कनक तिवारी
1) कई दोस्तों का कहना है लोकसभा के चुनाव के मद्देनजर बडे़े बडे़ राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं। तो लिखते क्यों नहीं? चलो लिख देता हूं। हालांकि हर विचारोत्तेजक विषय पर तटस्थ और वस्तुपरक होकर लिखने से भी ज़्यादा हमले होते हैं असहमतियों के। सोशल मीडिया का यही एडवेंचर है। कमेंट को दिल से नहीं लगाएं। फिर भी दिमाग को परेशान तो कर देता है। जिन्हें यह लेख नहीं रुचे, वे अब जय जगन्नाथ कहें। फिलहाल यह जय श्री राम के बदले आफिशियली कहा गया है।
(2) नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गए। मबूत लगते मजबूर हैं कि खुद को एन0डी0ए0 का नेता कहते रहेंगे। मोदी की गारंटी छुट्टी पर रहेंगी। ‘मन की बात‘ रेडियो पर करोड़ों रुपए खर्च कर कही। लेकिन जनता ने अपने ‘मन की बात‘ कह दी। कई शब्द राजनीति के गटर में गिराए। देश में नाबदान तो उगाए ही जाते रहेंगे।
(3) मैं नहीं मानता कि अभी मोदी सरकार चला नहीं पाएंगे। तेलगु देशम पार्टी और जनता दल यूनाइटेड शुरू से ही मोदी को बहुत अधिक परेशान नहीं कर पाएंगे। भाजपा 2014 में पैरों पर चली। 2019 में दौड़ने लगी। उसका ख्वाब था 2024 में पायलट मोदी के हवाई जहाज में बैठकर उड़ने लगेगी। लेकिन लंगड़ाते हुए बैसाखियों का सहारा लेना पड़ गया। चलते रहना फिर भी बंद नहीं होगा। सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के 240 और फिर 300 के आसपास एन0डी0ए0 होकर सांसद हैं। मोदी जी अपना अड़ियल सलूक निश्चित सुधारेंगे। विनम्र होते दिखेंगे।लेकिन सहयोगी तथा विपक्षी दलों में तोड़फोड़ करते कुनबा बढ़ाने का जतन करते रहेंगे। केजरीवाल और उद्धव ठाकरे के पास पहल शुरू हो रही होगी।
(4) लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा संदेश आंकड़ों का नहीं है। यह भी नहीं कि भाजपा की 240 सीटें या सीटों को दोहरा करते कांग्रेस की सेंचुरी या उत्तरप्रदेश में राहुल और अखिलेश की जोड़ी ने समाजवादी पार्टी की 37 सीटों और कांग्रेस की 6 सीटों को जीतकर भाजपा को पीछे छोड़ दिया। अजूबा हुआ कि रणनीतिकार राहुल ने महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, हरियाणा, पंजाब में भी सहयोगियों में सबसे ज़्यादा सीटें हासिल की। पूर्वोतर में भाजपा से बेहतरीन प्रदर्शन किया। इंडिया एलायंस गठबन्धन बनकर चुनाव के पहले मोदी की वह काट बनी, जिसकी भाजपा और मोदी ने अहंकार में अनदेखी कर दी।
(5) चुनाव आयोग का गठन सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के निर्णय के मुताबिक प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की तीन सदस्यीय समिति को करना था। आत्मविश्वास और सबकी हंसी करने के अहंकार में डूबे मोदी ने कानून में ही संशोधन करा दिया। चीफ जस्टिस का नाम हटाकर अपना मातहत मंत्री जोड़ दिया। एक अधिकारी को चुनाव आयुक्त बनाने सरकारी नौकरी छुड़ाकर 24 घंटे में नियुक्त किया गया। बाद में भी जेबी नस्ल का चुनाव आयोग बनाया गया। उसकी जगहंसाई हुई। थुक्काफजीहत अब भी हो रही।
