रवि सिन्हा
विपक्षी दलों का गठबंधन I.N.D.I.A बनने से बीजेपी की घबराहट और बेचैनी निश्चित तौर पर बढ़ गई है। बिना किसी एजेंडे के संसद का विशेष सत्र बुलाया जाना और G 20 देशों की बैठक में राष्ट्रपति की ओर से जारी रात्रि भोज के निमंत्रण पत्र में President Of Bharat लिखा जाना इस बात के संकेत हैं कि भाजपा विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A नाम से असहज हो गई है। हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी खासियत रही है कि वे प्रतिकूलताओं को भी अपने अनुकूल बना लेते हैं। राहुल गांधी ने जब ‘चौकीदार चोर है’ का नारा दिया तो कैसे मोदी ने इसे अपने पक्ष में मोड़ लिया था, यह 20019 के लोकसभा चुनाव में दिख चुका है।
बिना एजेंडे का विशेष सत्र, कोई तो बात है
भारत बनाम INDIA की जंग अचानक विपक्षी गठबंधन के नामकरण के साथ ही क्यों शुरू हो गई है, यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि भारतीय संविधान में भी INDIA शब्द का जिक्र भारत के लिए किया गया है। INDIA या INDIAN नामधारी कई संस्थान-प्रतिष्ठान, राजनीतिक पार्टियां और संवैधानिक संस्थाएं भी आती हैं। कहां-कहां कितने नाम बदले जाएंगे। या फिर यह इतना ही जरूरी था तो 9-10 साल में भाजपा के दिमाग में यह बात क्यों नहीं आई। अभी तक विशेष सत्र की तारीख भले तय हुई है, लेकिन सत्र का कोई एजेंडा सामने नहीं आया है। विपक्षी दलों की ओर से इस बाबत सोनिया गांधी पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर पूछने वाली हैं। हालांकि विपक्षी दलों ने सत्र में शामिल रहने का संकेत दिया है।
कहां से आई INDIA और भारत की बात
यह सभी जानते हैं कि भाजपा के भारत में उत्थान के पीछे जनभावनाओं पर उसकी जबरदस्त पकड़ रही है। मंदिर-मस्जिद, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान, हिन्दू-मुस्लिम, स्टेशनों, शहरों और मार्गों के नाम का भारतीयकरण कुछ ऐसे भावनात्मक मुद्दे हैं, जो भाजपा की राह आसान बनाते रहे हैं। कभी लोकसभा में दो सीटों वाली पार्टी रही भाजपा अगर आज अपने दम पर बहुमत की सरकार बनाने की स्थिति तक पहुंची है तो उसमें ऐसे भावनात्मक मुद्दों का बड़ा योगदान है। भाजपा के ये परखे हुए नुस्खे हैं। पीएम मोदी के वाकचातुर्य कौशल ने तो इसमें चार चांद ही लगा दिया है। चौकीदार चोर है को जैसे उन्होंने अपने पक्ष में भुना लिया, उसी तरह इस बार INDIA की जगह भारत नामकरण का मुद्दा विपक्ष ने उन्हें बैठे-बिठाए दे दिया है। संसद के विशेष सत्र में यही मुद्दा उठेगा, इसकी संभावना इसलिए दिख रही है कि सोशल मीडिया पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का G20 के अतिथियों के लिए जारी भोज के निमंत्रण पत्र पर राष्ट्रपति के पदनाम में प्रेसिडेंट आफ भारत लिखा गया है।
भारत वर्षे भरत खंडे जम्बुद्वीपे का संकल्प
ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि भारत को अतीत में कई नामों से पुकारा गया। भारत, भारत वर्ष, आर्यावर्त, हिन्दुस्तान, इंडिया जैसे नामों से गुजरता हुआ एक बार फिर भारत का नाम चर्चा में है। किसी भी पूजा-पाठ के पहले संकल्प में भारत के विविध नामों का उल्लेख किया जाता है। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर बताते हैं कि भारतीय संविधान की मूल प्रति के हिन्दी संस्करण की प्रस्तावना में ‘‘इंडिया’’शब्द नहीं है। अंग्रेजी संस्करण में जरूर इंडिया शब्द है, लेकिन किसी भी भाषायी संस्करण में इंडिया शब्द नहीं है। सुरेंद्र किशोर कहते हैं- भारत के संविधान की मूल प्रति मेरे निजी पुस्तकालय में उपलब्ध है। हिन्दी और अंग्रेजी दोनों संस्करण मैंने एक बार फिर देखे। प्रस्तावना पढ़ी। अंग्रेजी संस्करण की प्रस्तावना में भारत शब्द नहीं है। उसी तरह हिन्दी संस्करण की प्रस्तावना में इंडिया शब्द नहीं है। भारत तो देसी नाम है। प्राचीन है। परंपरागत है। भारत शब्द हमारे प्राचीन ग्रंथ में भी मिलता है। इंडिया तो अंग्रेजों का दिया हुआ नाम है। वह गुलामी की निशानी है। आजादी के बाद की हमारी सरकारों ने बारी-बारी से नई दिल्ली की उन सड़कों के नाम बदल दिए, जो गुलामी की निशानी थे। पता नहीं, संविधान से इंडिया शब्द को क्यों नहीं बदला ? नहीं बदला तो यह काम मौजूदा सरकार कर रही है। इसमें हाय-तौबा मचाने की जरूरत ही नहीं।
कई सड़कों-शहरों के नाम भी बदलते रहे हैं
आजादी के बाद से अब तक दर्जनों सड़कों के नाम बदले गए। भवनों के नाम बदले। यहां तक कि शहरों के नाम भी बदलते रहे। आश्चर्य होता है कि इंडिया शब्द पर कभी किसी का ध्यान क्यों नहीं गया। दिल्ली में ही देखें तो किंग्स वे का नाम राजपथ किया गया। कुतुब रोड का नाम बदल कर श्री अरविंद मार्ग किया गया। क्लाइव रोड त्यागराज मार्ग बन गया। किंग एडवर्ड रोड मौलाना आजाद रोड बना, विक्टोरिया रोड का नाम राजेंद्र प्रसाद रोड रखा गया। हेस्टिंग्स रोड कृष्ण मेनन मार्ग बन गया। तकरीबन दो दर्जन सड़कों के नाम भारतीय नायकों के नाम पर रखे गए। इतना ही नहीं, मद्रास, बंबई और कलकत्ता सहित 19 नगरों के नाम भी बदले गये। अगर तत्कालीन सत्ता पक्ष और आज के विपक्ष ने कभी खुद ये काम किए तो अच्छा था और अब वही काम नरेंद्र मोदी की सरकार करने जा रही है तो चिल्ल-पों मचा है
।हवा का रुख मोड़ने में माहिर हैं PM मोदी
नरेंद्र मोदी हवा का रुख अपने पक्ष में करना जानते हैं। अपने को सेकुलर बताने वाले दलों के नेताओं को पूजा-पाठ और मंदिर दर्शन का सलीका मोदी ने सिखाया। जो कभी ईश्वर और हिन्दू उपासना स्थलों को लेकर छींटाकशी करते रहे हैं, उन्हें भी मोदी ने मंदिरों और देवी-देवताओं के प्रति आस्थावान बना दिया। जिन्हें उपनयन संस्कार की एबीसीडी नहीं मालूम, उस राहुल को मोदी की वजह से ब्राह्मण और जनेऊधारी बनना पड़ा। मोदी को चुनावी मौसम में इंडिया बनाम भारत का मुद्दा मिल गया है। संसद के विशेष सत्र में यह मुद्दा उठेगा या नहीं, पर इसे चुनावी बहस का मुद्दा तो मोदी ने बना ही दिया है।