–जूली सचदेवा ———–
_ट्रेंड फौजी होना एक फायदे का धंधा है। दरअसल फौजी ट्रेनिंग आसानी से उपलब्ध नही होती। किसी देश की नियमित सेना, छुट्टे सांड की तरह ट्रेंड फौजी पैदा करके सड़को पर नही छोड़ती।_
एक बार रिक्रूटमेंट और ट्रेनिंग के बाद उसे एब्जॉर्ब करती है, और उसकी पूरी वर्किंग लाइफ एंगेज्ड रखती है। ट्रेंड फौजी, निकाल दिये जायें, ऐसा कभी कभार ही होता है, और सुनियोजित रूप से नही होता है।
जैसा कि सोवियत रशिया में हुआ। रूस के विघटन के बाद फ़ौज से हाइली ट्रेंड कमांडो, बेरोजगार हो गए। जो नए देश बने, उनमे इतने सैनिको की जरूरत नही थी।
_नतीजतन बहुत से फौजी, रशियन ओलिगार्क ( पुतिन जी के अम्बाडानी) के सिक्युरिटी गार्ड बन गए। यह फ़िर भी इज्जतदार था। लेकिन बहुतेरे रशियन माफिया के शूटर वगेरह बने।_
लेकिन नौकरी में किसने खाई मलाई। भई, अपना काम तो अपना काम होता है। कुछ इंडिपेंडेंट सुपारी किलर बने। कुछ ने मिल जुलकर खुद का गैंग बनाया, औऱ स्वयं माफिया बन गए। औऱ हथियार, ड्रग्स, अपहरण, रंगदारी आदि व्यवसायों में हाथ आजमाए। लेकिन सितारों से आगे जहां और भी हैं।
तो होता ये है कि कई बार नेताओ को अपनी विश्व विजेता होने की फीलिंग के लिए युद्ध वुद्ध लड़ना पड़ता है।
_लेकिन युद्ध मे तो सैनिक मरते हैं, बॉडी बैग्स औऱ ताबूत में भरकर लौटते हैं। उन्हें शहीद का दर्जा मिलता है, हो हल्ला होता है। उधर दुश्मन उनको मारकर अपनी जीत के दावे करता है।_
तो शॉर्टकट ये, की भाड़े के सिपाही हायर करो। मर्सिनरी मुख्य सेना के आगे होते हैं, पहला खतरा झेलते हैं। रास्ता साफ करके, पीछे के मासूम सिपाहियों को जीत का क्रेडिट लेने देते हैं।
_खुद कॉन्ट्रेक्ट की मोटी रकम, लूट और सुंदर स्त्रियों के बलात्कार का आनंद लेते है। वेगनर ग्रुप ऐसा ही ग्रुप है।_
इसमे 80 हजार से ढाई लाख रूबल तक सैलरी मिलती है। मर गए, तो 50 लाख रूबल तक का कम्पनसेशन घर पहुँच जाता है।
ऐसे कई ग्रुप दुनिया मे सक्रिय हैं। सीरिया, अफ्रीका, यूक्रेन और कई जगहों पर लड़ते हैं। तानाशाहों के लिए लड़ते हैं, लेकिन पैसा मिले तो उसका तख्तापलट करने के लिए भी लड़ते हैं।
_आपको राजीव गांधी के दौर में मालदीव में मरसिंनरीज का अटैक याद होगा, जब भारत मे गयूम सरकार को बचाया। जार्ज स्पीट नाम के बन्दे ने मर्सिनरिज के बूते फिजी में महेंद्र चौधरी का तख्ता पलट किया था। याद है या नही।_
अफसोस, इस धंधे में कभी कोई भारतीय नही जा सका।
भारत, विश्व में केवल “शारीरिक मजदूर” और ‘आईटी मजदूर” भेजने के लिए फेमस रहा है। अग्निवीर योजना के बाद हम इसमे भी अपनी पहचान बनाएंगे।
_दरअसल शाखाएं लाठी भांजने, और गाली देने से ज्यादा कुछ नही सिखाती। लेकिन भारतीय सेना की एक ब्रांड वैल्यू है।_
इंडियन आर्मी से ट्रेंड और रिटायर्ड 22-23 साल का युवा एक अच्छा मर्सिनरी साबित हो सकता है। दुनिया की बड़ी बड़ी प्राइवेट सीक्रेट आर्मीज इन्हें हाथोंहाथ लेंगी।
भारतीयों ने विदेशों में हमेशा अपने कौशल के झंडे गाड़े हैं। इंद्रा नूयी से सुंदर पिचाई तक, तो इस अनोखी योजना के बाद अब जल्द ही विश्व मे भारत के कांट्रेक्ट किलर्स और मर्सिनरिज की तूती बोलेगी।
तो योजना का विरोध न करें। अपने बाप भाई पति और बॉयफ्रेंड को प्रोत्साहित करें। उन्हें अच्छे से ट्रेनिंग लेकर किसी “अल फायदा” को जॉइन करने के लिए कहें। आपदा में अवसर को पहचाने।
_क्या पता कल को “द डे ऑफ जैकाल” की तरह कोई शानदार मूवी बने जिसका हीरो इंडियन हो, आपका ही बेटा हो। औऱ फ़िल्म का नाम हो “द डे ऑफ रामलाल.”_
[चेतना विकास मिशन]