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अधर्म का नाश हो (खंड-1) – (अध्याय-17)

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संजय कनोजिया की कलम

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        गांधी जी के अनुयायी..डॉ० लोहिया का जन्म, अकबरपुर, जिला फ़ैजाबाद (उ०प्र०) वर्ष 1910, मध्यवर्गीय मारवाड़ीt परिवार में जन्म हुआ था, पिता हीरालाल स्वतंत्रता सेनानी, माता चंद्री देवी का अल्प आयु में देहांत हो चुका था..आरंभिक शिक्षा अकबरपुर की पाठशाला और मारवाड़ी स्कूल बम्बई में, इंटरमीडिएट शिक्षा बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बाद में कोलकाता विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में अंग्रेजी ऑनर्स की परीक्षा पास, बर्लिन (जर्मनी) के हम्बोल्ट विश्वविद्यालय से अर्थशाश्त्र में पीएचडी..जिनेवा के लीग ऑफ़ नेशन्स के अधिवेशन में ब्रिटिश विरोधी निषेध प्रदर्शन..16 वर्ष की आयु में गुवाहाटी के कांग्रेस अधिवेशन में शामिल 1928-29 के साइमन कमीशन बहिष्कार आंदोलन में विद्यार्थी जुलूस का नेतृत्व..1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य के रूप में स्वाधीनता आंदोलन में प्रवेश..1937-39 में अखिल भारतीय कांग्रेस के विदेश विभाग के सचिव..7 जून, 1940 को युद्ध विरोधी प्रचार के कारण गिरफ्तारी, दो साल की सजा और डेढ़ साल बाद रिहाई..1942 के “भारत छोड़ो” आंदोलन में भूमिगत रहकर “कांग्रेस रेडियो” का संचालन..गिरफ्तारी के बाद लाहौर जेल में भीषण यंत्रणा..10 मई, 1944 को बम्बई में गिरफ्तारी, 24 महीनो के बाद जून 1946 में रिहाई..गोवा मुक्ति आंदोलन तथा नेपाली स्वतंत्रता के सूत्रधार..देश के बंटवारे से आहत, गांधी जी के निर्देश पर दंगाग्रस्त क्षेत्रों में कार्य..आजादी के बाद सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के मंचों से विपक्ष के प्रखर नेता के रूप में सक्रिय..आचार्य नरेन्द्रदेव, जयप्रकाश नारायण, यूसुफ मेहरअली, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, के निकट सहयोगी..सादा जीवन, सृजनशील मस्तिक्ष और अथक परिश्रम से लोकतंत्र और समाजवाद की मजबूत नींव तैयार करने से युवा पीढ़ी के उत्तरोत्तर आकर्षण का केंद्र..11 बार विदेशियों तथा 13 बार आजादी के बाद कैद किये गए..अंग्रेजी-जर्मन-फ्रेंच भाषाओँ पर प्रशंसनीय पकड़..हिंदी भाषा पर महारत, बंगाली, गुजराती, मराठी तथा अन्य भरतीय भाषाओँ का ज्ञान..सदियों से दबे कुचले और नींद में पड़े समाज के विशाल तबको में राजनीतिक चेतना को जगाने और सामाजिक-राजनैतिक क्रान्ति का सूत्रपात करने में समर्थ..जाति प्रथा का विनाश, नर-नारी समानता, हर तरह की गैरबराबरी और गुलामी की समाप्ति, सत्याग्रह, व सिविल नाफरमानी के अहिंसक साधनो और समूची मानव जाति की एकता के प्रति दृढ विशवास..

”कांग्रेस सोशिलिस्ट”, “जन”, “मैनकाइंड” आदि पत्रिकाओं का सम्पादन..आजादी के बाद नई पीढ़ी के कवि, लेखक, चित्रकार, मूर्तिशिल्प, पत्रकार, नाटककार, एवं संगीत-नृत्य के सृजनशील कलाकारों के प्रेरणाबिंदु बने..भारतीय संस्कृति व विरासत पर लिखे निबंध व भाषण अतिश्रेष्ठ साहित्य की रचना माने जाते हैं.. विचारोत्तेजक मौलिक रचनाओं और समाजवादी सम्मेलनों तथा प्रशिक्षण शिविरों में दिए गए भाषणों के रूप में विपुल साहित्य..1963 से 1967 तक लोकसभा के सदस्य..12 अक्टूबर, 1967 को निधन..वो अपने को बंजारा तथा सफ़रमैना (सैपर्स एन्ड माइनर्स-जो आगे बढ़ती सेनाओं के लिए पहाड़ खोदकर सड़कें आदि बनाते हैं) मानते थे..उनका कोई घर परिवार नहीं था, जमीन-जायदाद नहीं थी, बैंक में खाता नहीं था..दिल्ली में लावारिसों, भिखारियों, निर्धनों के लिए बनाये गए तत्कालीन विद्युत शवग्रह में बिना किसी कर्मकांड के अंतिम विदाई..!  