(6) आदर्श आचार संहिता की धज्जियां उड़ाते प्रधानमंत्री और गृह मंत्री अमित शाह ने लगभग अपराधिक नस्ल के कई भाषण दिए। चुनाव आयोग अंधमूकबधिर भूमिका में गा़फिल रहा। ‘‘मंगलसूत्र छिन जाएगा। आपका सोना वगैरह छीनकर भी उनको बांट दिया जाएगा जिनके बहुत बच्चे होते हैं। आरक्षण मुसलमानों को धर्म के आधार पर नहीं दिया जाएगा। विपक्षी बैठकर मुजरा करेंगे। क्या उनको वोट देंगे जो मीट, मटन, मछली, मुर्गा खाते हैं? फलां नेता ने तो अपने ससुर की पीठ पर छुरा भोंका है। दो शहजादे मिलकर क्रांति करने का दिन में सपना देख रहे हैं। सम्भावना भले हो कि मैं मां की कोख से पैदा हुआ हूं। लेकिन दरअसल परमात्मा के द्वारा भेजा गया हूं।‘‘ दुनिया के किसी लोकतंत्र में वहां का प्रधानमंत्री ऐसा कुछ कह सकता है? अन्यथा वहां की जनता तो उसका किसी मानसिक अस्पताल में इलाज कराना चाहती।
(7) सबसे बड़ी कहलाती राष्ट्रीय पार्टी भाजपा चुनाव लड़ कहां रही थी? चुनाव अकेले मोदी लड़ रहे थे। उम्मीदवारों को भाजपा ने पार्टी का चुनाव चिन्ह दे भर दिया था। हर प्रचार सामग्री पर पार्टी के चुनाव चिन्ह से ज़्यादा बड़ी तस्वीर नरेन्द्र मोदी की रही। खुद कहते रहे ‘यह मोदी की गारंटी‘ है। भाजपा को वोट दो तो कहा जा सकता था, लेकिन भाजपा के चुनाव चिन्ह पर बटन दबाकर मोदी को वोट दो जैसा तितम्मा खड़ा किया गया। कर्नाटक में भाजपा की सहयोगी जनता दल सेक्युलर के प्रज्जवल रेवन्ना और पिता पर लगभग 3000 महिलाओं ने यौन शोषण का आरोप लगाया। हासन के उस चुनाव अभियान में मोदी ने छाती ठोंककर कहा आप प्रज्जवल रेवन्ना को वोट दीजिए। उससे मोदी मजबूत होगा। बलात्कार के आरोपी को वोट देने से प्रधानमंत्री मजबूत होगा? राजनीति का यह नया मौलिक समीकरण भी लिखा।
(8) ‘संविधान भारत की आत्मा है‘ का संदेश बाबा साहब अम्बेडकर के कारण खासतौर पर वंचितों के दिलों में पैठ गया है। इंडिया गठबंधन के नेताओं ने वह मर्म छू लिया। तभी तय हो चुका कि 400 तो क्या 300 पार भी नहीं होगा। संविधान किसी भी कीमत पर बदला नहीं जा सकेगा। यही खेला हुआ। अब तक राजनीति और लोकतंत्र को बूझने जनता ने नेताओं के भाषणों पर ही खुद को निर्भर रखा था। उसे आत्मसम्मान और स्वाभिमान महसूस हुआ कि खुद संविधान को पढे़ और उसकी हिफाज़त करे। वरना देश को फासिस्टी हाथों में जाने का खतरा सिर पर मंडरा रहा है।
(9) संविधान में सामूहिकता की भावना है। सरकार का हर फैसला मंत्रिपरिषद को करना है। प्रधानमंत्री अकेले कोई संवैधानिक फैसला नहीं कर सकते। कोई मंत्री अपने स्तर पर संवैधानिक फैसला कर ले तो राष्ट्रपति के आदेश पर प्रधानमंत्री को उसे मंत्रिपरिषद से मंजूर कराना पड़ता है। इसके बावजूद इतना अहंकार था कि देश में मानो 543 क्षेत्रों पर केवल मोदी चुनाव लड़ रहे। कई उम्मीदवारों का नाम तक लोगों को मालूम नहीं होता था। कई बार वह मंच पर आता नहीं था। किस्सा है कि यमुना किनारे सभी गोपियों में आपसी जलन हुई कि कान्हा किसके हैं। तो नृत्य में थिरकती हर गोपी को लगा कि कृष्ण उसके ही साथ नाच रहे हैं। महाभारतकालीन इस मिथक को मोदी अपनी मानसिक व्याधि के अहंकार में मानो पुनरावृत्त कर रहे थे। लेकिन कहां कृष्ण और कहां मोदी? सब टांय टांय फिस्स!(जारी है)।