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अप्सराएँ : क्या मिलना चाहेंगे आप!

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          डॉ. विकास मानव 

 अप्सराएँ सौंदर्य का प्रतीक मानी जाती है और बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अप्सराओं से अधिक सुन्दर रचना और किसी की भी नहीं मानी जाती। पृथ्वी पर जो कोई भी स्त्री अत्यंत सुन्दर होती है उसे भी अप्सरा कह कर उनके सौंदर्य को सम्मान दिया जाता है। 

   इंद्र ने अप्सराओं का निर्माण किया था। कई अप्सराओं की उत्पत्ति ब्रह्मा ने भी की थी जिनमे से तिलोत्तमा प्रमुख है। इसके अतिरिक्त कई अप्सराएं महान ऋषिओं की पुत्रियां भी थी।    

     भागवत पुराण के अनुसार अप्सराओं का जन्म महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री मुनि से हुआ था। कामदेव और रति से भी कई अप्सराओं की उत्पत्ति बताई जाती है।

   अप्सराओं का मुख्य कार्य इंद्र एवं अन्य देवताओं को प्रसन्न रखना था. विशेषकर गंधर्वों और अप्सराओं का सहचर्य बहुत घनिष्ठ माना गया है. गंधर्वों का संगीत और अप्सराओं का नृत्य स्वर्ग की शान मानी जाती है।     

      अप्सराएँ पवित्र और अत्यंत सम्माननीय मानी जाती है। अप्सराओं को देवराज इंद्र यदा-कदा महान तपस्वियों की तपस्या भंग करने को भेजते रहते थे। पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं जब किसी तपस्वी की तपस्या से घबराकर, कि कहीं वो त्रिदेवों से स्वर्गलोक ही ना मांग लें, देवराज इंद्र ने कई अप्सराओं को पृथ्वी पर उनकी तपस्या भंग करने को भेजा।

      अप्सराओं का सौंदर्य ऐसा था कि वे सामान्य तपस्वियों की तपस्या को तो खेल- खेल में भंग कर देती थी।हालाँकि ऐसे भी महान ऋषि हुए हैं जिनकी तपस्या को अप्सरा भंग ना कर पायी और उन्हें उनके श्राप का भाजन करना पड़ा। महान ऋषियों में से एक महर्षि विश्वामित्र की तपस्या को रम्भा भंग ना कर पायी और उसे महर्षि के श्राप को झेलना पड़ा किन्तु बाद में वही विश्वामित्र मेनका के सौंदर्य के आगे हार गए। उर्वशी ने भी कई महान ऋषियों की तपस्या भंग की किन्तु मार्कण्डेय ऋषि के समक्ष पराजित हुई।

    अप्सराओं को उपदेवियों की श्रेणी का माना जाता है। वे मनचाहा रूप बदल सकती हैं और वरदान एवं श्राप देने में भी सक्षम मानी जाती है। कई अप्सराओं ने अनेक असुरों और दैत्यों के नाश में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। इसमें से तिलोत्तमा का नाम उल्लेखनीय है जो सुन्द-उपसुन्द की मृत्यु का कारण बनी। 

    रम्भा को कुबेर के पुत्र नलकुबेर के पास जाने से जब रावण रोकता है और उसके साथ दुर्व्यहवार करता है तब वो रावण को श्राप देती है कि यदि वो किसी स्त्री को उसकी इच्छा के बिना स्पर्श करेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। 

     उसी श्राप के कारण रावण देवी सीता को उनकी इच्छा के विरुद्ध स्पर्श ना कर सका। उर्वशी ने अर्जुन को 1 वर्ष तक नपुंसक रहने का श्राप दिया था।

    पुराणों में कुल 1008 अप्सराओं का वर्णन है जिनमे से 108 प्रमुख अप्सराओं की उत्पत्ति देवराज इंद्र ने की थी। उन 108 अप्सराओं में भी 11 अप्सराओं को प्रमुख माना जाता है। उन 11 अप्सराओं में भी 4 अप्सराओं का सौंदर्य अद्वितीय माना गया है। ये हैं – रम्भा, उर्वशी, मेनका और तिलोत्तमा। रम्भा सभी अप्सराओं की प्रधान और रानी है। 

    कई अप्सराएं ऐसी भी हैं जिन्हे पृथ्वीलोक पर रहने का श्राप मिला था जैसे बालि की पत्नी तारा, दैत्यराज शम्बर की पत्नी माया और हनुमान की माता अंजना।

अप्सराएँ दो प्रकार की मानी गयी हैं :

दैविक : ऐसी अप्सराएँ जो स्वर्ग में निवास करती हैं। रम्भा सहित मुख्य 11 अप्सराओं को दैविक अप्सरा कहा जाता है।

लौकिक : ऐसी अप्सराएँ जो पृथ्वी पर निवास करती हैं। जैसे तारा, माया, अंजना इत्यादि। इनकी कुल संख्या 34 बताई गयी है।

    अप्सराओँ को सौभाग्य का प्रतीक भी माना गया है। कहते हैं अप्सराओं का कौमार्य कभी भंग नहीं होता और वो सदैव कुमारी ही बनी रहती है। उनका सौंदर्य कभी क्षीण नहीं होता और ना ही वे कभी बूढी होती हैं।

      उनकी आयु भी बहुत अधिक होती है। मार्कण्डेय ऋषि के साथ वार्तालाप करते हुए उर्वशी कहती है – हे महर्षि! मेरे सामने कितने इंद्र आये और कितने इंद्र गए किन्तु मैं वही की वही हूँ। जब तक 14 इंद्र मेरे समक्ष इन्द्रपद को नहीं भोग लेते मेरी मृत्यु नहीं होगी।

     ये भी जानने योग्य है कि भारतवर्ष का सर्वाधिक प्रतापी पुरुवंश स्वयं अप्सरा उर्वशी की देन है। उनके पूर्वज पुरुरवा ने उर्वशी से विवाह किया जिससे आगे पुरुवंश चला जिसमे ययाति, पुरु, यदु, दुष्यंत, भरत, कुरु, हस्ती, शांतनु, भीष्म और श्रीकृष्ण पांडव जैसे महान राजाओं और योद्धाओं ने जन्म लिया। उन्ही के दूसरे वंशबेल में इक्षवाकु कुल में भगवान श्रीराम ने जन्म लिया।

     अन्य संस्कृतियों में जैसे ग्रीक धर्म में भी अप्सराओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त कई देशों जिनमे से इंडोनेशिया, कम्बोडिया, चीन और जावा में अप्सराओं का बहुत प्रभाव है।

   अप्सराएँ डायनासोर प्रजाति की नहीं हैं जो विलुप्त हो जाएँ. दैवीय शक्तियां आपको विलुप्त कर देती हैं, वे विलुप्त नहीं होती. उन्हें देखने के लिए जो दृष्टि चाहिए, उसका उद्घाटन कर लें, आप उनसे मिल सकेंगे.

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