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भई गति सांप छछूंदर केरी

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सुसंस्कृति परिहार
राजनीति आजकल जिस तरह पूंजीवादी ताकतों के साथ मिलकर शोषण की नई इबारत लिख रही हैं उसी तरह पहली बार जनशक्ति ने अपने आंदोलनों को नया रुख देकर एक नई चेतना , उत्साह और उमंग की ऊर्जा से भर दिया है।शासन की तमाम फ़ौज और उपकरण इस नई विरोध की ताकत के आगे पस्त दिखाई दे रहे हैं। असहाय जनता के ऊंचे मनोबल ने श्री लंका की मनमौजी और बेरहम सरकार को हलाकान कर दिया है।जनता द्वारा तथा कथित देश सेवकों पर दुनिया में पहली बार इतने क्रूर हमले हो रहे हैं प्रधानमंत्री आवास के पीछे स्थित बीरा झील में एक नेता जी को कार सवारों सहित झील में ढकेल दिया गया । सरकार के समर्थन में लगी बसों , ट्रक आदि भी झील में गिराए गए ,किसी को कचरा के डिब्बे में तो किसी को बुलडोजर के नीचे कुचला गया। वस्तुत:7अप्रेल से चल रहे मंहगाई विरोधी जन आन्दोलन को कुचलने प्रधानमंत्री महेंद्रा राजपक्षे ने जो सख्त कदम उठाए उससे प्रर्दशनकारी भड़क गए। उनके इस्तीफे के बावजूद उसके शासकीय और निजी आवास को पूरी सुरक्षा के बावजूदआग के  हवाले किया गया महामहिम जो राजपक्षे के भाई हैं के राष्ट्रपति भवन को भी नहीं बख्शा गया। कहा जाता है कि सहनशीलता की भी एक सीमा होती है तथा झूठ और जुमले बाजी की उम्र ज्यादा नहीं होती। साजिशों का पता एक ना एक दिन जनता को चल ही जाता है।तब जो खौल आती है उसका हश्र हम पड़ौसी देश श्रीलंका में देख रहे हैं।महेन्द्रा राजपक्षे के इस्तीफे के बाद अब उनकी गिरफ्तारी की मांग चल रही जिसे सरकार और विपक्षी दलों का समर्थन मिल रहा है।ऐसा बताया जा रहा है कि टि्कूमाली नौसेना बेस में महेंद्रा राजपक्षे सपरिवार शरण लिए है। लोगों ने उसे भी घेर रखा है। आपातकालीन कर्फ्यु जारी होने के बावजूद सत्ता पक्ष के समर्थक लोगों को सरेआम बेइज्जत किया जा रहा है।इन अंधभक्तों की फजीहत देख रोंगटे खड़े हो जाते हैं ।
 विदित हो ब्रिटिश आज़ादी के बाद 1948 से श्रीलंका ने निरंतर घरू अशांति के बावजूद तरक्की की है।तमिल ईलम और लिट्टे आतंकवाद का सफाया सरकार ने भी बहुत संजीदगी से किया। लगभग चार साल से यह देश अंतर्विरोधों से मुक्त हुआ है। यह दुनियां का पहला देश था जिसने सिरीमावो भंडारनायके के रूप में पहली महिला प्रधानमंत्री दी।
अंग्रेजों के खिलाफ यहां जो  सशस्त्र विद्रोह 1818 उवा विद्रोह और 1848 मटाले विद्रोह में हुआ था उसी की बदौलत अंततः 1948 में स्वतंत्रता प्रदान की गई लेकिन देश 1972 तक ब्रिटिश साम्राज्य का डोमिनियन बना रहा।
1972 में श्रीलंका ने गणतंत्र का दर्जा ग्रहण किया। 1978 में एक संविधान पेश किया गया जिसने कार्यकारी अध्यक्ष को राज्य का प्रमुख बनाया। श्रीलंकाई गृहयुद्ध 1983 में शुरू हुआ, जिसमें 1971 और 1987 के विद्रोह शामिल थे , 2009 में 25 साल के लंबे गृहयुद्ध के साथ । सिरीमावो भंडारनायके के तहत सरकार के ख़िलाफ 1962 में तख्तापलट का प्रयास किया गया था ।श्रीलंका में बहुसंख्यक सिंहला और अल्पसंख्यक तमिलो के बीच 23 जुलाई, 1983 से आरंभ हुआ गृहयुद्ध है। मुख्यतः यह श्रीलंकाई सरकार और अलगाववादी गुट लिट्टे के बीच लड़ा जाने वाला युद्ध है। 30 महीनों के सैन्य अभियान के बाद मई 2009 में श्रीलंकाई सरकार ने लिट्टे को परास्त कर दिया।
