अफ़लातून
राष्ट्र की हिटलरी कल्पना फासीवाद के नाम से कुख्यात है । हिटलर ने ‘नस्ल’ की कथित शुद्धता और यहूदी विद्वेष की विक्षिप्तता को फैलाकर जर्मनी को भीषण बर्बरता और रक्तपात में डुबो दिया और विश्व भर की लांछना का पात्र बना दिया । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का धर्म आधारित राष्ट्र भी उसी प्रकार का एक बर्बर उद्देश्य है । हिटलर से तुलना करके या हिटलर का उदाहरण देकर हम संघ-परिवार पर कोई काल्पनिक आरोप नहीं लगा रहे हैं । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गौरव-पुरुष गुरु गोलवलकर ने खुद १९३९ में लिखी अपनी पुस्तक ‘ वी ऑर आवर नेशनहुड डिफाइन्ड ‘ ( हम या हमारी राष्ट्रीयता परिभाषित ) ( अब उनके चेले अधिकृत रूप से कहने लगे हैं कि यह उनकी लिखी किताब नहीं है , उनका अनुवाद है ) में कहा था –
” नस्ल और इसकी संस्कृति की पवित्रता को बनाए रखने के लिए जर्मनी ने यहूदियों से अपने देश को रिक्त कर दुनिया को स्तम्भित कर दिया । नस्ल का गर्व यहाँ अपनी उच्चतम अभिव्यक्ति पाता है। जर्मनी ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि संस्कृतियों और नस्लों के फर्क जो बुनियाद तक जाते हैं , एक संपूर्ण इकाई में जज़्ब नहीं किए जा सकते । हम भारतीयों के लिए यह एक अच्छा सबक है जिससे लाभ उठाना चाहिए । “
यह सचमुच बड़े शर्म की बात है कि जिस विद्वेष और क्रूरता के लिए हिटलर का जर्मनी पूरी दुनिया में लांछित हुआ , गोलवलकर ने ने उसी की प्रशंसा की और भारत के लिए उसी हिटलरी रास्ते की सिफारिश की । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गुरु गोलवलकर के बताए हुए फासीवाद के रास्ते पर चल रहा है । वह जिस हिन्दू राष्ट्र की बात करता है , वह सिर्फ मुस्लिम विद्वेष तक सीमित नहीं है । स्त्रियों और शूद्र कही जाने वाली जातियों , जिन्हें सबसे अधिक धर्माचार्यों द्वारा अनुमोदित क्रूर प्रथाओं और परम्परागत ऊँच-नीच का शिकार होना पड़ा है , की दुर्दशा कम होने के बजाए , धर्म आधारित राष्ट्र में काफ़ी बढ़ जाएगी । सती प्रथा और बाल-विवाह पर रोक सम्बन्धी कानून हटाने और वर्ण व्यवस्था को स्थापित करने की मांग धर्म-संसद के प्रस्तावों में होने लगी थीं । स्त्रियों को सम्पत्ति में हक देने वाले हिन्दू कोड बिल का भी गोलवलकर ने विरोध किया था ।
इसलिए यदि आप कूप मंडूकता , धर्मान्धता , स्त्री उत्पीड़न और दलितों तथा पिछड़ों की सामाजिक दुर्दशा को देश की नियति नहीं बनाना चाहते तो हिन्दू राष्ट्र के नारे से सतर्क रहे। हम किस प्रकार पूजा पाठ करें , त्योहार किस ढंग से मनाएं , धार्मिक प्रतीकों का क्या अर्थ ग्रहण करें और दूसरे धर्म के अनुयायियों के साथ क्या व्यवहार करें , इन बातों को संघ परिवार और महंत मठाधीश नियंत्रित करनी की कोशिश करते हैं । इनके चलते हमारे धार्मिक आचरण की स्वाधीनता सुरक्षित नहीं है । ऐसे तत्वों को धार्मिक मान्यता और राजनैतिक समर्थन देना बन्द करें नहीं तो ये हमें एक अन्धी सुरंग में पहुंचा देंगे ।
दुनिया के कई धर्म आधारित राष्ट्रों में जनता का उत्पीड़न और रुदन हमसे छिपा नहीं है। धर्म आधारित राष्ट्र के रूप में हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के बारे में हम जानते हैं कि इस्लामियत के नाम पर कैसे कठमुल्लों , सामन्तों , फौजी अफसरों , भ्रष्ट नेताओं और असामाजिक तत्वों का वह चारागाह बन गया है । क्या हम भारत में भी उसी दुष्चक्र को स्थापित करना चाहता हैं ? धर्म आधारित राष्ट्र लोकतंत्र विरोधी अवधारणा है । किसी धर्म आधारित राष्ट्र में लोकतंत्र कभी पनप नहीं सकता । संविधान , न्यायपालिका , और प्रेस का हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर अपमान कट्टरपंथियों के लोकतंत्र विरोधी रुख की ही बानगी है । गोलवलकरपंथी राष्ट्रतोड़क ‘राष्ट्रवादियों’ के चंगुल में में देश चला गया तो यह उसके अस्तित्व के लिए घातक होगा । इसलिए समय रहते इनके हिटलरी मंसूबों को उजागर करें और इनके खिलाफ़ चौतरफ़ा ढंग से सक्रिय हों ।