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आश्चर्यजनक है- गूंगी कठपुतली बोल रही है,बंगाल में

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सुसंस्कृति परिहार
अब तक नागरिक शास्त्र में राष्ट्रपति को केन्द्रीय मंत्री परिषद और राज्यपाल को राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार काम करने के अधिकार के बारे में पढ़ाया जाता रहा है उनके कुछ विशेषाधिकार भी हैं लेकिन उस सबके पीछे जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा मनोनीत प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । उन्हें इसीलिए कठपुतली की संज्ञा से नवाजा जाता है लेकिन आजकल ख़ासतौर पर भाजपा शासन काल में राज्यपालों को ऐसा लगता है कि केंद्रीय सरकार का गुलाम बना दिया गया है वे उनकी मर्जी के मुताबिक ना चलें तो किरण बेदी जैसा हाल हो ।

आजकल  बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़  चर्चाओं में हैं वह भी बंगाल में चुनाव बाद की हिंसा को लेकर। दिल्ली , उत्तरप्रदेश , जम्मू-कश्मीर में किस कदर हिंसा का इतिहास रहा है पर राज्यपालों में एक राज्यपाल माननीय जगदीप धनखड़ ही हैं जो बंगाल की हिंसा को लेकर इतने सजग और चौकस हैं कि वे यह भी भूल जाते हैं कि चुनाव के तत्काल बाद हिंसा के लिए मुख्यमंत्री जिम्मेवार कैसे हो सकता है? हां शपथ-ग्रहण के बाद उसकी ये जिम्मेदारी बनती है कि वह हिंसा के विरुद्ध सख्त कदम उठाए। धनखड़ जी राज्य में फैले कोरोना पर लेशमात्र चिंतित नज़र नहीं आते वे तो हिंसा की रिपोर्ट जानने में ही दिलचस्पी रखते हैं।वे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और प्रशासनिक अधिकारियों पर जिस तरह हमलावर हो रहे हैं वह तो किसी सोची समझी साज़िश के तहत ही लगता है ।आज तक किसी राज्यपाल ने हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का शायद ही दौरा किया हो और इसके लिए सरकार से हैलीकाप्टर की मांग की हो ।क्योंकि महामहिमों राज्यपाल या राष्ट्र पति का दौरा सामान्य नहीं होता उसकी तमाम व्यवस्थाओं को बहुत पहले चुस्त दुरुस्त किया जाता है और जनता के कल्याण की बहुत अधिक राशि व्यय करनी होती है।बंगाल राज्यपाल  को मलाल है कि संवैधानिक व्यवस्थाओं से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रशासन का दूर जाना दुर्भाग्यपूर्ण है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। धनखड़ ने लिखा, राज्य चुनाव के बाद हिंसा की सबसे गंभीर स्थिति से गुजर रहा है, लेकिन संवैधानिक प्रमुख को कोई जानकारी नहीं दी गई. इसकी बिल्कुल अपेक्षा नहीं थी।
 विदित हो जगदीप जी जब  राज्यपाल बन कर बंंगाल  आए थे तब श्री धनखड़ ने कहा था, बंगाल का राज्यपाल बनना मेरे लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. मुझ पर बड़ा उत्तरदायित्व है और संविधान की रक्षा और जनहित मेरी जिम्मेदारी है. मेरा ये संकल्प भी है कि किसी भी परिस्थिति में संविधान की लक्ष्मण रेखा न तो मैं पार करुंगा और न ही किसी को करने दूंगा. उन्होंने कहा, मुझे मीडिया से बहुत उम्मीदें हैं. पश्चिम बंगाल के लोगों का किसी से कोई मुकाबला नहीं है. यहां के लोग बहुत मेहनती हैं ।