अग्नि आलोक
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*यथार्थ में झांकना साहस का काम?

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शशिकांत गुप्ते

हेलो ट्यून बजी दुःख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे,
मम्मी ने सपना को आवाज लगाई देखो बेटा तुम्हे कोई कॉल आया है।
सपना ने कहा यह तो प्रगति का कॉल है।थोड़ी देर बाद बात करूंगी।
मम्मी ने कहा वो बार बार कॉल कर रही है।बात करले बेटा एक बार।
मम्मी आप नहीं जानती हो, यह प्रगति है न ये बहुत पंचायती लड़की है।सिर्फ बातें करवा लो इससे।इसका विकास नाम के लड़के से अफेयर चल रहा है।विकास भी इसके जैसा ही है।दोनों की स्थिति इस कहावत जैसे ही है।
राम मिलाई जोड़ी,एक अंधा एक कोढ़ी
मम्मी ने समझाया अपने को ऐसा नहीं बोलना चाहिए।प्रगति पढ़ीलिखी लड़की है। उसने भी कुछ सोच समझकर ही विकास को पसंद किया होगा।
प्रगति और समझदार कैसी बात कर रही हो मम्मी।प्रगति तो इनदिनों पूर्ण सियासी हो गई है।प्रगति बगैर पैड़ियों के सीढ़ी पर चढ़ने का स्वांग रच रही है।
विकास भी कोई कम नहीं है।विकास के पास सिर्फ बातें है बातों का क्या?
सपना ने अपनी बात जरी रखतें हुए कहा कि, मुझे तो संदेह है,विकास पढा लिखा भी है या नहीं?कहता तो है कि, वह पोस्ट ग्रेजुएट है।लेकिन प्रमाण पत्र नहीं दिखता है?
मम्मी ने पूछा प्रगति के घर वालों को मालूम है यह सब?
प्रगति के घर वाले भी उसके जैसे ही हैं।वे लोग भी विकास के झांसे में आगए हैं।विकास जो भी सब्जबाग दिखता है, उसे ही सच समझ लेतें हैं।विकास बेरोजगार है।
मम्मी पूछा बेरोजगार है, तो प्रगति उससे शादी करने की कैसे सोच रही है?
सपना कहने लगी मम्मी आप उसकी बातें सुनोगी तो हँसोगी।
विकास कहता है,उसे किसी बाबा ने कहा है कि,अच्छेदिन आने वालें हैं। करोड़ो बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा?
मम्मी ने पूछा कब?
सपना ने कहा यही तो अहम प्रश्न है?प्रगति और विकास के अफेयर को सात साल से ज्यादा हो गए हैं?
उसी समय पुनः हेली ट्यून बजी।यह अलग ट्यून है। कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें है बातों का क्या
सपना ने कहा यह तो कविता का कॉल है।
हेलो कविता कैसी हो?
रचना के साथ हूँ।मतलब रचना लिख रही हूँ।कल्पना को साथ लेकर।
कभी यथार्थ में झांक लिया कर सपना ने कहा।
यथार्थ ही प्रकट करने की कौशिश करती हूँ।लेकिन साहस नहीं होता है।यथार्थ में तो सब शून्य नजर आता है।
सपना ने पूछा कल्पना लोक में कब तक विचरण करोगी।?मुझे देख मेरा नाम सिर्फ सपना है,लेकिन मैं यथार्थ से प्रेम करती हूँ।यथार्थ एक महेनतकश इंसान है।स्वावलंबी है।
कविता ने पूछा क्या वह पकौड़े बेंचता है?
सपना क्रोधित हो गई।कहने लगी तुम्हारा ध्यान सड़क किनारे की नाली में जाएगा।
यथार्थ मानस शास्त्र का चिकित्सक है।अवसादग्रस्त लोगों की कॉउंसलिंग करता है।उनको निराशा से बाहर लाता है।उनकी हताशा दूर करता है।उन्हें यथार्थ से अववत करता है।उन्हें उनकी काबिलियत का ज्ञान करवाता है।उन्हें उनकी शैक्षणिक योग्यता के समकक्ष व्यवसाय करने की प्रेरणा देता है।
कविता ने कहा सपना तू सच कह रही है।
अब मैं भी यथार्थ में झांकने का साहस करूंगा।सत्य प्रकट करने वाली रचना ही लिखूंगी।
सपना ने कहा इंसान को सिर्फ उसकी शारीरिक कदकाठी से मत देखों।सबसे पहले यह देखो की वह आदमी भी है या नहीं?आदमी होगा तो ही इंसान बनेगा।
एक शायर ने क्या खूब कहा है।
आईना कोई ऐसा बनादे खुदा जो
इंसान का सिर्फ चेहरा नहीं किरदार दिखादे

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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