों” । इसी श्रेणी में दुनिया के अनेक क्रांतिकारी लेखकों को शामिल किया जा सकता है।
मार्क्स और एंगेल्स के क्रांतिकारी और समाजवादी लेखन के अभियान को दुनिया और देश के बहुत सारे क्रांतिकारी लेखकों और कवियों ने आगे बढ़ाया है जैसे बर्तोल्त ब्रेख्त, चेखव, लूसुन, नाजिम हिकमत, पाब्लो नेरुदा, मायाकोवस्की, पेरियार, ज्योतिबा फुले, राहुल सांकृत्यायन, शिव वर्मा, प्रेमचंद, निराला, दिनकर, रामविलास शर्मा, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, कैफ़ी आज़मी, हबीब जालिब, साहिर लुधियानवी, शलभ श्रीराम सिंह, दुष्यंत कुमार, डॉ इरफान हबीब, रजनी पाम दत्त, गौरख पांडे, सफदर हाशमी, डॉक्टर मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, डॉक्टर कुंवर पाल सिंह, प्रदीप सक्सेना, अजय कुमार, प्रभात पटनायक, हरिशंकर परसाई आदि आदि। इसी के साथ-साथ दुनिया के महान वैज्ञानिकों,,,, कोपरनिकस, गैलीलियो,ज्यार्दन ब्रूनो और डार्विन के साथ-साथ अन्य वैज्ञानिकों की उपलब्धियों को जानना भी बहुत जरूरी है।
आज भी देश और दुनिया के लाखों समाजवादी, जनवादी, प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष लेखक, कवि और राजनीतिक कार्यकर्ता, मार्क्स और एंगेल्स द्वारा लिखी गई उस क्रांतिकारी किताब के अभियान को, अपने लेखों, कविताओं, वर्ग संघर्ष और राजनीतिक कार्यों के द्वारा आगे बढ़ा रहे हैं। सच में दुनिया भर में “कम्युनिस्टों की बाइबिल” कहीं जाने वाली किताब “कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो” का आज तक कोई सानी नहीं है और दुनिया का कोई भी ऐसा देश और कौना नही है जहां इस किताब के महान क्रांतिकारी समाजवादी संदेश और मिशन को आगे ना बढ़ाया जा रहा हो।
इसी के साथ-साथ आज की परिस्थितियों में यह भी सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है कि देश और दुनिया के तमाम क्रांतिकारी और समाजवादी कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ, लेखक और बुद्धिजीवी इन तमाम क्रांतिकारी किताबों, लेखों और कविताओं का प्रचार प्रसार करें, पुनर्पाठ करें, उन पर चर्चा करें और उनको फेसबुक, व्हाट्सएप और दूसरे तमाम माध्यमों से पूरी दुनिया के सामने लाएं, ताकि पूरी दुनिया के लोग एक बेहतरीन दुनिया के ख्वाब देख सकें और उन्हें पूरा कर सकें।
कितना अच्छा है कि ये क्रांतिकारी किताबें हमें देश दुनिया के ज्ञान विज्ञान और इतिहास और उसकी गलतियों, कर्मियों और अच्छाइयों की जानकारियां देती हैं और हमारे भविष्य के कार्य भार सुनिश्चित करती हैं। दुनिया के इन क्रांतिकारी विचारकों और किताबों से सीखकर, देश और काल की परिस्थितियों के अनुसार, हम एक बेहतर दुनिया के पुनर्निर्माण में लगे रहते हैं और उस संघर्ष को आगे बढ़ते रहते हैं । यही इन किताबों की पूरी मानवता को सबसे बड़ी देन और योगदान है। इन किताबों के इस कर्ज को कभी भी नहीं उतारा जा सकता है।
यहीं पर आज दुनिया के हालात को देखकर यह कहना सबसे जरूरी है कि इस दुनिया को पूंजीपतियों, सामंतों और धर्मान्धताओं के गठजोड़ ने बद से बद्तर कर दिया है। वे सब इस दुनिया को अपने प्रभुत्व, शोषण और मुनाफे का चारागाह ही बनाए रखना चाहते हैं। उन्होंने इसे युद्ध की विभीषिका में झोंक दिया है और उन्होंने समाजवादी ताकतों का काम करना बेहद मुश्किल कर दिया है। यहीं पर ये तमाम क्रांतिकारी किताबें हमारा सबसे बड़ा सहारा बन कर हमारे सामने मौजूद हैं। क्रांतिकारी किताबें आदमी की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं। ऐसे विपरीत समय में इन क्रांतिकारी किताबों को पढ़कर ही अन्याय और शोषण से भरी इस दुनिया के बड़े हिस्से को, एक बेहतर दुनिया में तब्दील किया जा सकता है।