महिला अपराध को लेकर उन्होंने कहा था बंगाल में महिला अपराध चरम पर है. हालात बहुत खराब है। प्रशासन ने रेप और कैडनेपिंग की जानकारी देने से मना कर दिया है. हमें महिला अपराध का डेटा नहीं दिया जा रहा है. उन्होंने कहा, ममता सरकार मेरा साथ नहीं देती है. उनसे फोन पर कई बार बात हुई, हालांकि मुलाकात उतनी बार नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी। मुझे कभी किसी सरकारी कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया। मैंने किसी एसपी और कलेक्टर की शक्ल नहीं देखी।ये कैसा दुख है उनका समझ से परे है।और  एक बयान और धनखड़ जी का  कि विधानसभा की कार्यवाही ब्लैकआउट रखी गई. यहां के हालात इमरजेंसी से भी भयानक हैं. मुझे कोई भी आधिकारिक जानकारी नहीं दी जाती. मेरा दायित्व राज्य सरकार के साथ मिलकर काम करना है, लेकिन जुलाई 2019 से सरकार ने मेरे किसी भी पत्र का जवाब नहीं दिया है। उन्होंने कहा, राज्य में सरकारी कर्मी अब नेताओं की तरह काम कर रहे हैं।ये स्थितियां क्यों बनी है?इस बारे में दोनों पक्षों को बैठकर हल करने की ज़रूरत है।
 ताज़ा बयान में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने ममता बनर्जी की सरकार पर निशाना साधा. धनखड़ ने बंगाल में चल रही हिंसा पर ममता सरकार को आड़े हाथों लिया. बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही बंगाल में हिंसा जारी है जिसमें अब तक कई लोग जान गंवा चुके हैं. बीजेपी और टीएमसी, दोनों ही पार्टियां, एक दूसरे पर आरोप लगा रही हैं शपथ-ग्रहण के तत्काल बाद कार्यक्रम में  बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने राज्य की ममता सरकार पर गंभीर आरोप लगाए. राज्यपाल धनखड़ ने कहा कि राज्य की स्थिति इस वक्त भयावह और भयंकर है. उन्होंने कहा कि राज्य की कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है. यहां उद्योग-धंधे भी बंद होते जा रहे हैं. लोग बेरोजगार हो रहे हैं।ये अशोभनीय है । राज्यपाल महोदय ममता के पिछले कार्यकाल से परेशान रहे हैं उनकी उत्कंठा ये जाहिर करती है कि वे जनता के बीच जाने में दिलचस्पी रखते हैं और उनके दुखदर्द दूर करना चाहते इसके लिए उन्हें राज्यपाल पद का त्याग कर जनसेवा हेतु जनसेवक बनना  चाहिए। क्योंकि राज्यपाल का पद गरिमामय तो है पर उसे इस तरह की छूट प्रदान नहीं की गई हैं उन्हें तो हर हाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यानि बंगाल की अवाम की आवाज के अनुरूप चलना होगा । इसके अलावा यदि वे प्रारंभिक दिनों में ही इस तरह का राग अलाप रहे हैं तो साफ़ लगता है कि भाजपा की हार पचा नहीं पा रही केंद्र की सरकार के इशारों पर वे उतावले होकर जबरिया कटु वचन बोल रहे हैं ।यह कठपुतलियों के लिए शोभा नहीं देता।भारी बहुमत से निर्वाचित सरकार को गिराकर राष्ट्रपति शासन की अगुआई हेतु किये जा रहे राज्यपाल के ये कदम अलोकतांत्रिक होने के साथ-साथ जनता के संवैधानिक अधिकारों पर कुठाराघात होगा । ज़रुरत इस बात की है महामहिम जगदीप जी बंगाल में कोरोना संकट के लिए ममता सरकार के साथ के न्द्र से आवश्यक धनराशि दिलवाकर बंगाल को बचाने का कोई अभिनव प्रयास करें ।ये राज्यपाल के नाते आपका हक बनता है। ताल-मेल बिठाकर ही बंगाल के लिए राज्यपाल कुछ कर पायेंगे ।शायद उन्होंने अपने आपको को दिल्ली के उपराज्यपाल की तरह विशेषाधिकार सम्पन्न मान लिया है ।इस विचार से वे मुक्त हो जाएं तभी जनहित संभव है।

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