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मोदी सत्ता की रणनीति का मूल लक्ष्य धर्मनिरपेक्षता पर हमला

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जगदीश्वर चतुर्वेदी

भारत की जनता का उनकी (संघियों और शासकों) नजरों में अपराध यह है कि उन्होंने 75 सालों तक धर्मनिरपेक्षता की सेवा की. उसके लिए लड़ाई लड़ी. उसे अर्जित करने का प्रयत्न किया. वे अब जनता को सबक सिखा रहे हैं. थोड़ा गंभीरता से विचार करें तो पाएंगे कि सारी दुनिया में धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ विगत चालीस सालों से भयानक आंधी चल रही है. विभिन्न रंगत और नामों के संगठन धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ सक्रिय हैं. इन सभी संगठनों में दो चीजें साझा हैं, पहला धर्मनिरपेक्षता का हर स्तर पर विरोध, दूसरा, विज्ञानसम्मत चेतना का अस्वीकार.

इन दोनों लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मध्यपूर्व के देशों से लेकर भारत तक एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क है जो कहीं वोट के जरिए, कहीं बंदूक के जरिए, कहीं तोप के जरिए, कहीं राजशाही के जरिए, कहीं धर्म के बहाने, कहीं समाजसेवा के बहाने, कहीं हिंसा तो कहीं सत्ता की हिंसा के जरिए धर्मनिरपेक्षता पर हमले कर रहा है. भारत में इस धर्मनिरपेक्षता विरोधी अंतर्राष्ट्रीय गठजोड़ का वैचारिक हिस्सा आरएसएस-भाजपा है. इस गठजोड़ को देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों, नाटो, अमेरिका आदि का खुला समर्थन है. फंडिंग है. भारत में ही नहीं सारी सारी दुनिया में कोरोना की महामारी के खिलाफ जो जंग चल रही है, उसमें सवाल यह है कि सत्ता पर बैठे लोग, उनका तंत्र, मानवाधिकारों, स्वास्थ्य, शिक्षा, आमदनी, रोजगार आदि की कैसे हिफाजत करता है.

भारत में नरेन्द्र मोदी सरकार अपने रीयल जनविरोधी रूप में सामने आ चुकी है. उसने रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा और मानवाधिकारों की रक्षा करने की बजाय इन पर हमले संगठित किए हैं. मानवाधिकार हनन में उसने तमाम संवैधानिक संस्थाओं को औजार की तरह इस्तेमाल किया है. जिन लोगों ने, कारपोरेट घरानों ने विगत सात सालों में बैंकों से लेकर खेत-खलिहानों तक लूट की है, उनको इन दिनों संत-साधु और देशभक्त के रुप में चित्रित किया जा रहा है. सारी जनता से एक ही मांग की जा रही है धर्मनिरपेक्षता छोड़ो, आरएसएस का साथ दो, मोदी को वोट दो, समर्थन दो.

ये धर्मनिरपेक्षता विरोधी गैंग अच्छी तरह जानता है कि लोकतंत्र में यदि धर्मनिरपेक्षता को पंक्चर कर दिया जाए तो लोकतंत्र अपाहिज हो जाएगा, न्याय अधमरा हो जाएगा क्योंकि आधुनिक राष्ट्र की धुरी है धर्मनिरपेक्षता, इसके बिना आधुनिक राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते. अमेरिका से लेकर भारत तक मिस्र से लेकर फ्रांस तक सब जगह धर्मनिरपेक्षता पर हमले हो रहे हैं.

धर्मनिरपेक्षता के प्रमुख वाहक के रुप में उपजे मध्यवर्ग पर हमले हो रहे हैं, उन सामाजिक तबकों पर हमले हो रहे हैं जो धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में खड़े हैं. भारत में आम जनता खासकर मजदूर, किसान, मध्यवर्ग के लोग धर्मनिरपेक्षता की धुरी हैं इसलिए इन पर वैचारिक-आर्थिक हमले तेज कर दिए गए हैं. इन हमलों में आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों के साथ मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारों की केन्द्रीय भूमिका है.

