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सारे देशभक्तों को संविधान बचाने के चुनावी अभियान में उतरने की जरूरत

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मुनेश त्यागी

       2024 के चुनाव शुरू हो चुके हैं। आज हमारे देश का संविधान, गणतंत्र, जनतंत्र और धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर सबसे ज्यादा हमले हो रहे हैं। भारत के वर्तमान उद्योगपति और सांप्रदायिक ताकतों के गठजोड़ की सरकार ने भारत के संविधान और जनतंत्र को सबसे बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। आज इस अमीरों की सत्ता ने, अपने चंद पूंजीपति और अमीर धन्ना सेठ मित्रों के हितों को बढ़ाने के लिए भारतीय जनता की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाली नीतियों को त्याग दिया है और देश की सारे धन, संपत्ति और प्राकृतिक संसाधनों को इन चंद धनपतियों के हवाले कर दिया है और इस सरकार ने जनता की बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराने की ज़रुरी नीतियों से इति श्री कर ली है।

     वर्तमान धन्ना सेठों और सांप्रदायिक ताकतों के गठजोड़ की सरकार और शासन हमारे आजाद भारत का सबसे खराब शासन है। सरकार द्वारा किए गए इस कुप्रबंधन को अर्थव्यवस्था, धर्मनिरपेक्षता, संविधान, जनतंत्र के गिरते स्वरूप में और भ्रष्टाचार की बढ़ती कुरुपता के रूप में देखा जा सकता है। किसान मजदूर और जनता को सस्ते और और सुलभ न्याय से वंचित रखने की नीतियां भी इस सबसे अलग नहीं है।

      आर्थिक बदहाली,,,,

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    इस सरकार की अमीरपरस्त आर्थिक नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को डांवाडोल कर दिया है। 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का जाप करते-करते जीडीपी के मामले में भारत 213 देश में 147वें  स्थान पर पहुंच गया है। हमारा देश दुनिया में गरीबी का सबसे बड़ा घर बन गया है। इसने असमानता के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार एक प्रतिशत भारतीयों के पास देश की 40% संपत्ति है। शीर्ष 10% भारतीयों के पास 77 फ़ीसदी संपत्ति है और जनता के निचले प्रतिशत 50% के पास देश की संपत्ति का केवल तीन प्रतिशत हिस्सा है।

      नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत के 32% लोग कुपोषण का शिकार हैं, 44% परिवारों के पास खाना पकाने का ईंधन नहीं है। 41% के पास पर्याप्त आवास नहीं हैं। पिछले सात सालों में 70 लाख लोगों की नौकरी चली गई हैं। मनरेगा में केवल 100 दिनों के काम की गारंटी के बावजूद 47 दिन काम मिल रहा है जिनकी मजदूरी 400 की जगह 215 रुपए प्रतिदिन है।

     मूल्य वृद्धि और महंगाई ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। खाद्य और सब्जियों की कीमतों में पिछले 7 वर्षों में 53% से 120% की बढ़ोतरी हुई है। स्वास्थ्य सेवाएं 71% और शिक्षा 60% महंगी हो गई हैं। पेट्रोल डीजल और रसोई गैस की कीमतों में मनमानी वृद्धि की गई है। इनसे आये करों का 82% केंद्र सरकार के हिस्से में गया है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2014 से 2022 तक 8 वर्षों में एक 1,00,474 किसानों और खेत मजदूरों ने आत्महत्या की है। केंद्र सरकार ने अपने पूंजीपति कॉर्पोरेटों  के 15 लाख करोड़ से ज्यादा बैंक लोन माफ कर दिए हैं, मगर केंद्र सरकार ने किसानों और खेतिहर मजदूरों का ₹1 भी माफ नहीं किया है।

संविधान पर भयानक हमले,,,,

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 केंद्र सरकार की नीतियां भारत के संविधान पर भयानक हमले कर रही हैं। सरकार की नीतियों में जानबूझकर भारत के संविधान से जैसे छुट्टी ही पा ली गई है। उसके तमाम बुनियादी सिद्धांतों जैसे जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय और गणतंत्र के मूल्यों का परित्याग कर दिया गया है, जनता के भाईचारे को खंडित करके, एक साजिश के तहत तोड़ा जा रहा है, जनता में असमानता बढ़ती जा रही है, किसानों को घोषणा के बाद भी, फसलों का न्यूनतम मूल्य नहीं दिया जा रहा है, 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिल रहा है और उन्हें तमाम श्रम कानूनों के संरक्षण से वंचित कर दिया गया है

     आर्थिक असमानता आजाद भारत के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है, सस्ते और सुलभ न्याय का नारा सिर्फ कोरा और खोखला नारा बनकर रह गया है। आज भारत में 5 करोड़ से ज्यादा मुकदमे पेंडिंग हैं मगर इनके जल्दी निपटारे का कोई हल सरकार के पास नहीं है। सरकार ने जैसे थन ही लिया है कि उसे जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देना ही नहीं है और संविधान के सस्ते और सुलभ न्याय के वायदे को पूरा ही नहीं करना है।

