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इस अहम फैसले से न्याय का नया सूरज उगेगा

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मुनेश त्यागी

     भारत के सर्वोच्च न्यायालय की बीवी नागरत्ना और उज्जल भुइयां की बेंच ने बलात्कार और हत्या के दोषी 11 अपराधियों को सजा से पूर्व छोड़े जाने के आदेश को रद्द कर दिया है और उन्हें जेल में समर्पण करने का आदेश दिया है। 2002 के गुजरात हत्याकांड में इन दुष्कर्मियों पर बलात्कार और हत्या के गंभीर आरोप लगाए गए थे और इन 11 अपराधियों को  आर्थिक दंड और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

       2002 के गुजरात हत्याकांड में हिंदुत्ववादियों की भीड़ बिल्किस बानो के घर में घुस गई थी जहां पर उसके साथ गैंगरेप किया गया। उसके परिवार के सात बेगुनाह सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया गया जिनमें उनकी 3 साल की एक बेटी भी शामिल थी और बिल किसने उसे समय पांच माह की गर्भवती थी। इस मामले में एफआईआर दर्ज हुई जिसमें पुलिस का रवैया मनमाना और आपत्तिजनक था। मजिस्ट्रेट ने सबूत के अभाव में मामले को बंद कर दिया था।

     इसके बाद बिलकिस बानो राष्ट्रीय मानव अधिकार की शरण में गई। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्यों मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा और सर्वोच्च न्यायालय की जज सुजाता मनोहर ने वाजिब हस्तक्षेप किया और बिलकिस बानो को कानूनी सहायता मोहिया कराई। इसके बाद मामले को न्याय के लिहाज से गुजरात से महाराष्ट्र भेज दिया गया जहां पर इन जघन्य अपराधियों को हत्या और सामूहिक बलात्कार की धाराओं में आर्थिक दंड के साथ आजीवन कारावास की सजा दे दी गई।

       इसके बाद एक गहरी साजिश के तहत भारत के संविधान और कानून के शासन को मिट्टी में मिलाते हुए केंद सरकार और गुजरात सरकार की मिलीभगत के तहत इन 11 दुष्कर्मियों को सजा पूरी होने से पहले ही जेल से रिहा कर दिया गया था जिसके बाद पूरे देश के कानूनी हलकों में हाहाकार मच गया था।

      इस मनमानी और समय पूर्व रिहाई के सरकारी कदमों के खिलाफ, सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गईं। इन याचिकाओं में अब फैसला सुनाते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार को शक्ति के दुरुपयोग पर फटकार लगाई और सरकार के मनमाने तरीके से लिए गए पक्षपाती निर्णय को रद्द कर दिया गया और दोषियों को जेल में आत्म समर्पण करने का फिर से आदेश दे दिया है। इस फैसले को सुनकर जैसे जनता में खुशी की लहर दौड़ गई।

     सर्वोच्च न्यायालय ने बहुत ही सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि गुजरात सरकार द्वारा कानून के शासन का उल्लंघन किया गया है। उसने उन अधिकारों का उपयोग किया, जो उसके पास थे ही नहीं। उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि गुजरात सरकार ने अपराधियों से मिली भगत करके, यह आदेश पारित किया था। उसने गलत तरीके से शक्ति हथिया ली थी। उसका यह कार्य एकदम गैर कानूनी एवं गलत था और यह विवेकाधिकार का एकदम दुरुपयोग था। उसका यह आदेश घिसा पिटा था जो उसने दिमाग का प्रयोग किए बिना ही पास किया था। अदालत ने कहा कि दोषी राधेश्याम ने कोर्ट को धोखा दिया था और अदालत को गुमराह किया था। अब सारे दोषियों को फिर से जेल में जाना होगा।

      सर्वोच्च न्यायालय ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नारी सम्मान की पात्र है। महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों में कोई छूट नहीं दी जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि कानून का शासन लागू करने के लिए दया या सहानुभूति की कोई भूमिका नहीं होती है। जब कानून का शासन कायम होगा, तभी हमारे संविधान के तहत स्वतंत्रता और अन्य सभी मूलभूत अधिकार कायम रह सकते हैं।

