
अपने परिवार की देखभाल के लिए बीच में पढ़ाई छोड़ चुके 28 वर्षीय दिहाड़ी मजदूर अखिल को उनके लघु कथाओं के संग्रह ‘नीलाचदयन’ के लिए हाल ही में केरल साहित्य अकादमी का प्रतिष्ठित वार्षिक साहित्य पुरस्कार मिला। इस पुरस्कार ने इस युवा की असाधारण कहानी को राष्ट्रीय पटल पर सभी के सामने लाया। अखिल ने जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आने के बावजूद साहित्य के प्रति अपना जज्बा कायम रखा।
12 तक की पढ़ाई

अखिल ने बताया कि मुझे जो पहचान मिली है, उससे मैं खुशी महसूस करता हूं। इसकी आशा नहीं थी। अपने संघर्ष के दिनों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वह और पढ़ना चाहते थे, लेकिन 12 वीं के बाद अपनी पढ़ाई नहीं जारी रख सके क्योंकि उन्हें अपने माता-पिता, भाई और दादी के लिए सहारा बनना था। उनकी मां भी दिहाड़ी मजदूर हैं।
तड़के से लेकर देर रात तक करते काम

अखिल ने कहा, ‘बहुत कम उम्र से ही मैंने घर-घर अखबार पहुंचाने का काम शुरू कर दिया था। अपने परिवार का सहयोग करने के लिए मुझे कई काम करने पड़े। देर रात तक नदी से बालू खनन में भी शामिल रहा और सुबह जल्दी उठकर अखबार बांटे।’ रात में खनन श्रमिक के रूप में काम करने और सुबह अखबार पहुंचाने के बाद अखिल अपने आपको घंटों अकेले पाते थे। अखिल को कहानी कहने में आनंद आता था और सूनी रात के भय को भगाने के लिए उन्होंने अपनी कल्पना का इस्तेमाल किया।
लोगों के अनुभव सुनकर लिखी कहानियां

अखिल ने कहा, ‘रोजमर्रा के दौरान मैं कई लोगों से मिलता था। मैं उनपर करीब से नजर रखता था और उनके अनुभवों को सुनता था। रात के डर और अकेलेपन से निजात पाने के लिए मैंने दिन में जो सुना या देखा, उस अनुभव के आधार पर मैं कहानियों की कल्पना करने लगा।’ इसका परिणाम ‘नीलाचदयन’ था और यह शीर्षक केरल के इडुकी जिले में पाये जाने वाले भांग से लिया गया था। इस पुस्तक की कहानियां उत्तरी केरल के आम लोगों की जिंदगी में डुबकी लगाती हैं, उदाहरण के लिए थेय्याम कलाकारों की कठिनाइयां जो उस कला का प्रदर्शन करते हैं जिसमें नृत्य एवं गायन शामिल है। उन्हें अपने विचारों को लेखनीबद्ध करने और कहानियां रचने के लिए रात में समय मिल जाता था। वह बड़े गर्व से कहते हैं कि अब ‘नीलाचदयन’ का आठवां संस्करण आ चुका है।
नहीं मिले प्रकाशक

कई अन्य उभरते लेखकों की भांति उन्हें भी प्रकाशक ढूंढ़ने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा , ‘चार सालों तक मैंने अपने लेखन कार्य के प्रकाशन के लिए कई प्रकाशकों एवं पत्रिकाओं से संपर्क किया था। उनमें से कुछ प्रकाशकों को मेरी कहानियां पसंद आयीं, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि उनके लिए बाजार ढूंढ़ना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि मैं इस क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम नहीं था।’
ऐसे जुटाए 20 हजार रुपये

नीलाचदयन’ पहले तब प्रकाशित हुआ जब अखिल ने फेसबुक पर एक विज्ञापन देखा, जिसमें कहा गया था कि यदि लेखक 20000 रुपये दे तो वह उसकी पुस्तक का प्रकाशन करेगा। अखिल ने कहा, ‘मैंने करीब 10000 रुपये बचाकर रखे थे। दिहाड़ी मजदूरी करने वाली मेरी मां ने अतिरिक्त 10 हजार रुपये जुटाने में मेरी मदद की और हमने पहली पुस्तक के प्रकाशन के लिए पैसे दिये। यह केवल ऑनलाइन बिक्री के लिए थी।’
इस तरह किताब हुई पॉप्युलर

चूंकि यह पुस्तक राज्य में किसी दुकान पर नहीं थी इसलिए उसने कोई ऐसा प्रभाव नहीं पैदा किया। अखिल ने बताया कि इस पुस्तक को तब एक पहचान मिली जब बिपिन चंद्रन ने फेसबुक पर उसके बारे में सकारात्मक बातें लिखीं। अखिल ने कहा, ‘बाद में लोग पुस्तक की दुकानों पर उसके बारे में पूछने लगे और प्रकाशन शुरू हो गया। अब तक आठ संस्करण प्रकाशित हुए हैं। अखिल ने कहा यह पुरस्कार उनकी तरह अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत होगा। इस पुरस्कार को ‘गीता हिरण्यन एंडोमेंट’ पुरस्कार के नाम से भी जाना जाता है। अखिल ने और किताबें भी लिखी हैं जिनमें स्टोरी ऑफ लॉयन 1 , और ताराकंठन शामिल है।