*डा राजा राम*
आर्टिकल 32 ,इस नाते से मूल अधिकारों को संरक्षण देता है कि अगर कोई राज्य( कोई व्यक्ति नहीं, कोई नागरिक नहीं )मूल अधिकारों का अतिक्रमण करता है तो उसके संरक्षण के लिए अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट जा सकता है, उपचार के लिए परंतु इस अनुच्छेद के अंतर्गत यह भी कहा गया है, संसद चाहे तो अनुच्छेद 32 की शक्तियों को निचली अदालतों में अर्थात जिलों में भी दे सकती है ।इससे यह साबित होता है की इस अनुच्छेद के द्वारा गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपने अधिकारों के लिए न्यायालय की शरण में जा सकता है और न्याय प्राप्त कर सकता है क्योंकि यह उसकी पहुंच में होगा परंतु ऐसा नहीं हुआ। केवल सुप्रीम कोर्ट तक ही सीमित रखा इसका कार्य क्षेत्र ताकि अमीर आदमी ही उपचार के लिए अनुच्छेद 32 का उपयोग कर सके इसीलिए गरीब आज भी वंचित है इसके उपयोग करने के लिए उसके अंदर शक्ति नहीं है सोच भी नहीं है।
अभी तक इन शक्तियों को निचली अदालतों को, ना देने का मनसा शासन सत्ता का यही रहा है कि वह केवल अमीरों के साथ है गरीबों के साथ में नहीं है । इस बात को वंचित वर्ग के संगठनों को समझना चाहिए। यह बात ओबीसी एसटी एससी के एडवोकेट्स तो सुप्रीम कोर्ट तक हैं हाई कोर्ट तक हैं उन्हें भी समझना चाहिए सबसे पहले परंतु वह कभी आवाज नहीं उठाते हैं क्यों ??क्या उन्हें कोई अपनी प्रैक्टिस में खतरा लगता है अथवा क्या वह पढ़ते लिखते नहीं है इस दृष्टि से के उनका समाज कहां खड़ा है या उन्हें इतना ज्ञान ही नहीं है कि वह वंचित समाज को संविधान की शक्तियों का ठीक से उपयोग करा सकें??
जब कोई हल्ला नहीं हुआ इन शक्तियों को निचली अदालत तक ले जाने के लिए तब वह वर्ग जो संसद में हमेशा निर्णयाक की स्थिति में रहा है और जिसने इस संविधान को अपने हित में ही बनाया है वह क्यों ऐसा चाहेगा कि गरीब व्यक्ति भी इसका लाभ उठा सकें और अगर ऐसा हुआ तो शोषण उत्पीड़न समाप्त हो जाएगा जिसको वह नहीं चाहते जोकि आज भी हो रहा है।?? अभी तक गरीबों के लिए इस संविधान में ,मजदूरों के लिए संविधान में, रोजगार विहीन लोगों के लिए संविधान में कोई प्रावधान है ही नहीं ऐसी मंशा ही नहीं थी संविधान निर्माताओं की इनको कुछ देने की यह बात तो साबित होती है??
जब कभी संविधान की चर्चा होती है तब डॉक्टर अंबेडकर को आगे रखा जाता है कि उन्होंने यह कहा अनुच्छेद 32 संविधान की आत्मा है ,वह इसीलिए कहा था कि अगर यह निचली अदालतों तक अर्थात तहसील के स्तर पर जो न्यायालय कोर्ट्स हैं वहां तक हर गरीब आदमी की पहुंच हो सकती है। मैं पूछना चाहता हूं यह सवाल उन लोगों से जो अनुच्छेद 32 की व्याख्या करते हैं वह इस बात को क्यों नहीं कहते हैं इसकी शक्तियों को निचली अदालत तक क्यों नहीं पहुंचाया गया क्या इनकी नियत भी सही नहीं है सच बोलना नहीं चाहते??
आज तक सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचा को परिभाषित क्यों नहीं किया इस पर चर्चा क्यों नहीं??
बाबासाहेब डॉक्टर अंबेडकर ने 4 नवंबर 1948 को संविधान सभा के मौजूदा पर बोलते हुए कहा था क्या यह मूल अधिकार सरकार के कानून हैं अन्य कानूनों की तरह इनमें मौलिकता नहीं है यह कभी भी सरकार द्वारा बदले जा सकते हैं ,यह बात क्यों नहीं करी जाती है डॉक्टर अंबेडकर की तरफ से।??
इसी भाषण में डॉक्टर अंबेडकर ने का था कि मैंने वही लिखा है जो संविधान सभा ने कहा है उसी के निर्देशों का मैंने अक्षर से पालन किया है ।फिर क्यों कहा जाता है कि डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान में यह कहा??
इसी भाषण में डॉक्टर अंबेडकर ने यह भी कहा था कि ज्यादातर कानून ब्रिटिश इंडिया एक्ट 1935 से ही लिए गए हैं अर्थात जिस प्रकार से अंग्रेज शासन चलाते थे उसी तरीके से यह भारतीय सत्ता भी शासन चला रही है। इस बात को क्यों नहीं कहा जाता है जब डॉक्टर अंबेडकर का नाम लिया जाता है तब??
इसी भाषा में डॉक्टर अंबेडकर ने यह भी कहा था इसमें इंग्लैंड अमेरिका आयरलैंड कनाडा ऑस्ट्रेलिया इतिहास कई देशों की संविधान की नकल की गई है यह बात भी करनी चाहिए?
25 November 1949 को बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था यह मूल अधिकार इतने पवित्र नहीं है कि इनमें कोई बदलाव न किया जा सके और अनुच्छेद 31, संपत्ति इतनी पवित्र नहीं है कि बिना मुआवजा दिए इसे ट्रांसफर ना किया जा सके, इस बात को क्यों नहीं कहा जाता??
जब तक आप संविधान निर्माण को और संविधान सभा की बहस को पढेगे नहीं तब तक आप यह समझ नहीं सकते कि यह संविधान एक वर्ग विशेष ने अपने शासन करने के लिए एक दस्तावेज के रूप में तैयार किया है ।इसमें तत्कालीन भारतीयों की दशा के विषय में उसके उपचार के विषय में कुछ भी नहीं है क्योंकि उनका मन ऐसा नहीं था, जिन्होंने संविधान का निर्माण किया ।इस बात को जानो समझो यह बहुत आवश्यक है।