धर्मनिरपेक्ष ताकतों को तहस-नहस करने के लिए पहले वैचारिक हमले आरंभ किए गए गए, उनको चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनाया गया. बाद में धर्मनिरपेक्ष जनता के आर्थिक आधार को तोड़ने के लिए इस तरह की आर्थिक नीतियां अपनायी गयीं जिससे धर्मनिरपेक्ष जनता लगातार कंगाली और भुखमरी की ओर जाए. आर्थिक तौर पर आम जनता को तबाह करके धार्मिक फंडामेंटलिज्म और भुखमरी का स्थायी बंदोबस्त किया जा रहा है. गरीबी-भुखमरी से लड़ने वाली जनता धर्म और धार्मिक फंडामेंटलिस्टों की गिरफ्त में जाने और जीने के लिए मजबूर की जा रही है.

धर्मनिरपेक्षता ने मनुष्य की पहचान को प्रमुखता दी, लेकिन मोदी गैंग ने हिन्दू की पहचान को प्रमुखता दी. धर्म की पहचान को प्रमुखता दी. धर्म के आधार पर नागरिकों को देखा. कभी-कभी भारतीय पहचान का नाटक किया लेकिन मनुष्य की पहचान को अस्वीकार किया, व्यक्ति या परसन की पहचान को अस्वीकार किया और यही वह बिंदु है जहां से वे निरंतर वैचारिक-आर्थिक हमले कर रहे हैं.

व्यक्ति की आमदनी पर हमले कर रहे हैं. हर व्यक्ति की आमजनी में मोदी के आने के बाद तेजी से गिरावट आई है. उपभोक्ता बाजार सिकुड़ा है. उपभोक्ता बाजार पर हमले में मोदी सरकार ने बड़े बारीक तरीके अपनाए हैं. अब आप अपनी आंखों के सामने माल-बाजार सबको बिखरते देख सकते हैं. बाजार की आमदनी खत्म हो गयी है. यह अर्थव्यवस्था के खिलाफ फंडामेंटलिज्म का उपभोक्तावाद विरोधी तरीका है जिससे धार्मिक फंडामेंटलिजम को मदद मिलती है.

आप इन दिनों कोरोना से लड़ रहे हैं लेकिन कहीं पर भी सरकार आपकी मदद करती नजर नहीं आएगी. खासकर केन्द्र सरकार ने कोरोना से लड़ने की जानते हुए भी कोई तैयारी नहीं की।श क्योंकि धर्मनिरपेक्ष जनता को सबक सिखाना था. सारी दुनिया में अमेरिकीपंथी राजनीतिक दल, जिनमें भाजपा शामिल है, वे विभिन्न किस्म के मुखौटे लगाकर धर्मनिरपेक्ष जनता के जीवन पर हमले कर रहे हैं.

भारत में यह हमला विकास और हिंदुत्व की आड़ में संगठित किया जा रहा है. इसका मुख्य लक्ष्य है धर्मनिरपेक्ष जनता को अधमरा करो, मध्यवर्ग की आमदनी के रास्ते बंद करो. मध्यवर्ग को खदेड़कर निचले आर्थिक स्तर पर फेंको. मध्यवर्ग की एकाधिक आमदनी के स्रोतों को बंद करो. कम खाओ और गम खाओ. आस्था रखो, डिग्री लो, बेकार रहो. गरीब को और गरीब बनाओ.

भारत में गरीबों पर जितने हमले बढ़ेंगे, मध्यवर्ग में कंगाली, बेकारी और भी तेजी से बढ़ेगी. मध्यवर्ग और गरीबों में अंतराल, दूरी, विद्वेष की सृष्टि करके सत्तावर्ग ने मध्यवर्ग को गरीब विरोधी-किसान-मजदूर विरोधी बना दिया है. यही वजह है मध्यवर्ग खुलकर किसानों-मजदूरों के पक्ष में बोलता नहीं है. उनसे नफरत करता है लेकिन इस चक्कर में मध्यवर्ग की पामाली बढ़ी है.

मध्यवर्ग में धर्मनिरपेक्षता विरोधी नफरत बढ़ी है. मध्यवर्ग पर मोदी का नशा हावी है. भारत का मध्यवर्ग एक ही साथ मोदी और धर्म इन दो किस्म के नशे में चूर है. यही वह बिन्दु है जिसे चुनौती देने की जरूरत है. मोदी और आरएसएस मूलतः मध्यवर्ग, किसान, मजदूर और गरीब विरोधी हैं और आचरण में धर्मनिरपेक्षता को एकसिरे से अस्वीकार करते हैं. यह सिलसिला जनांदोलन के बिना थमने वाला नहीं है.

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