सोनी कुमारी, वाराणसी
गांधारी के गर्भ से निकले मांस पींड के 100 टुकड़े करके- 100 मटकों में घी के साथ रखने से 2 साल बाद 100 पुत्र निकलते हैं.
[महाभारत : आदिपर्व 114]
कुंती 5 अलग अलग देव पुरुषों को पास बुलाकर उनसे सम्भोग करके 5 पुत्रों पांडवो को जन्म देती है.
(आदिपर्व 122)
कुंती ने दुर्वासा ऋषी के वरदान को परखने के लिए सुर्य को पास बुलाया. सुर्य कहने लगा मेरे साथ समागम करो. कुंती बदनामी के कारण मना कर देती है। सुर्य उसे समझाता है कि तुम कन्या ही बने रहोगी. उसके बाद उससे सम्भोग करने पर कुंती ने कर्ण को जन्म दिया.
(आदिपर्व 110)
शरद्वान गोतम तप कर रहा था तब इंद्र कि अप्सरा जानपदी का सौंदर्य देखकर शरद्वान गोतम का विर्य स्खलित होकर सरकंडे के पौधों पर गिरा. और विर्य दो भागो मे बट गया जिससे कृप (कृपाचार्य) नामक लडका और कृपी नामक लडकी बन गयी.
(आदिपर्व 129)
भारद्वाज ऋषी गंगा के किनारे स्नान करने के लिए गये थे ! वहा स्नान के करने गयी अप्सरा घृताची का वस्त्र थोडा निचे खिसक गया, उसको देखते ही भारद्वाज का विर्य स्खलित हो गया और विर्य द्रोण मे गिरा जिससे द्रोणाचार्य हुआ.
उतथ्य कि पत्नी ममता गर्भवती थी, परंतु उतथ्य के छोटे भाई बृहस्पती ने ममता के साथ जबरदस्ती समागम किया था.
इसलिए उस पुत्र का नाम भारद्वाज पडा. द्वाज [यानी दोनो का पुत्र].
नोंट : गिताप्रेस के आदिपर्व 104 में पहले ये कथा उपलब्ध थी. नये संस्करणो से उस ने ये कथा हटा दी है.
राजा द्रुपद ने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ हवन कराया था, हवनकुंड कि अग्नि कि लपटों से जन्में थे दोनो बहन भाई.
पाराशर ऋषी को 12 वर्षीय सत्यवती नाव में बैठाकर दरिया पार कराने गयी तो दरिया के बीच में बूढ़े ऋषी कि वासना जाग गयी और ऋषी ने कन्या के साथ समागम कर डाला और कुंवारी से व्यास जी का जन्म हुआ.
जब परशुरामजी ने पुरे संसार से क्षत्रियों का विनाश कर दिया तो क्षत्रणियां ब्राह्मण ऋषियों के पास आई और संतान प्राप्ति की इच्छा प्रकट की तब नियोग विधी से क्षत्रणियों के साथ संभोग किया उन स्त्रियों से फिर से क्षत्रिय जन्में.
(आदि पर्व अध्याय – 64)
“मनुस्मृति” अध्धाय 9, श्लोक 320 में भी लिखा है कि क्षत्रिय ब्राह्मण की संतान है। इन सभी ग्रंथों के लेखक पंडित है।
कहीं पर ब्राह्मण ऋषी के वरदान से, कहीं पर ब्राह्मण कि मंत्र शक्ति से, कहीं पर ब्राह्मण के श्राप से, कहीं पर ब्राह्मण के विर्य के निगलने से, कहीं पर विर्य बिखरने से, कहीं पर ब्राह्मण के जबर्दस्ती संभोग करने से, कहीं पर ब्राह्मणों के नियोग विधी से संभोग करने से, कहीं पर ब्राह्मण के आशिर्वाद से संताने उत्पन की गयी है। और लोगों के काल्पनिक वंश चलाए गये हैं, ताकि देश के सभी लोग ब्राह्मणों को अपना बाप समझकर पूजते और पालते रहे.