         में इस बात को स्पष्ट अवश्य करना चाहूंगा कि अंबेडकरवादी चिंतकों-लेखकों-अध्ययनकर्ताओं एवं शोध कर्ताओं ने अपने-अपने समय पर केवल और केवल बाबा साहब, बुद्धा, बौद्ध-धर्म, तथा जाति, हिंदुत्व, शूद्र शोषण और संविधान रचयिता तक सीमित रहकर..अपने-अपने दस्तावेज़ तैयार किये, उन्होंने बाबा साहब के सभी रूपों का उल्लेख बहुत ही कम किया है..बाबा साहब के वैश्विक व्यवस्था की जानकारी या अर्थ शास्त्र तथा चीन के प्रति दृश्टिकोण की जानकारी, विदेशी लेखकों या गैर-दलित विद्वानों द्वारा ही प्राप्त होती दिखती है..भले ही अम्बेडकरवादी लेखकों ने ख़ूबसूरती से तथ्य व साक्ष्यों सहित अपनी सोच को शब्दों में पिरोया है लेकिन समाजवादी और सामाजिक-न्याय, समता एवं धर्मनिरपेक्ष सोच रखने वाले विचारकों ने अपने-अपने ढंग से तथ्यों और साक्ष्यों जैसे संसदीय भाषण-सार्वजनिक भाषणों, लेखों-पत्रों आदि द्वारा गहन अध्ययन कर..“अंबेडकर-गांधी”, “अंबेडकर-लोहिया”, “अंबेडकर-नेहरू”, “अंबेडकर-माउन्ट बैटन”, “अम्बेड़कर-मॉर्क्स” आदि इत्यादि पर बहुत कुछ लिखा है..शायद कुछ अम्बेडकरवादी लोग होंगे जो इस ओर अपनी लेखनी द्वारा कदम बढ़ाया हो लेकिन वह चंद ही होंगे और जिनका जिक्र भी भारतीय समाज में सार्वजनिक कम ही किया जाता है..खासकर अम्बेडकरवादी भी ना के बराबर करते पाए जाते हैं..मेरे इस लेख “अधर्म का नाश हो” खंड-1 के, लगभग सभी अधयाय पढ़ने वाले, बहुत से विद्वान साथियों ने अधिकतर सरहानीय व सकरात्मक टिपण्णी फ़ोन द्वारा या What’s-app पर लिख कर, मेरी लेखनी को सहारा देने का काम किया है..जिनमे चार विद्वानों की टिप्पणियों को प्रेषित कर रहा हूँ..

.(1) वरिष्ठ समाजवादी नेता, चिंतक, लेखक और दिल्ली विश्वविद्यालय के “हिन्दू कॉलेज” के पूर्व शिक्षक,  प्रोफ० राजकुमार जैन जी, ने कहा..”आज के इस दौर में संजय की कलम समसामयिक मुद्दों के साथ-साथ, इंसानी जीवन कि यकिदे विश्वास, कि मेरी मुसीबत में यह अदृश्य शक्ति, मेरा सहारा, मेरी मदद करेंगी। यानी की धर्म। जैसे जटिल विषय पर गहराई से पड़ताल करके विचारोत्तेजक बहस छेड़ रही है।मेरी दुआएं, शुभकामनाएं वंचित,बेसहारा, बेजुबानों के पैरोकार संजय कनोजिया के साथ रहेगी। राजकुमार जैन” ..

(2) वरिष्ठ समाजवादी नेता, चिंतक, लेखक एवं जवाहरलाल नेहरू विवशविद्यालय के समाजशास्त्र के पूर्व शिक्षक प्रोफ० आनंद कुमार जी, ने कहा..”श्री संजय कनौजिया की बात से इस हद तक सहमत हूँ कि बाबा साहब अंबेडकर के अनुयायियों को यह जानना चाहिए कि डाक्टर लोहिया जाति तोड़ो आंदोलन के एक नायक थे और वह समाजवादियों से डाक्टर अंबेडकर को परिचित कराने के लिए उत्सुक थे. क्योंकि वह आम्बेडकर धारा और समाजवादी धारा ( कुजात गांधिवादियों ) को सहमना मानते थे. सहयोगी बनाना चाहते थे. लेकिन लोहिया इस प्रश्न को वह हिंदू धर्म की उदार धारा की पहल से सुलझाना चाहते थे. जबकि बाबा साहब ने जाति उन्मूलन के लिए हिंदू धर्म से बाहर जाने में समाधान बताया और ख़ुद भी 20 बरस की कश्मकश के बाद हिंदू धर्म त्याग और बौद्धधर्म स्वीकारा. दूसरे, लोहिया ने सभी ‘पिछड़ों’ के संयुक्त मोर्चे की रचना के लिए ‘विशेष अवसर’ की नीति सुझायी. इसमें वंचित जमातों के बीच से नए नेतृत्व निर्माण की क्षमता मानी. ‘फ़ॉर्वर्ड’ जातियों के समाजवादियों से ‘खाद’ बनने की आशा की….

*धारावाहिक लेख जारी है*

(लेखक-राजीनीतिक एवं सामाजिक चिंतक है)

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