अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

ग्रामीण इलाके में सरकारी अड़चनों में उलझ कर रह गया जन वितरण प्रणाली का लाभ

Share

शैतान रेगर
भीलवाड़ा, राजस्थान

केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन दिया जा रहा है. माना जाता है कि इस योजना ने गरीबों के सामने भोजन की समस्या का हल कर दिया है. हालांकि इससे पहले भी देश में जन वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीब और वंचित तबके को सस्ते में राशन उपलब्ध कराया जाता रहा है. दावा किया जाता है कि इस प्रकार की योजना ने भारत जैसे विशाल देश की एक बड़ी आबादी के सामने खाद्य सुरक्षा के मुद्दे को हल कर दिया है. लेकिन अक्सर दावे और हकीकत में ज़मीन आसमान का अंतर नज़र आता है. अभी भी देश के कई ऐसे ग्रामीण इलाके हैं जहां जन वितरण प्रणाली के माध्यम से लोगों को पूरी तरह से लाभ नहीं मिल रहा है.

ऐसा ही एक क्षेत्र राजस्थान के उदयपुर जिला का मनोहरपुरा गांव है. जिला मुख्यालय से मात्र चार किमी की दूरी आबाद इस गांव की आबादी लगभग एक हज़ार के आसपास है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति बहुल इस गांव में अधिकतर परिवार बाहर से आकर बसा है ताकि निकट ही शहर में उन्हें रोज़गार मिल सके. इस गांव की आजीविका पूरी तरह से शहर पर टिकी हुई है. करीब पचास प्रतिशत साक्षरता वाले इस गांव के अधिकतर पुरुष प्रतिदिन शहर जाकर मज़दूरी करने का काम करते हैं. वहीं महिलाएं भी शहर के घरों में झाड़ू बर्तन करने का काम करती हैं. इस गांव की सबसे बड़ी समस्या लोगों को जन वितरण प्रणाली के माध्यम से राशन प्राप्त नहीं होना है. पलायन के कारण अधिकतर परिवारों के पास वैध प्रमाण पत्र नहीं है. कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिन्हें दो साल पहले तक इसके माध्यम से लाभ मिलता था. लेकिन अब बंद हो गया है और लगातार प्रयासों के बावजूद अब तक शुरू नहीं हो सका है.

इस संबंध में 45 वर्षीय मोहन हरिजन बताते हैं कि वह प्रतिदिन उदयपुर शहर जाकर दैनिक मज़दूरी करते हैं. घर में वह एकमात्र कमाने वाले हैं. कभी कभी जब काम नहीं मिलता है तो घर में खाने पीने की समस्या आ जाती है. ऐसे में जन वितरण प्रणाली से मिलने वाला राशन उनके परिवार के लिए किसी वरदान से कम नहीं था. लेकिन अब उसके बंद हो जाने से परिवार के लिए भोजन का प्रबंध करना मुश्किल हो गया है. वह बताते हैं कि पीडीएस दोबारा शुरू करवाने के लिए उन्होंने ई-मित्र और पंचायत से लेकर प्रखंड और जिलाधिकारी के कार्यालय तक का चक्कर काट लिया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ और उनका पीडीएस से मिलने वाला राशन आज तक बंद है. मोहन बताते हैं कि हर बार कार्यालय में कोई नई तकनीकी खामियां बताकर मुझे लौटा दिया जाता है. यदि यही स्थिति रही तो परिवार के सामने खाने की समस्या उत्पन्न हो जाएगी.

गांव के ही मिथुन कालबेलिया बताते हैं कि पिछले 40 वर्षों से उनका परिवार मनोहरपुरा में रहता आ रहा है. पहले उन्हें जन वितरण प्रणाली से राशन मिल जाया करता था. जिससे उनके परिवार के सामने खाने की समस्या नहीं थी. लेकिन पिछले दो साल से उन्हें राशन नहीं दिया जा रहा है. ग्राम पंचायत से पता करने पर जानकारी मिली कि मेरे पूरे परिवार का आधार कार्ड पीडीएस से जुड़ा नहीं होने के कारण राशन बंद कर दिया गया है. तब से बच्चों का आधार कार्ड बनाने के लिए कार्यालय का चक्कर काट रहा हूं. लेकिन बच्चों का जन्म घर में होने के कारण उनका जन्म प्रमाण पत्र नहीं बन सका है, जिसकी वजह से उनके आधार कार्ड बनने में बहुत कठिनाई आ रही है. जब तक उनका आधार कार्ड नहीं बन जाता है मेरा फिर से राशन शुरू नहीं हो सकता है.

वहीं सोना देवी और उनके परिवार के पास सभी आवश्यक दस्तावेज़ और राशन कार्ड होने के बावजूद भी जन वितरण प्रणाली का लाभ उठाने से वंचित है. सोना देवी बताती हैं कि 10 वर्ष पूर्व उनका परिवार रोज़गार की तलाश में बिहार से मनोहरपुरा आकर बस गया था. परिवार के पास सभी उचित दस्तावेज़ भी हैं. लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें राशन नहीं मिल रहा है. वह बताती हैं कि इसके लिए वह सरपंच और श्रम विभाग से लेकर कलेक्टर ऑफिस तक का चक्कर लगा चुकी हैं. लेकिन फिर भी उनके परिवार का आज तक राशन शुरू नहीं हो सका है.

सोना देवी कहती हैं कि लगातार चक्कर लगाने के बावजूद किसी भी कार्यालय से उन्हें कोई भी उचित जवाब नहीं मिल रहा है कि आखिर उन्हें राशन की सुविधा क्यों नहीं मिल रही है? वह बताती हैं कि इस योजना से अकेला उनका परिवार ही वंचित नहीं है बल्कि मनोहरपुरा गांव के कई अन्य परिवार भी हैं जिन्हें बिना उचित कारणों के राशन की सुविधा से वंचित रखा गया है. दरअसल यह परिवार पात्र होते हुए भी केवल सरकारी अड़चनों के कारण इस सुविधा से वंचित है और योजना का हिस्सा बनने के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है. इनमें अधिकतर गरीब, अशिक्षित और रोज़गार की तलाश में प्रवास कर आया परिवार शामिल है. इन्हें राशन के लिए शहर के दुकानों पर निर्भर रहना पड़ता है. इससे सबसे अधिक महिलाओं को कठिनाइयां आती हैं.

हालांकि गांव में कुछ परिवार ऐसा भी है जिन्हें जन वितरण प्रणाली के माध्यम से उचित दर पर राशन की सुविधा मिल रही है. इसके अलावा वन नेशन वन राशन जैसी योजना का लाभ भी कुछ प्रवासी परिवारों को हो रहा है. लेकिन सवाल उठता है कि जो गरीब और वंचित परिवार इस सुविधा से वंचित है उसकी चिंता कौन करेगा? यदि ऐसा परिवार आधार कार्ड या किसी अन्य सरकारी दस्तावेज़ के कारण राशन से वंचित है तो इस कमी को दूर करने की ज़िम्मेदारी किसकी है? सवाल यह भी उठता है कि क्या सरकारी विभाग ज़रूरतमंदों को सरकार द्वारा चलाई जा रही सुविधाओं से वंचित करने के लिए बनाई गई है या वंचितों को सुविधाओं से जोड़ने के लिए स्थापित की गई है? कौन जवाबदेह है इसके लिए? (चरखा फीचर) 

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें