प्रवीण मल्होत्रा,
महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में उनकी सहयोगी 22 वर्ष की क्रांतिकारी युवती उषा मेहता द्वारा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अदम्य साहस और शौर्य पूर्वक ‘कांग्रेस रेडियो’ की स्थापना कर उसके माध्यम से आजादी की मशाल को जलाया गया था और देशवासियों के दिलो-दिमाग में गांधीजी का मंत्र “करो या मरो” का उद्घोष किया था।
‘कांग्रेस रेडियो’ के माध्यम से देशवासियों के मन में आजादी की चिंगारी को भड़काने के लिये किया गया यह प्रयास आजादी के आंदोलन का एक स्वर्णिम अध्याय है। उस समूचे घटनाक्रम पर बनी एक बेहतरीन फ़िल्म “ए वतन मेरे वतन” OTT प्लेटफॉर्म ‘प्राइम वीडियो’ पर रिलीज हुई है। उषा मेहता का रोल सोहा अली खान ने बहुत ही अच्छी तरह निभाया है। इमरान हाशमी भी डॉ. लोहिया के चरित्र में खूब जमे हैं।
डॉ. लोहिया के भाषण का प्रसारण करते हुए उषा मेहता को अंग्रेज पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया था। भूमिगत रहकर आंदोलन का संचालन करने वाले क्रांतिकारी नेता डॉ. लोहिया का पता बताने के लिये उन्हें कठोर यातनाएं दी गयीं किंतु उनके मुंह से हमेशा एक ही शब्द निकला – जय हिंद। उषा मेहता को चार वर्ष की कारावास की सजा हुई और उन्हें पुणे के यरवडा जेल में रखा गया। 1944 में डॉ. लोहिया भी गिरफ्तार हो गए। अंग्रेजों द्वारा उन्हें लाहौर जेल में कठोर अमानवीय यातनाएं दी गयीं।
जेल से रिहा होने के बाद उषाजी ने सक्रिय राजनीति के बजाय महिलाओं के उत्थान के लिये कार्य करने का निर्णय लिया। आजादी के बाद उन्होंने गांधीजी के विचार दर्शन पर राजनीति शास्त्र में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की और बम्बई विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया।
आजादी के आंदोलन में उनके अमूल्य योगदान के लिये भारत सरकार ने उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च सम्मान “पद्मविभूषण” से सम्मानित किया। 25 मार्च 1920 को सूरत के पास एक गांव में जन्मी प्रो.उषा मेहता का 80 वर्ष की आयु में 11 अगस्त 2000 को निधन हो गया। क्रांतिकारी मरते नहीं हैं, वे अमर हो जाते हैं। डॉ. लोहिया और प्रो.उषा मेहता भी अमर हैं!
23 मार्च डॉ. लोहिया की तथा 25 मार्च प्रो.उषा मेहता की जयंती है। दोनों महान विभूतियों को विनम्र श्रद्धांजलि।