     जनतंत्र पर अकल्पनीय हमले,,,,,,

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   सरकारी नीतियों और व्यवहार ने जनतंत्र का गला घोट दिया गया है। आज भारत में अघोषित आपातकाल है, विरोधियों के सारे जनतांत्रिक अधिकार जैसे छीन लिए गए हैं। अब भारत जनतंत्र नहीं, धनतंत्र का राज कायम हो गया है। आज ईमानदार व्यक्ति चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता। अब चुनाव में सिर्फ पैसे वालों का ही बोलबाला होकर रह गया है। यूऐपीऐ के तहत गिरफ्तारियां में 72% का इजाफा हुआ है, 98% गिरफ्तार लोगों को जमानत नहीं मिली है। यूएपीए के मामले बढ़कर 1005 हो गए हैं, जिनमें 8,947 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।इन मामलों में राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद और सरकार से असहमति व्यक्त करने वालों की आवाज को बंद कर दिया गया है।

     राजद्रोह के मामले में पिछले 4 साल में 701 मामले दर्ज किए गए हैं। विश्व प्रेस सूचकांक में भारत 180 देश में 161वें स्थान पर आ गया है। भारत का अधिकांश मीडिया सरकार और अमीरों का गुलाम हो गया है। मुकेश अंबानी 80 करोड़ दर्शकों की जनसंख्या वाले 72 टीवी चैनलों का मालिक बन गया है। अडानी भी इसी मार्ग पर आगे बढ़ रहा है।

     ईडी, सीबीआई और आईटी जैसी तमाम केंद्रीय एजेंसियों द्वारा विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है। इस नवीनतम डर के कारण अधिकांश विपक्षी नेता आज भाजपा की शरण में नतमस्तक हो गए हैं।

     धर्मनिरपेक्षता पर जोरदार हमले,,,,,,

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    धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर सरकार द्वारा भयानक हमले किए गए हैं। सरकार और उसके मंत्री धर्म का राजनीति और सरकार में जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। पहले अयोध्या और अब काशी और मथुरा की मस्जिदों को मंदिरों में बदलने का अभियान जारी है। पूजा स्थल अधिनियम 1991 को धराशाई कर दिया गया है। इस काम में आरएसएस और तमाम मनुवादी और हिंदूत्ववादी ताकतें दिलो जान से लगी हुई है।

      धर्मनिरपेक्षता संविधान का बुनियादी सिद्धांत है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की कई रुलिंग्स को ताक पर रख दिया है। सुप्रीम कोर्ट अपने इन फैसलों में बिना किसी शकसूबे के खुलेआम कह चुका है कि भारतीय राज्य का कोई धर्म नहीं है और राजनीति और राज्य के कार्यों में धर्म का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। सरकारी नीतियों ने धर्मनिरपेक्षता के उद्देश्यों और सिद्धांतों को पूरी तरह से मटियामेट कर दिया है।

    भ्रष्टाचार की बहती गंगा,,,,,

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    इस वक्त भ्रष्टाचार की तेज गति से बहती गंगा से सारी जनता परेशान है। ज्यादातर सरकारी और गैर-सरकारी विभाग भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं। वर्तमान सरकार ने भ्रष्टाचार की सारी हदें पार कर दी हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड के खुलासों ने भाजपा को इस भ्रष्टाचार का सिरमौर बना दिया है। इलेक्टरल बॉन्ड में भाजपा को सबसे ज्यादा चंदा ₹8251 करोड रुपए मिले हैं। घाटे में चल रही कंपनियां इलेक्टोरल बांड खरीद कर मालामाल हो गई हैं। बोंड के बड़े-बड़े लेनदेन से प्राइवेट कंपनियों को बड़े-बड़े ठेके मिले हैं। कुछ कंपनियों से जबरन वसूली की गई और उसके बाद वे देखते ही देखते मालामाल हो गईं।  कई भाजपा नेताओं से जुड़ी कंपनियों ने भी अकूत धन कमाया है।

     भ्रष्टाचारी नीतियों का सबसे बड़ा फायदा सरकार के चंद पूंजीपति दोस्तों को हुआ है। इन्हीं नीतियों के कारण विजय मालिया, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और अन्य कई बड़े-बड़े पूंजीपति धोखाधड़ी के द्वारा सरकारी बैंकों का हजारों करोड रुपए हड़पने के बाद विदेश में भाग गए। राज्य सरकारों द्वारा किए गए अनेक घोटालों के सैकड़ों मामले अलग हैं। अब भारत  दुनिया का सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी देश बनकर सबके सामने है। इन भ्रष्टाचारी नीतियों और तमाम भ्रष्टाचारियों का सबसे बड़ा शिकार, भारत की जनता और भारत के गरीब हुए हैं।

     अब हमारा देश चुनाव के मैदान में है। सरकार की सारी नीतियां और व्यवहार देश के सामने हैं। इस समय देश के तमाम देशभक्त और जागरूक नागरिकों की यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी बन गई है कि वे इन तमाम तथ्यों और आंकड़ों को लेकर जनता के बीच में जाएं, उसे इनसे अवगत करायें, क्योंकि प्रिंट मीडिया और टेलीविजन चैनलों पर इन आंकड़ों का प्रचार प्रसार नहीं हो रहा है, इस असली हकीकत से उन्हें अवगत नहीं कराया जा रहा है। वे सब मिलकर इन तमाम आंकड़ों को जनता के सामने रखें, ताकि जनता इन तमाम जनविरोधी सच्चाइयों से रूबरू हो सकें और भारत के संविधान के बुनियादी मूल्यों और सिद्धांतों पर किए जा रहे भयानक हमलों का मुकाबला करके, अपने वोट का समुचित प्रयोग कर सके और भारत के संविधान और जनतंत्र पर हो रहे हमलों से उनकी मुकम्मल सुरक्षा कर सकें।

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