लगभग 25 वर्षों तक चले इस गृहयुद्ध में दोनों ओर से बड़ी संख्या में लोग मारे गए और यह युद्ध द्वीपीय राष्ट्र की अर्थव्यस्था और पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हुआ। लिट्टे द्वारा अपनाई गई युद्ध-नीतियों के चलते 32 देशों ने इसे आतंकवादी गुटो की श्रेणी में रखा जिनमें भारत[ ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोपीय संघ के बहुत से सदस्य राष्ट्र और अन्य कई देश हैं। एक-चौथाई सदी तक चले इस जातीय संघर्ष में सरकारी आँकड़ों के अनुसार ही लगभग 80,000 लोग मारे गए हैं। इन संघर्षों से गुजर कर श्रीलंका एक सुंदर देश बना।
दूसरी तरफ श्री लंका पहले भारत का एक हिस्सा रहा यह देश ब्रिटिश आजदी के बाद सीलोन, फिर लंका और सन् 1978से श्री लंका हुआ।  भारत का रिश्ता इससे सदियों पुराना है। कोई ढाई हज़ार साल पहले सम्राट अशोक ने अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को बौद्ध धर्म का उपहार लेकर श्रीलंका भेजा था, वहाँ के राजा ने उनसे प्रभावित होकर बौद्ध धर्म को स्वीकार किया, और आज श्रीलंका की 70 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी बुद्ध की पूजा करती है। धार्मिक दृष्टि से यह राम रावण युद्ध के लिए जाना जाता है । इससे जुड़े कई धार्मिक स्थल भी यहां विकसित किए गए हैं तथा बड़ी संख्या में भारतीय पर्यटक यहां जाते हैं।
हालांकि कुछ वर्षों से चीन की कुचालों में फंसी लंकाई सरकार का याराना भारत से टूटा हुआ है किन्तु आज भी इन कठिन परिस्थितियों में भारत ने 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर के लाइन ऑफ क्रेडिट के माध्यम से श्रीलंका और उसके लोगों की मदद करने की कोशिश की है. भारत ने बड़े पैमाने पर बिजली कटौती का सामना कर रहे देश को 2,70,000 मीट्रिक टन ईंधन की आपूर्ति भी की है. यह सराहनीय कदम हैं । बांग्लादेश सबसे पहले मदद करने वाला देश है। विश्व बैंक से भी यहां की आर्थिक बदहाली सुधारने आर्थिक मदद मिलने वाली है। किंतु मदद के बहाने कर्ज देकर बर्बाद करने वाले अमेरिका के बाद अब चीन ने भी की देशों को आर्थिक गुलाम बना लिया है।अब पाकिस्तान और नेपाल भी इस लाइन में है। भारत जैसे विशाल देश की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह लड़ खड़ा रही है। बताया जा रहा है पेट्रोल,गैस डीजल के आयात हेतु मुद्रा ना होने कारण श्रीलंका में आग लगी हुई है। भारत में इनके दाम तेजी से बढ़ रहे हैं जिसके फलस्वरूप मंहगाई चरम पर है।रुपया अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अवमूल्यन का शिकार है।ये तमाम हालात भारत की दुर्दशा को बता रहे हैं।यदि हालात नहीं सुधरे तो अहिंसक भारत भी हिंसातुर हो सकता है।पड़ौसी देश से सीख लेनी ही होगी।वरना वह दिन भी यहां दस्तक देगा जब तख़्त हिलाए जायेंगे और ताज उखाड़े जायेंगे तथा सत्ता के नशे चूर सरकार के मंत्री ,पूरा तंत्र और अंध समर्थकों की गति सांप छछूंदर जैसी होगी।

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