      यह फैसला आने के बाद इस मुकदमे की सुनवाई कर रहे ट्रायल कोर्ट के जज यूडी साल्वी ने बहुत प्रसन्नता का इजहार किया है‌। उन्होंने कहा है कि यह फैसला मार्गदर्शन करने वाला और बहुत ही उत्साहवर्धक है। यह देश की तमाम अदालतों को दूसरे मुकदमों में भी नई राह दिखाएगा। जस्टिस यूडी साल्वी ने 2008 में इन 11 अपराधियों को गैंगरेप और हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा दी थी जिन्हें बाद में गुजरात सरकार ने गैर-कानूनी तरीके से सजा पूरी होने से पहले ही 15 अगस्त 2022 को जेल से रिहा कर दिया था।

     सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में लिखा है कि कानून के शासन का मतलब है कि चाहे कोई कितना भी बड़ा हो, वह कानून के शासन से बड़ा नहीं हो सकता। परिणाम की परवाह किए बिना कानून का शासन कायम किया जाना चाहिए। यह इस अदालत का कर्तव्य है कि मनवाने आदेशों को सही किया जाए ताकि कानून के शासन में जनता का विश्वास कायम किया जा सके। 

     अदालत ने कहा है कि कानून के शासन के अभाव में या इसे नजर अंदाज करने या आंखें मूंद लेने की स्थिति में, हमारे संविधान के तहत किसी व्यक्ति की आजादी के कोई मायने नहीं रह जाएंगे। वर्तमान में पिछले कुछ दिनों से सर्वोच्च न्यायालय की काफी आलोचना हो रही थी। सर्वोच्च न्यायालय के फिलहाल के कुछ फैसलों से लोग सदमे में थे, जैसे उन्हें विश्वास ही नही हो रहा था। इस फैसले के बाद उनकी जान में जान आई है।

      बिलकिस बानो के इस ऐतिहासिक मामले का असर बहुत दूरगामी होने जा रहा है। इस फैसले से जनता का कानून के शासन में फिर से भरोसा कायम होगा, अदालतों में वादकारियों की टूटती उम्मीदों पर रोक लगेगी और अदालतों में विश्वास बढ़ेगा। इस फैसले से सरकार की मनमानी और कानून तोड़ने की प्रवृत्तियों पर बहुत हद तक रोक लगेगी।

     इस फैसले से अपराधियों द्वारा कानून को तोड़े जाने और कानून को अपना काम करने से रोकने की प्रवृत्तियों पर काफी हद तक रोक लगेगी। इससे कानून के शासन को बल मिलेगा और कानून का शासन सुविचारित रूप से अपना काम करेगा। इससे न्याय का परचम लहराएगा और अन्याय की प्रवृत्तियों पर रोक लगेगी। देश के वर्तमान माहौल में यह सर्वोच्च न्यायालय का एक उत्साहवर्धक फैसला है।

     सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला बीजेपी, आरएसएस और हिंदुत्ववादी सरकार के कार्यकलापों और प्रतिष्ठा पर करारी चोट है। इससे कानून के शासन को कमजोर करने वाली इन तमाम ताकतों की जबरदस्त किरकिरी हो रही है। अब ये लोग बचते फिर रहे हैं, आंखों से आंखें नहीं मिला रहे पा रहे हैं। ये लोग हक्के-बक्के रह गए हैं। उनके पास कुछ कहने के लिए शब्दों का टोटा पड़ गया है।

     सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से बीजेपी की औरत विरोधी चाल, चरित्र और चेहरा पूरे देश और दुनिया के सामने उजागर हो गये हैं। अब वह “बेटी बचाओ की जगह अपराधी बचाओ” की मुहिम में लग गई है। अब वह अपराधियों को दंड दिलाने की जगह अपराधियों की रक्षक बन गई है। अब उसकी गल्तियों की पूरी पोल जनता के सामने खुल गई है।

     सर्वोच्च न्यायालय के इस महत्वपूर्ण फैसले से कानून के शासन और इंसाफ की हिफाजत करने में मदद मिलेगी। अब आशा की नयी नयी उम्मीदें अंगड़ाइयां ले रही हैं कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय के इस अहम फैसले से, अन्याय के साम्राज्य का अंधेरा खत्म होगा और न्याय की नई उम्मीद की किरण जगेगी और न्याय का नया सूरज उगेगा।

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